Gajar Ki Kheti: गाजर एक पौष्टिक और मांग वाली फसल है, जिसकी खेती से किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। यह फसल 70-90 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 8-10 टन तक उत्पादन देती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर गाजर की खेती होती है। यहाँ हम गाजर की खेती की पूरी प्रक्रिया और सफलता के टिप्स बता रहे हैं।
गाजर की खेती के मुख्य लाभ
गाजर की खेती के कई फायदे हैं। सबसे पहले, यह फसल कम समय में तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को जल्दी आमदनी मिलती है। सर्दियों के मौसम में बाजार में इसकी मांग अधिक होती है, जिससे अच्छे दाम मिलते हैं। गाजर में विटामिन-ए, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो आँखों और पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद होते हैं। इसकी खेती में लागत भी कम आती है क्योंकि इसे कम पानी और उर्वरक की जरूरत होती है।
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
गाजर की खेती के लिए ठंडी जलवायु (15-30°C) सबसे उपयुक्त होती है। गर्मियों में छायादार स्थान पर भी इसकी खेती की जा सकती है। मिट्टी के लिए रेतीली दोमट या कीचड़ वाली मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए। अगर मिट्टी अम्लीय है, तो चूना डालकर पीएच संतुलित करें।
खेत की तैयारी और बुआई
गाजर की खेती के लिए खेत की अच्छी तैयारी जरूरी है। सबसे पहले गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाएँ। इसके बाद प्रति हेक्टेयर 20-25 टन गोबर की सड़ी खाद मिलाएँ। ताजा गोबर या अधपकी खाद का उपयोग न करें, क्योंकि इससे फसल को नुकसान हो सकता है।
बीज बोने से पहले उन्हें 12-24 घंटे पानी में भिगोकर रखें। इससे बीजों के अंकुरित होने में कम समय लगता है। देसी किस्म की गाजर की बुआई अगस्त-सितंबर में और यूरोपीय किस्म की बुआई अक्टूबर-नवंबर में करें। एक हेक्टेयर खेत में 4-6 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को लाइन से लाइन 45 सेमी और पौधे से पौधे 7.5 सेमी की दूरी पर बोएँ। बीज की गहराई 1.5 सेमी से अधिक न हो। बुआई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
सिंचाई और खरपतवार प्रबंधन
गाजर की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। बुआई के बाद पहली सिंचाई तुरंत करें। गर्मियों में 6-7 दिन के अंतराल पर और सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। कटाई से 2-3 सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर दें, ताकि जड़ें अच्छी तरह विकसित हो सकें।
खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक हर्बिसाइड (जैसे पेंडीमेथालिन) का छिड़काव करें। इसके बाद भी अगर खेत में खरपतवार बच गए हों, तो उन्हें हाथ से निराई-गुड़ाई करके हटा दें। खेत को हवादार बनाए रखने के लिए समय-समय पर मिट्टी को हल्का ढीला करें।
रोग और कीट नियंत्रण
गाजर की फसल में पत्ती धब्बा और जड़ सड़न जैसे रोग हो सकते हैं। इनके नियंत्रण के लिए नीम का तेल या मैन्कोजेब का छिड़काव करें। कीटों में एफिड्स और कटवर्म सबसे नुकसानदायक होते हैं। इन्हें नियंत्रित करने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
कटाई और उत्पादन
गाजर की फसल 70-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब जड़ें पूरी तरह विकसित हो जाएँ और उनका रंग गहरा नारंगी हो जाए, तो कटाई शुरू करें। एक हेक्टेयर खेत से 8-10 टन तक गाजर का उत्पादन होता है। कटाई के बाद गाजर को साफ करके छाया में सुखाएँ और उन्हें बाजार में बेचें।
बाजार और मुनाफा
सर्दियों के मौसम में गाजर की मांग बाजार में अधिक होती है। शहरी बाजारों, होटल और जूस उद्योग में इसकी अच्छी खपत होती है। गाजर का भाव ₹20-40 प्रति किलो तक हो सकता है। एक हेक्टेयर खेती से किसान ₹2-4 लाख तक कमा सकते हैं। सीधे मंडी या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (जैसे e-NAM) पर बेचकर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।
विशेषज्ञ सलाह
गाजर की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन करें, जैसे पूसा मेघली, नैन्टीस, या पंत गाजर-3। फसल चक्र अपनाकर मिट्टी की उर्वरता बनाए रखें। गाजर के बाद दलहनी फसल लगाएँ, जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बनी रहे।
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