गर्मी का मौसम शुरू होते ही पानी की कमी और तपती धूप मछली पालकों के लिए चुनौती बन जाती है। लेकिन अब गर्मी में मछली पालन इतना मुश्किल नहीं रहा, क्योंकि नई तकनीक ने इस काम को आसान और मुनाफेदार बना दिया है। पारंपरिक तालाबों में पानी सूखने का डर और मछलियों की सेहत की चिंता अब पुरानी बात हो गई।
आज बायोफ्लॉक, RAS (रीसर्क्युलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम), और पिंजरा पालन जैसी नई तकनीक से कम पानी में मछली पालन करके किसान लाखों कमा रहे हैं। आइए, इन तकनीकों के बारें में समझें कि गर्मी में मछली पालन कैसे करें और खेत को मुनाफे का ठिकाना कैसे बनाएँ।
बायोफ्लॉक: गर्मी में मछली पालन का नया सितारा
बायोफ्लॉक मछली पालन गर्मी के लिए सबसे धांसू नई तकनीक है। इसमें छोटे टैंकों में मछलियाँ पाली जाती हैं, और पानी को बार-बार बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। मछलियों का मल और बचा हुआ चारा बैक्टीरिया की मदद से प्रोटीन में बदल जाता है, जो फिर मछलियों का भोजन बनता है। ये तरीका कम पानी में मछली पालन को आसान बनाता है।
गर्मी में जब तालाब सूख जाते हैं, तब भी बायोफ्लॉक टैंक में पानी की शुद्धता और ऑक्सीजन बनी रहती है। एक 10,000 लीटर के टैंक में 2,000 मछलियाँ पाल सकते हो, जो 6-7 महीने में बिकने को तैयार हो जाती हैं। ये मुनाफे की मछली पालन का शानदार रास्ता है।
RAS तकनीक: इंडोर में गर्मी को मात
गर्मी में मछली पालन के लिए RAS (रीसर्क्युलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम) भी एक कमाल की नई तकनीक है। इसमें सीमेंट के टैंकों में पानी को रिसाइकिल करके दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। तापमान कंट्रोलर लगे होते हैं, जो गर्मी का असर मछलियों पर नहीं पड़ने देते। एक 1,200 गज के टैंक में 60 टन तक मछली उत्पादन हो सकता है। पारंपरिक तालाब में 1 एकड़ में 20,000 मछलियाँ पलती हैं, लेकिन RAS से 8-10 गुना ज्यादा पैदावार मिलती है। पानी की शुद्धता और ऑक्सीजन का ख्याल मशीनें रखती हैं। गाँव में लोग इसे “घर का मछली खेत” कहते हैं। ये कम पानी में मछली पालन का बेस्ट तरीका है, जो गर्मी में भी मुनाफा बरकरार रखता है।
पिंजरा पालन: छोटी जगह, बड़ी कमाई
पिंजरा पालन तकनीक भी गर्मी में मछली पालन के लिए शानदार है। इसमें पानी के अंदर मेटल या प्लास्टिक के पिंजरे डाले जाते हैं, और मछलियों को इनमें पाला जाता है। गर्मी में बड़े तालाबों का पानी कम हो जाता है, लेकिन छोटे पिंजरे साफ पानी में मछलियों को बचा लेते हैं। एक पिंजरे में 500-1000 मछलियाँ पल सकती हैं, और इन्हें कृत्रिम चारा देकर तेजी से बढ़ाया जा सकता है। ये तरीका उन किसानों के लिए बेस्ट है, जिनके पास बड़ा तालाब नहीं है। ये मुनाफे की मछली पालन का सस्ता और आसान रास्ता है।
गर्मी में मछली पालन की तैयारी
गर्मी में मछली पालन को कामयाब बनाने के लिए सही तैयारी जरूरी है। बायोफ्लॉक के लिए टैंक में एरेशन सिस्टम (ऑक्सीजन देने की मशीन) और प्रोबायोटिक्स डालें, ताकि पानी शुद्ध रहे। RAS में तापमान और पानी की गुणवत्ता की निगरानी रखें। पिंजरा पालन में पिंजरों को साफ पानी में रखें और मछलियों को चावल की भूसी, सरसों की खली या तैयार चारा दें। गर्मी में मछलियों को तिलापिया, पंगेसियस या कॉमन कार्प जैसी प्रजातियाँ चुनें, जो गर्म पानी में अच्छे से बढ़ती हैं। पानी का पीएच 7-8 के बीच रखें।
लागत और मुनाफा
नई तकनीक से गर्मी में मछली पालन की लागत पारंपरिक तरीके से कम है। बायोफ्लॉक में 10,000 लीटर टैंक बनाने में 1-2 लाख रुपये लगते हैं, और 7 महीने में 2-3 टन मछली तैयार हो सकती है। बाजार में 150-200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 3-6 लाख की कमाई हो सकती है। RAS में शुरू में 5-7 लाख का खर्च है, लेकिन साल में 50-60 टन मछली से लाखों का मुनाफा। पिंजरा पालन में 50,000-1 लाख की लागत से 1-2 टन मछली निकलती है। सरकार की मत्स्य संपदा योजना से 40-60% सब्सिडी भी मिलती है। ये मुनाफे की मछली पालन का सुनहरा रास्ता है।
गर्मी में चुनौतियाँ और हल
गर्मी में पानी का सूखना और ऑक्सीजन की कमी बड़ी चुनौती है। लेकिन बायोफ्लॉक मछली पालन में पानी रिसाइकिल होता है, और एरेशन सिस्टम ऑक्सीजन देता है। RAS में तापमान कंट्रोलर गर्मी को काबू करते हैं। पिंजरा पालन में साफ पानी और छाया का इंतजाम करें। मछलियों को दिन में 2 बार चारा दें, और पानी की जाँच करते रहें। ये नई तकनीक गर्मी को मात देने का आसान तरीका है।
कई मछली पालकों से बात करके पता चला कि गर्मी में मछली पालन अब सपना नहीं रहा। एक भाई ने बायोफ्लॉक से 1 टन मछली 6 महीने में तैयार की, और 2 लाख कमाए। दूसरे ने RAS आजमाया, और गर्मी में भी 10 टन मछली बेची। पिंजरा पालन से छोटे किसानों ने भी कमाई शुरू की। नई तकनीक से पानी और मेहनत की बचत हुई, और मुनाफा बढ़ गया।
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