Fish Farming Tips: उत्तर प्रदेश के तालाबों और खेतों में मछली पालन अब किसानों की कमाई का बड़ा जरिया बन चुका है, लेकिन दिसंबर की कड़ाके की ठंड ने सबको सतर्क कर दिया है। मौसम विभाग की ताजा चेतावनी के मुताबिक इस महीने तापमान 5-8 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है, जो मछलियों के लिए खतरे की घंटी है। कल ही वाराणसी के कपसेठी गाँव से खबर आई कि कुछ तालाबों में मछलियाँ पानी के नीचे सिमट गई हैं और भोजन छोड़ रही हैं।
अगर सही देखभाल न की गई तो फफूंद, बैक्टीरिया और ऑक्सीजन की कमी से लाखों मछलियाँ मर सकती हैं, यानी प्रति एकड़ 50-60 हजार रुपये का सीधा नुकसान। लेकिन चिंता मत करो, 40 साल से मछली पालन कर रहे प्रगतिशील किसान केएन सिंह ने साझा किया है कि साधारण उपायों से फसल को बचा लिया जा सकता है। रेहू, कतला, मृगल जैसी प्रजातियों को ठंड से बचाने का पूरा फॉर्मूला आज ही अपनाएँ, ताकि फरवरी-मार्च में बाजार में ऊँचे दाम पर बेच सकें।
ठंड का मछलियों पर असर
ठंड पड़ते ही मछलियाँ सक्रियता खो देती हैं और तालाब के तल पर जमा हो जाती हैं। केएन सिंह बताते हैं कि इस दौरान भोजन ग्रहण 70-80 प्रतिशत तक कम हो जाता है, कभी-कभी पूरी तरह बंद भी। फलस्वरूप विकास रुक जाता है और पैदावार 20-25 प्रतिशत घट सकती है। सबसे बड़ी समस्या फंगस और बैक्टीरिया का संक्रमण है, जो कमजोर मछलियों को तेजी से निगल लेता है। सर्दियों में बाजार की डिमांड बढ़ जाती है – रेहू 200-250 रुपये किलो, कतला 180-220 – लेकिन नुकसान हुआ तो सारा हिसाब गड़बड़ा जाता है। अभी से तालाब की निगरानी बढ़ा दें, वरना मौका हाथ से निकल जाएगा।
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पानी का तापमान स्थिर रखें
सबसे पहले तापमान को 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच बनाए रखना जरूरी है। सिंह की सलाह है कि तालाब का पुराना पानी हल्का-हल्का बदलते रहें, खासकर बोरवेल से ताजा पानी डालें तो बेहतर। अगर तापमान 15 डिग्री से नीचे चला जाए तो मछलियाँ झुंड में इकट्ठी हो जाती हैं, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा दोगुना हो जाता है। तालाब के किनारों पर बाँस, पॉलीथिन या प्लास्टिक शीट की शेडिंग लगाएँ – इससे ठंडी हवा सीधे पानी पर न पड़े और तापमान स्थिर रहे। रोजाना सुबह-शाम पानी की जाँच करें, अगर ठंडक ज्यादा लगे तो तुरंत एक्शन लें।
ऑक्सीजन की कमी न हो
सर्दियों में पानी की ऊपरी सतह ठंडी हो जाती है, नीचे ऑक्सीजन कम पड़ने लगता है। केएन सिंह कहते हैं कि ये सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि कम ऑक्सीजन से मछलियाँ बेहोश-सी हो जाती हैं। हर तालाब में एरेटर या ऑक्सीजन पंप रोजाना 4-6 घंटे चलाएँ, खासकर सुबह और शाम के समय। अगर उपकरण न हो तो पानी हिलाने के लिए पेड़ की टहनियाँ या नाव से हलचल करें। जाँच के लिए सस्ते ऑक्सीजन मीटर लें – स्तर 4-6 मिलीग्राम प्रति लीटर से नीचे न जाए। इससे न सिर्फ मछलियाँ स्वस्थ रहेंगी, बल्कि ग्रोथ भी तेज होगी।
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फंगस-बैक्टीरिया से बचाव
संक्रमण से बचने के लिए एंटीफंगल दवाओं का इस्तेमाल अनिवार्य है। सिंह सुझाते हैं कि तालाब में 2-3 ग्राम नमक प्रति क्यूबिक मीटर पानी डालें – ये सस्ता और कारगर उपाय है, जो फंगस को जड़ से खत्म कर देता है। अगर लक्षण दिखें जैसे सफेद धब्बे या मछलियाँ ऊपर तैरने लगें, तो तुरंत कार्बनिक फंगीसाइड या पोटैशियम परमैंगनेट का हल्का घोल छिड़कें। दवा डालने से पहले तालाब का 10-15 प्रतिशत पानी निकाल लें। रोजाना मछलियों की चेकिंग करें – कोई बीमारी पकड़ में आते ही इलाज शुरू कर दें, देरी से पूरा तालाब प्रभावित हो सकता है।
पंगासियस से दूर रहें
सभी किसानों को लालच से बचना चाहिए। केएन सिंह की सलाह है कि पंगासियस मछली का पालन ठंड में न करें, इसे तालाब से निकाल दें क्योंकि इसमें संक्रमण सबसे तेजी से फैलता है। रेहू, कतला, मृगल, सिल्वर कार्प या ग्लास कार्प जैसी देसी प्रजातियाँ ज्यादा सुरक्षित हैं। पानी की निकासी अच्छी न हो तो रिस्क बिल्कुल न लें – तालाब साफ रखें, कचरा न फैलने दें। भोजन कम दें, लेकिन पौष्टिक रखें चावल का चूरा या दाना मछलियों को हल्का-हल्का खिलाएँ।
उत्तर प्रदेश में हजारों किसान इन प्रजातियों से लाखों कमा रहे हैं, लेकिन ठंड की मार से बचाव ही असली कुंजी है। केएन सिंह जैसे अनुभवी किसानों की ये सलाह अपनाएँ तो नुकसान से बच जाएँगे और सर्दियों में भी अच्छी पैदावार मिलेगी। अभी से तालाब का दौरा बढ़ा दें, क्योंकि दिसंबर की ठंड किसी को बख्शेगी नहीं।
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