किसान साथियों, फूट ककड़ी, जिसे स्थानीय भाषा में काकड़िया, काचरा, या डांगरा भी कहा जाता है, एक ऐसी नकदी फसल है जो कम लागत में लाखों रुपये का मुनाफा दे सकती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और विशेष रूप से राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में यह फसल छोटे और सीमांत किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। फूट ककड़ी को ताजा सलाद, रायता, सब्जी, या सुखाकर (खेलड़ा) पूरे साल उपयोग किया जाता है। सूखे फल उपहार के रूप में भी लोकप्रिय हैं, खासकर राजस्थानी संस्कृति में। केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान (ICAR-CIAH), बीकानेर, की उन्नत किस्मों और वैज्ञानिक तकनीकों ने इसकी खेती को और लाभकारी बनाया है। यह लेख गाँव के किसानों को फूट ककड़ी की वैज्ञानिक खेती की पूरी जानकारी देगा।
फूट ककड़ी की खेती: कम लागत, उच्च मुनाफा
फूट ककड़ी की खेती की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कम उपजाऊ और शुष्क मिट्टी में भी उगाई जा सकती है। यह फसल 45-48 डिग्री सेल्सियस तक के उच्च तापमान को सहन करती है और कम पानी में अच्छी पैदावार देती है। फरवरी-मार्च में बुवाई और 115-120 दिनों में फसल तैयार होने के कारण यह गर्मियों और वर्षाकाल में उगाने के लिए उपयुक्त है। बाजार में ताजा फल और सूखे फल (खेलड़ा) की मांग बढ़ रही है, जिससे किसानों को स्थानीय मंडियों, होटलों, और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अच्छा दाम मिलता है। एक एकड़ में 125-130 क्विंटल की पैदावार से 2-3 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा संभव है।
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी की जरूरत
फूट ककड़ी की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु आदर्श है। बीज अंकुरण के लिए 25-35 डिग्री सेल्सियस और पौधों व फलों के विकास के लिए 32-38 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान का गर्म मौसम इसके लिए अनुकूल है। रेतीली, बलुई-दोमट, या भारी मिट्टी में यह फसल अच्छी तरह पनपती है, बशर्ते जल निकासी उचित हो। मिट्टी का pH 6.5-8.5 होना चाहिए। जलभराव वाली मिट्टी फसल को नुकसान पहुँचाती है, इसलिए खेत में नालियाँ बनाकर पानी की निकासी सुनिश्चित करें। मिट्टी की जाँच स्थानीय कृषि केंद्र से करवाएँ, ताकि पोषक तत्वों की कमी का पता लगे।
उन्नत किस्में: पैदावार और गुणवत्ता की गारंटी
उन्नत किस्में फूट ककड़ी की खेती को अधिक लाभकारी बनाती हैं। कुछ प्रमुख किस्में हैं:
CIAH-FC-1: ICAR-CIAH, बीकानेर द्वारा विकसित, उच्च पैदावार और सूखे फलों के लिए उपयुक्त।
Arka Sheetal: मध्यम आकार के हरे फल, कुरकुरा गूदा, 90-100 दिनों में तैयार।
Karnal Selection: लंबे, हल्के हरे फल, स्वादिष्ट, और अधिक पैदावार।
इन किस्मों को ICAR-CIAH, स्थानीय कृषि केंद्रों, या प्रमाणित नर्सरी से खरीदें। उन्नत बीजों का उपयोग पैदावार को 20-30% तक बढ़ा सकता है।
खेत की तैयारी और बुवाई का सही तरीका
फूट ककड़ी की खेती (Foot Kakdi Ki Kheti) शुरू करने से पहले खेत की अच्छी तरह तैयारी करें। खेत में 3-4 गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी और हवादार हो जाए। पुरानी फसल के अवशेष और खरपतवार हटाएँ। बुवाई से पहले हल्की सिंचाई करें, क्योंकि नम मिट्टी में बीज अच्छे अंकुरित होते हैं। प्रति एकड़ 1 किलो बीज पर्याप्त है। बीजों को बैनलेट या बविस्टिन (2.5 ग्राम प्रति किलो) से उपचारित करें, ताकि मिट्टी जनित फफूंद और बीमारियों से बचाव हो। बुवाई फरवरी-मार्च में कतारों में करें। कतार से कतार की दूरी 1.5-2 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30-45 सेंटीमीटर रखें। एक जगह 2-3 बीज बोएँ और अंकुरण के 10-12 दिन बाद एक स्वस्थ पौधा रखें।
खाद और उर्वरक: वैज्ञानिक प्रबंधन
