गन्ना किसानों के लिए गुलाबी चिकटा और काउन मिलीबग की पहचान व प्रबंधन, फसल को कीटों से बचाएँ

उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की मेहनत से लाखों हेक्टेयर ज़मीन पर हर साल मिठास उगती है। लेकिन गुलाबी चिकटा (मिलीबग) और काउन मिलीबग जैसे कीट इस मेहनत पर पानी फेर सकते हैं। ये छोटे-छोटे कीट गन्ने की जड़ों, तनों, और पत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे फसल की पैदावार और चीनी की मात्रा कम हो सकती है। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान (IISR), लखनऊ के विशेषज्ञों की सलाह और देसी नुस्खों से इन कीटों की पहचान और प्रबंधन आसान हो सकता है। आइए, जानते हैं कि इन कीटों को कैसे पहचानें और इनका प्रबंधन कैसे करें।

गुलाबी चिकटा की पहचान

गुलाबी चिकटा, जिसे वैज्ञानिक भाषा में कहते हैं, गन्ने का एक खतरनाक कीट है। यह छोटा, गुलाबी रंग का कीट पौधे की गांठों, तनों, और पत्तियों के निचले हिस्सों पर सफेद, मोम जैसे पदार्थ के साथ दिखाई देता है। इसका मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर अंडे देता है, और इसके लार्वा गन्ने का रस चूसकर पौधे को कमज़ोर करते हैं। प्रभावित पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं, और तने सूखकर भूरे हो जाते हैं। गर्म और नम मौसम, खासकर जुलाई-अगस्त में, इस कीट का प्रकोप बढ़ाता है। अगर समय रहते इसकी पहचान न हो, तो यह 60-70% तक फसल को नुकसान पहुँचा सकता है।

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काउन मिलीबग का खतरा

काउन मिलीबग भी गन्ने की फसल के लिए नुकसानदायक है। यह कीट गुलाबी चिकटा से थोड़ा अलग होता है, क्योंकि इसके शरीर पर सफेद, मोम जैसा आवरण ज़्यादा मोटा होता है। यह गन्ने की जड़ों, तनों, और पत्तियों पर हमला करता है। प्रभावित पौधों की वृद्धि रुक जाती है, और पत्तियाँ मुरझाने लगती हैं। काउन मिलीबग की मादा पत्तियों के जोड़ों या मिट्टी के पास अंडे देती है, और इसके लार्वा पौधे का रस चूसते हैं। यह कीट खासकर सावन और भादो के महीनों में ज़्यादा सक्रिय होता है। अगर खेत में नमी ज़्यादा हो और खरपतवार न हटाए जाएँ, तो इसका प्रकोप बढ़ जाता है। किसानों को खेत में सफेदскільки

कीटों की पहचान के लिए आसान तरीके

इन कीटों को समय रहते पहचानना बहुत ज़रूरी है। गुलाबी चिकटा की पहचान के लिए पत्तियों के निचले हिस्से और तनों की गांठों पर सफेद, मोम जैसे पदार्थ को देखें। काउन मिलीबग के लिए जड़ों के पास और तनों पर सफेद, चिपचिपा आवरण देखें। प्रभावित पौधों की पत्तियाँ पीली या भूरी हो सकती हैं, और तने कमज़ोर दिख सकते हैं। नियमित खेत निरीक्षण के दौरान, खासकर सुबह के समय, इन कीटों को आसानी से देखा जा सकता है। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि कीटों की शुरुआती पहचान के लिए खेत की मिट्टी और पौधों को हर हफ्ते जाँचें।

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जैविक प्रबंधन के देसी नुस्खे

गुलाबी चिकटा और काउन मिलीबग का प्रबंधन देसी और जैविक तरीकों से भी किया जा सकता है। सबसे पहले, खेत को साफ रखें और खरपतवार हटाएँ, क्योंकि ये कीट खरपतवारों में छिपकर बढ़ते हैं। नीम के तेल को पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करें। इसके लिए 5 मिलीलीटर नीम का तेल 1 लीटर पानी में मिलाएँ और सुबह के समय छिड़कें। यह कीटों को भगाने में कारगर है। इसके अलावा, गोबर की खाद को अच्छी तरह सड़ाकर खेत में डालें, ताकि मिट्टी की सेहत बनी रहे और पौधे मज़बूत हों। अगर खेत में पानी का जमाव हो, तो उसे निकालें, क्योंकि नमी इन कीटों को बढ़ावा देती है। ये देसी नुस्खे सस्ते और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं।

रासायनिक प्रबंधन के सही तरीके

अगर कीटों का प्रकोप ज़्यादा हो, तो रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ सकता है। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ कोराजेन (18.5% तरल) की सलाह देते हैं। इसकी 150 मिलीलीटर मात्रा को 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। छिड़काव से पहले खेत में हल्की सिंचाई करें, ताकि मिट्टी नम रहे। दवा डालने के बाद फिर से हल्की सिंचाई करें।

यह दवा गुलाबी चिकटा और काउन मिलीबग दोनों को नियंत्रित करती है। इसके अलावा, बाविस्टिन जैसे कवकनाशी का उपयोग बीज उपचार के लिए करें। 2 ग्राम बाविस्टिन को 1 लीटर पानी में मिलाकर गन्ने के टुकड़ों को डुबोएँ और फिर बुवाई करें। यह कीटों और कवक रोगों से बचाव करता है। कीटनाशकों का इस्तेमाल करने से पहले किसी स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से सलाह ज़रूर लें।

कीट-प्रतिरोधी गन्ना किस्में चुनें

गन्ने की कुछ किस्में कीटों के प्रति ज़्यादा प्रतिरोधी होती हैं। उदाहरण के लिए, CoLk-15201 (इक्षु-11) और Co-15023 जैसी किस्में गुलाबी चिकटा और अन्य कीटों के प्रति सहनशील हैं। ये किस्में उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त हैं और 500 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार दे सकती हैं। इन किस्मों में शर्करा की मात्रा भी 17-18% तक होती है, जो चीनी मिलों के लिए फायदेमंद है। अपने जिले के लिए स्वीकृत किस्मों की जानकारी स्थानीय कृषि केंद्र या चीनी मिलों से लें, क्योंकि गैर-स्वीकृत किस्में मिलें नहीं खरीदतीं। इन किस्मों को चुनकर आप कीटों से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।

इन कीटों से बचाव के लिए खेत की नियमित निगरानी बहुत ज़रूरी है। हर हफ्ते खेत का दौरा करें और पौधों की जड़ों, तनों, और पत्तियों को ध्यान से देखें। अगर कीट दिखें, तो तुरंत उपाय करें। खेत में पानी का प्रबंधन सही रखें, क्योंकि ज़्यादा नमी कीटों को बढ़ावा देती है। साथ ही, गन्ने के साथ सह-फसलें जैसे प्याज, मूंग, या धनिया लगाएँ, जो कीटों को कम करने में मदद करती हैं। ये फसलें गन्ने से प्रतिस्पर्धा नहीं करतीं और मिट्टी को पोषण भी देती हैं। खेत में जैविक खाद और देसी नुस्खों का नियमित इस्तेमाल पौधों को मज़बूत बनाता है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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