किसान भाइयों, पशुपालन हमारे ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार है, जो लाखों परिवारों को आजीविका प्रदान करता है। बकरी, कुक्कुट, और डेयरी फार्मिंग जैसे क्षेत्र कम लागत में उच्च मुनाफा देने की क्षमता रखते हैं। फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना एक ऐसी पहल है, जो इन क्षेत्रों को देशभर में बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई है। यह परियोजना जिला और तहसील स्तर पर पशुपालन सेवा केंद्र स्थापित करके प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता, और तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह लेख परियोजना की विशेषताओं, प्रशिक्षण प्रक्रिया, और इसके लाभों की पूरी जानकारी देगा, ताकि पशुपालक और युवा इस अवसर का लाभ उठा सकें।
परियोजना का अवलोकन
फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना का मुख्य उद्देश्य बकरी, कुक्कुट, और डेयरी फार्मिंग को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लोकप्रिय बनाना है। यह परियोजना बेरोजगार युवाओं और पशुपालकों को प्रशिक्षण और संसाधन देकर स्वरोजगार के लिए प्रेरित करती है। इसके तहत जिला और ब्लॉक स्तर पर पशुपालन सेवा केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, जो इन फार्मिंग क्षेत्रों की स्थापना, प्रबंधन, और विपणन के लिए मार्गदर्शन देते हैं।
यह परियोजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, बेरोजगारी कम करने, और पशुधन उत्पादन बढ़ाने पर केंद्रित है। आज के समय में, जब भारत आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है, यह परियोजना पशुपालन को एक स्थायी और लाभकारी व्यवसाय के रूप में स्थापित कर रही है।
पशुपालन सेवा केंद्रों का महत्व
पशुपालन सेवा केंद्र इस परियोजना का आधार हैं। ये केंद्र प्रत्येक जिले और तहसील में स्थापित किए जा रहे हैं, जहां पशुपालकों को कई सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। केंद्रों में 5-10 दिनों के आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिनमें बकरी, कुक्कुट, और डेयरी फार्मिंग की आधुनिक तकनीकों की जानकारी दी जाती है। प्रशिक्षण में पशु स्वास्थ्य, चारा प्रबंधन, नस्ल सुधार, और विपणन रणनीतियां शामिल हैं।
केंद्र सरकारी योजनाओं, जैसे राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM) और डेयरी उद्यमिता विकास योजना (DEDS), के बारे में जानकारी देते हैं। ये केंद्र नाबार्ड और बैंकों से लोन और सब्सिडी के लिए आवेदन प्रक्रिया में भी सहायता करते हैं। प्रशिक्षण पूरा होने पर प्रमाणपत्र दिया जाता है, जो स्वरोजगार शुरू करने या निगम में रोजगार के लिए पात्रता प्रदान करता है।
बकरी पालन के लिए प्रोत्साहन
बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जो छोटे और सीमांत किसानों के लिए आदर्श है, क्योंकि इसमें कम निवेश और तेज मुनाफा संभव है। फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना बकरी पालन के लिए विशेष प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। प्रशिक्षण में उच्च नस्ल की बकरियों, जैसे सिरोही, बारबरी, और जमुनापारी, की खरीद, शेड निर्माण, चारा प्रबंधन, और स्वास्थ्य देखभाल की जानकारी दी जाती है।
परियोजना के तहत बकरी पालन के लिए 25-33% सब्सिडी और 50 लाख रुपये तक का लोन उपलब्ध है। पशुपालक बकरी के दूध, मांस, और ऊन से आय अर्जित कर सकते हैं। यह परियोजना क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है, जिससे बकरी उत्पादों का विपणन और प्रसंस्करण आसान हो जाता है।
कुक्कुट पालन का विस्तार
कुक्कुट पालन, विशेष रूप से मुर्गी पालन, भारत में तेजी से बढ़ रहा है। फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना ब्रॉयलर और लेयर मुर्गी पालन को प्रोत्साहित करती है। प्रशिक्षण केंद्रों में पशुपालकों को मुर्गी शेड डिजाइन, चूजा प्रबंधन, टीकाकरण, और अंडा/मांस विपणन की जानकारी दी जाती है।
राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत मुर्गी पालन के लिए 50% सब्सिडी और लोन उपलब्ध है। परियोजना ग्रामीण युवाओं को छोटे पैमाने पर मुर्गी फार्म शुरू करने के लिए प्रेरित करती है, जिसकी लागत 2-5 लाख रुपये हो सकती है। वर्तमान में अंडे और मांस की बढ़ती मांग इस व्यवसाय को और लाभकारी बना रही है।
डेयरी फार्मिंग की संभावनाएं
डेयरी फार्मिंग भारत में एक स्थायी व्यवसाय है, क्योंकि दूध और इसके उप-उत्पादों की मांग हमेशा बनी रहती है। फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना डेयरी उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करती है। प्रशिक्षण में गाय/भैंस की नस्ल चयन, दूध संग्रह, प्रसंस्करण, और उप-उत्पाद, जैसे पनीर और घी, के निर्माण की जानकारी शामिल है।
