आजकल किसानों की मेहनत को और फल देने के लिए नई और उन्नत किस्मों की माँग बढ़ रही है। लेकिन इन बीजों को हर किसान तक पहुँचाना आसान नहीं। इस चुनौती को पार करने के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (CCS HAU), हिसार ने दिल्ली की चामुंडा एग्रो प्राइवेट लिमिटेड के साथ हाथ मिलाया है। इस समझौते से मूँग की तीन उन्नत किस्में MH 1142, MH 1762, और MH 1772 के बीज अब ज़्यादा से ज़्यादा किसानों तक पहुँचेंगे। ये किस्में न सिर्फ बंपर पैदावार देती हैं, बल्कि बीमारियों से लड़ने में भी माहिर हैं। आइए, जानते हैं कि ये समझौता और मूँग की ये किस्में किसानों की जेब कैसे भरेंगी।
CCS HAU और चामुंडा एग्रो का समझौता
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने मूँग की उन्नत किस्मों को किसानों तक पहुँचाने के लिए चामुंडा एग्रो प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बताया कि इस समझौते का मकसद किसानों को विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराना है। चामुंडा एग्रो को मूँग की तीन किस्मों MH 1142, MH 1762, और MH 1772 के बीज उत्पादन और बिक्री का लाइसेंस दिया गया है। कंपनी विश्वविद्यालय को लाइसेंस फीस देगी और इन बीजों को बड़े पैमाने पर तैयार कर किसानों तक पहुँचाएगी। इस समझौते पर विश्वविद्यालय की ओर से अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग और कंपनी की ओर से मार्केटिंग मैनेजर विकास तोमर ने हस्ताक्षर किए।
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मूँग की MH 1142 खरीफ की बंपर पैदावार
मूँग की MH 1142 किस्म खरीफ मौसम के लिए बनी है और देश के उत्तर-पश्चिमी व उत्तर-पूर्वी मैदानी इलाकों में खेती के लिए मंज़ूरी मिली है। ये इलाके हैं उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, और असम। इस किस्म की फलियाँ काले रंग की होती हैं, और बीज मध्यम आकार के, चमकीले हरे होते हैं। इसका पौधा कम फैलने वाला और सीधा होता है, जिससे कटाई आसान हो जाती है। ये 63-70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और 12-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है। इसकी ऊँची उपज और रोगों से लड़ने की ताकत इसे किसानों की पसंद बना रही है।
MH 1762 और MH 1772 रोगमुक्त और ज़्यादा उपज
मूँग की MH 1762 और MH 1772 किस्में भी कमाल की हैं। ये दोनों पीला मोज़ैक वायरस और दूसरी बीमारियों से लड़ने में मज़बूत हैं। MH 1762 को बसंत और ग्रीष्मकाल में उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों (पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड) में बोया जा सकता है। ये 60 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और औसतन 14.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। वहीं, MH 1772 खरीफ मौसम में उत्तर-पूर्वी मैदानी इलाकों (बिहार, झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल) के लिए मंज़ूर है। ये 67 दिनों में तैयार होती है और 13.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। दोनों के बीज चमकीले हरे और मध्यम आकार के हैं, और ये दूसरी किस्मों से 10-15% ज़्यादा पैदावार देती हैं।
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किसानों के लिए फायदे
ये समझौता किसानों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। चामुंडा एग्रो प्राइवेट लिमिटेड अब इन तीनों किस्मों के बीज बड़े पैमाने पर तैयार करेगी, जिससे किसानों को आसानी से गुणवत्तापूर्ण बीज मिलेंगे। MH 1142, MH 1762, और MH 1772 की बंपर पैदावार और रोगों से लड़ने की खूबी किसानों की लागत कम करेगी और मुनाफा बढ़ाएगी। मिसाल के तौर पर, MH 1142 की 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज और MH 1762 की 14.5 क्विंटल की उपज किसानों की जेब भर सकती है। साथ ही, इन किस्मों को बेहतर प्रबंधन के साथ बोने से और अच्छे नतीजे मिल सकते हैं।
विश्वविद्यालय की कोशिशें
CCS HAU लंबे समय से किसानों के लिए नई तकनीक और उन्नत बीज ला रहा है। कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने कहा कि विश्वविद्यालय का मकसद हर किसान तक नई किस्में पहुँचाना है। इसके लिए प्राइवेट कंपनियों से समझौते किए जा रहे हैं। मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. रमेश यादव ने बताया कि चामुंडा एग्रो को बीज उत्पादन का लाइसेंस देने से न सिर्फ किसानों को फायदा होगा, बल्कि विश्वविद्यालय को भी लाइसेंस फीस से आय होगी। इससे और रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा। विश्वविद्यालय ने पिछले तीन सालों में 23 नई किस्में विकसित की हैं, जिनमें मूँग की MH 1762 और MH 1772 भी शामिल हैं।
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