खेत तैयार करते समय प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिलाएँ। यह मिट्टी की उर्वरता और जल धारण क्षमता बढ़ाती है। रासायनिक खाद के लिए प्रति हेक्टेयर 80 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस, और 60 किलो पोटाश उपयोग करें। फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा, और नाइट्रोजन का एक-तिहाई हिस्सा बुवाई से पहले नालियों में डालें। बाकी नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बाँटकर बुवाई के 25-30 दिन (पौधों की वृद्धि के समय) और 35-40 दिन बाद (फूल आने से पहले) दें। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर यूरिया (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या मल्टी-माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का छिड़काव करें।
सिंचाई: कम पानी, अधिक पैदावार
फूट ककड़ी कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है, जो इसे शुष्क क्षेत्रों के लिए आदर्श बनाती है। बुवाई के बाद पहली हल्की सिंचाई करें, ताकि बीज अंकुरित हो सकें। इसके बाद नाली या बूंद-बूंद (ड्रिप) सिंचाई विधि अपनाएँ। गर्मियों में 7-10 दिन और वर्षाकाल में मौसम के आधार पर सिंचाई करें। ड्रिप सिंचाई से पानी और खाद की 30-40% बचत होती है, और पैदावार 15-20% बढ़ती है। जलभराव से बचें, क्योंकि यह जड़ों को नुकसान पहुँचाता है और फफूंद रोगों का खतरा बढ़ाता है। स्थानीय जलवायु के आधार पर सिंचाई की आवृत्ति तय करें।
कीट और रोग नियंत्रण: वैज्ञानिक उपाय
फूट ककड़ी में फल मक्खी, पत्ती खाने वाले कीट, और फफूंद जनित रोग (जैसे पाउडरी मिल्ड्यू) प्रमुख समस्याएँ हैं। फल मक्खी को नियंत्रित करने के लिए मेलाथियॉन (2 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें या फेरोमोन ट्रैप लगाएँ। पत्ती खाने वाले कीटों के लिए नीम तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) या जैविक कीटनाशक उपयोग करें। पाउडरी मिल्ड्यू के लिए बविस्टिन (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। खेत में नियमित निगरानी करें और रोग के शुरुआती लक्षण दिखते ही उपाय करें। जैविक खेती के लिए नीम-आधारित कीटनाशक और ट्राइकोडर्मा का उपयोग लाभकारी है। खेत को साफ रखें और पुराने पौधों के अवशेष हटाएँ।
फसल कटाई और पैदावार का प्रबंधन
बुवाई के 55-60 दिन बाद फूल और 115-120 दिन बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार होते हैं। ताजा फल हरे और कुरकुरे रहते तुड़ें, ताकि सलाद और सब्जी के लिए बाजार में अच्छा दाम मिले। सूखे फलों (खेलड़ा) के लिए फलों को पौधे पर पकने दें। एक एकड़ में 125-130 क्विंटल फल की पैदावार हो सकती है। ताजा फल 20-30 रुपये प्रति किलो और सूखे फल 100-150 रुपये प्रति किलो बिकते हैं। फलों को सावधानी से तुड़ें और छायादार स्थान में रखें। कोल्ड स्टोरेज या प्लास्टिक क्रेट में भंडारण से फल लंबे समय तक ताजा रहते हैं।
लागत और मुनाफा: लाखों की कमाई
फूट ककड़ी की खेती में प्रति एकड़ 20,000-30,000 रुपये की लागत आती है। इसमें बीज (10,000 रुपये प्रति किलो), गोबर खाद (5,000 रुपये), रासायनिक उर्वरक (3,000 रुपये), सिंचाई (2,000 रुपये), और मजदूरी (5,000-10,000 रुपये) शामिल हैं। ड्रिप सिंचाई की लागत 15,000 रुपये अतिरिक्त हो सकती है, लेकिन यह लंबे समय में फायदेमंद है। 125-130 क्विंटल फल 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकने पर 2.5-3 लाख रुपये की आय होती है। लागत हटाने के बाद 2-2.5 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा मिलता है। सूखे फल 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 10 क्विंटल बिकने पर 1 लाख रुपये की अतिरिक्त आय हो सकती है। स्थानीय मंडियों या होटलों में बिक्री से मुनाफा बढ़ाया जा सकता है।
आज शुरू करें, गाँव को समृद्ध बनाएँ
फूट ककड़ी की खेती किसानों के लिए कम लागत और बंपर मुनाफे का सुनहरा अवसर है। यह फसल शुष्क क्षेत्रों में भी अच्छी पैदावार देती है और बाजार में इसकी मांग सालभर रहती है। वैज्ञानिक तकनीकों और उन्नत किस्मों के साथ आप अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं। आज ही अपने नजदीकी कृषि केंद्र से संपर्क करें, उन्नत बीज और सब्सिडी की जानकारी लें, और खेती शुरू करें। यह न केवल आपके परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करेगी, बल्कि गाँव की समृद्धि और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देगी।
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