नाबार्ड की डेयरी उद्यमिता विकास योजना (DEDS) के तहत 33% सब्सिडी और 7-12 लाख रुपये का लोन उपलब्ध है। परियोजना छोटे पैमाने पर डेयरी फार्म शुरू करने को प्रोत्साहित करती है, जिसमें 3-5 पशुओं की इकाई की लागत 5-10 लाख रुपये हो सकती है। आज के समय में दूध उत्पादन की मांग बढ़ रही है, जो डेयरी फार्मिंग को आकर्षक बनाती है।
प्रशिक्षण और स्वरोजगार का मार्ग
फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना के तहत प्रशिक्षण सशुल्क है, जिसका शुल्क 1000-5000 रुपये तक हो सकता है। न्यूनतम 10वीं पास युवा आवेदन कर सकते हैं। प्रशिक्षण 5-10 दिनों का होता है, जिसमें रहने और खाने की व्यवस्था निगम द्वारा की जाती है। प्रशिक्षण पूरा होने पर प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है, जो पशुपालक को स्वरोजगार शुरू करने या निगम में रोजगार के लिए पात्र बनाता है।
प्रशिक्षण में आधुनिक तकनीकों, जैसे साइलेज उत्पादन, टोटल मिक्स्ड राशन (TMR), और चारा ब्लॉक निर्माण, की जानकारी दी जाती है। यह परियोजना ग्रामीण युवाओं को पशुपालन में कुशल बनाकर उनकी आय बढ़ाने में मदद करती है। प्रशिक्षण केंद्र स्थानीय भाषा में मार्गदर्शन देते हैं, जिससे ग्रामीण युवाओं को समझने में आसानी होती है।
सरकारी योजनाओं का सहयोग
फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM) और अन्य सरकारी योजनाओं के साथ मिलकर काम करती है। NLM के तहत भेड़, बकरी, और मुर्गी पालन के लिए 25-50 लाख रुपये की सब्सिडी दी जाती है। डेयरी फार्मिंग के लिए नाबार्ड 4-7% ब्याज दर पर लोन प्रदान करता है।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) और स्टार्ट-अप इंडिया के तहत भी पशुपालक लोन ले सकते हैं। पशुपालन सेवा केंद्र इन योजनाओं के लिए आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाते हैं। पंजीकरण के लिए nlm.udyamimitra.in या स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से संपर्क करें। उत्तर प्रदेश में यूपी एग्रीस प्रोजेक्ट भी पशुपालकों को समर्थन दे रहा है।
वर्तमान समय में परियोजना की प्रासंगिकता
वर्तमान में पशुपालन क्षेत्र में बड़े अवसर उपलब्ध हैं। फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना के तहत स्थापित सेवा केंद्र पशुधन उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। बकरी, कुक्कुट, और डेयरी उत्पादों की मांग भारत और वैश्विक बाजारों में बढ़ रही है। ऑनलाइन मार्केट, जैसे Farmizen और BigHaat, और सहकारी समितियां पशुपालकों को बेहतर कीमत दिला रही हैं।
यह परियोजना जलवायु परिवर्तन के अनुकूल पशुपालन को बढ़ावा देती है। साइलेज और चारा प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना से चारे की कमी को दूर किया जा रहा है। चारा उत्पादन में वृद्धि और टिकाऊ प्रथाएं पशुपालन को और लाभकारी बना रही हैं।
लागत और मुनाफा विश्लेषण
बकरी पालन में 20 बकरियों की इकाई शुरू करने की लागत 2-3 लाख रुपये है, जिसमें शेड, चारा, और पशु खरीद शामिल है। 50% सब्सिडी के साथ शुद्ध लागत 1-1.5 लाख रुपये हो सकती है। वार्षिक मुनाफा 1-2 लाख रुपये हो सकता है।
कुक्कुट पालन में 1000 मुर्गियों का फार्म शुरू करने की लागत 3-5 लाख रुपये है। सब्सिडी के बाद लागत 1.5-2.5 लाख रुपये हो सकती है। वार्षिक मुनाफा 2-3 लाख रुपये संभव है।
डेयरी फार्मिंग में 5 पशुओं की इकाई की लागत 5-7 लाख रुपये है। 33% सब्सिडी के बाद लागत 3-4 लाख रुपये हो सकती है। वार्षिक मुनाफा 2-4 लाख रुपये हो सकता है।
आर्थिक सशक्तिकरण और भविष्य
फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना (Farming Protsahan Yojana) ग्रामीण युवाओं और पशुपालकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का एक प्रभावी माध्यम है। यह परियोजना न केवल रोजगार सृजन करती है, बल्कि पशुधन उत्पादन को बढ़ाकर खाद्य सुरक्षा में भी योगदान देती है। प्रशिक्षण और सरकारी सहायता के साथ पशुपालक अपने व्यवसाय को विस्तार दे सकते हैं।
यह परियोजना ग्रामीण महिलाओं को भी सशक्त बना रही है, क्योंकि बकरी और डेयरी फार्मिंग में उनकी भागीदारी बढ़ रही है। सहकारी समितियों और डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से पशुपालक अपने उत्पादों को सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचा सकते हैं।
फार्मिंग प्रोत्साहन परियोजना बकरी, कुक्कुट, और डेयरी फार्मिंग को बढ़ावा देकर ग्रामीण भारत को सशक्त बना रही है। पशुपालन सेवा केंद्रों के माध्यम से प्रशिक्षण और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर पशुपालक अपने व्यवसाय को लाभकारी बना सकते हैं। इस परियोजना को अपनाकर पशुपालक स्वरोजगार के नए अवसर प्राप्त कर सकते हैं और अपने समुदाय को समृद्ध बना सकते हैं।
ये भी पढ़ें – पशुपालन एवं मछली पालन किसान क्रेडिट कार्ड योजना (BAHFKCC): गाँव की समृद्धि का आधार