रबी सीजन में गेहूँ की बुवाई पूरी होने के बाद किसान भाइयों का सबसे बड़ा सवाल यही रहता है कि पहली सिंचाई के साथ कौन-सी खाद डालें, जिससे फसल की शुरुआत मजबूत हो और अंत में अच्छी पैदावार मिले। गाँवों में अक्सर देखा जाता है कि सही समय पर सही उर्वरक न देने से पौधा कमजोर रह जाता है, पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, फूट कम आती है और बालियाँ खाली रह जाती हैं।
लेकिन अगर पहली सिंचाई में सही पोषक तत्व दिए जाएँ, तो जड़ें गहरी बनती हैं, पौधा तेजी से बढ़ता है, फूट अच्छी आती है और दाने भरपूर भरते हैं। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि पहली सिंचाई फसल की नींव होती है – इसे मजबूत बनाओ तो पूरी फसल तंदरुस्त रहती है।
पहली सिंचाई कब और क्यों जरूरी है
पहली सिंचाई बुवाई के 18-21 दिन बाद करनी चाहिए, जब पौधे की जड़ें 3-4 इंच तक फैल चुकी हों। बहुत जल्दी पानी देने से जड़ें सतह पर रह जाती हैं और देर करने से पौधा पानी की कमी से कमजोर हो जाता है। इस समय पौधे को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और सल्फर जैसे पोषक तत्वों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। सही उर्वरक देने से पौधा हरा-भरा रहता है, टिलरिंग (फूट) अच्छी होती है और आगे चलकर बालियाँ भारी बनती हैं। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में ठंड और पाले का खतरा रहता है, इसलिए पहली सिंचाई में पोटाश और सल्फर जरूर शामिल करें।
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मुख्य उर्वरक नाइट्रोजन (यूरिया)
नाइट्रोजन गेहूँ की बढ़वार की रफ्तार बढ़ाती है। पहली सिंचाई में कुल यूरिया का आधा हिस्सा डालें। प्रति एकड़ 18-22 किलो यूरिया (या 45-50 किलो प्रति हेक्टेयर) पर्याप्त है। बाकी आधा दूसरी सिंचाई में डालें। इससे पौधे की पत्तियाँ हरी-भरी रहती हैं, फूट ज्यादा आती है और पौधा बीमारियों से लड़ने की ताकत पाता है। सिर्फ यूरिया अकेले डालने से पौधा लंबा तो होता है, लेकिन कमजोर रह जाता है – इसलिए इसे अन्य उर्वरकों के साथ मिलाकर दें।
फॉस्फोरस की भूमिका (DAP या SSP)
फॉस्फोरस जड़ों का विकास करता है और पौधे को ऊर्जा देता है। अगर बुवाई के समय DAP नहीं डाला है तो पहली सिंचाई में 20-25 किलो DAP प्रति एकड़ जरूर डालें। यदि बुवाई में डाल चुके हैं तो दोबारा की जरूरत नहीं। DAP में नाइट्रोजन भी होता है, इसलिए यह दोहरा फायदा देता है। इससे जड़ें गहरी जाती हैं, पौधा मजबूत बनता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। गाँवों में मिट्टी में फॉस्फोरस की कमी आम है, इसलिए इसे नजरअंदाज न करें।
पोटाश का महत्व (MOP)
पोटाश ठंड, पाले और सूखे से फसल की रक्षा करता है। पहली सिंचाई में 7-10 किलो MOP प्रति एकड़ डालें। इससे तने सख्त होते हैं, दाने मोटे और भारी बनते हैं और पौधा ठंड सहन कर पाता है। उत्तर भारत में जनवरी-फरवरी में पाला पड़ने का खतरा रहता है, इसलिए पोटाश को कभी न छोड़ें। यह दीर्घकालिक असर देता है और फसल की गुणवत्ता सुधारता है।
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सल्फर क्यों जरूरी है
गाँवों में सल्फर की कमी सबसे आम समस्या है। इसकी कमी से पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और पैदावार कम हो जाती है। पहली सिंचाई में 10-12 किलो बेंटोनाइट सल्फर या घुलनशील सल्फर प्रति एकड़ डालें। इससे पत्तियों का रंग गहरा हरा रहता है, प्रोटीन बढ़ता है और जड़ें मजबूत होती हैं। सल्फर रोगों से भी बचाव करता है।
अगर मिट्टी में जिंक या आयरन की कमी है तो पहली सिंचाई के 25-30 दिन बाद जिंक सल्फेट 5-6 किलो प्रति एकड़ स्प्रे करें। खाद डालते समय फरो में डालें, पत्तियों पर न पड़ने दें। सिंचाई हल्की रखें ताकि खाद बह न जाए। सही उर्वरक और सही सिंचाई से फूट 25-35% ज्यादा आती है, बालियाँ भरपूर होती हैं और पैदावार में 4-6 क्विंटल प्रति एकड़ की बढ़त मिलती है।
छोटी सावधानी, बड़ा फायदा
पहली सिंचाई में यूरिया (18-22 किलो), पोटाश (7-10 किलो), सल्फर (10-12 किलो) और जरूरत हो तो DAP डालें। यह छोटा-सा कदम आपकी पूरी फसल बदल देगा। फसल घनी, तंदरुस्त और मजबूत बनेगी, पाला भी कम नुकसान करेगा और अंत में बाजार में अच्छा भाव मिलेगा। इस रबी में ये टिप्स अपनाएँ और बंपर पैदावार लें।
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