किसान भाइयों, ड्रैगन फ्रूट की खेती बिहार में नया रंग ला रही है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर ने इसे और आसान बनाने के लिए कमाल कर दिखाया। विश्वविद्यालय ने ड्रैगन फ्रूट की कटाई के लिए दो कम लागत वाले, हाथ से चलने वाले औजारों के भारतीय पेटेंट हासिल किए। ये औजार कटाई को तेज और सुरक्षित बनाते हैं, साथ ही पौधे और फल को नुकसान से बचाते हैं। दूसरी ओर, बिहार सरकार की ड्रैगन फ्रूट विकास योजना 40 प्रतिशत सब्सिडी देकर किसानों को इस विदेशी फल की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है। आइए, इन औजारों, खेती के तरीकों, और सब्सिडी की पूरी बात जानते हैं।
बीएयू के पेटेंटेड औजार
पहले ड्रैगन फ्रूट को तने से मोड़कर तोड़ा जाता था। यह तरीका कैक्टस प्रजाति के नाजुक पौधे को नुकसान पहुँचाता था। इससे फल का भंडारण समय कम हो जाता था और मंडी में दाम भी गिरता था। बीएयू, सबौर की शोध टीम डॉ. वसीम सिद्दीकी, डॉ. शमीम, डॉ. सत्यनारायण, डॉ. महेश, डॉ. सिंह, डॉ. फोजिया, और डॉ. सनोज कुमार ने दो नए हाथ से चलने वाले औजार बनाए हैं।
ये औजार कटाई को आसान और सटीक बनाते हैं। भागलपुर के एक किसान ने इनका इस्तेमाल किया, तो कटाई का समय 30 प्रतिशत कम हुआ और फलों की चमक बरकरार रही। ये औजार हल्के, टिकाऊ, और सस्ते हैं, जो छोटे से बड़े हर किसान के लिए फायदेमंद हैं। इससे फल बिना नुकसान तोड़े जा सकते हैं, जिससे भंडारण समय बढ़ता है और मंडी में ऊँचा दाम मिलता है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती: बिहार में बढ़ता रुझान
भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती सबसे ज्यादा गुजरात, कर्नाटक, और महाराष्ट्र में होती है, लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश अब तेजी से इस दौड़ में शामिल हो रहे हैं। बिहार की दोमट मिट्टी और गर्म जलवायु इस फल के लिए मुफीद है। यह कम पानी में उगता है, जो सूखा प्रभावित इलाकों के लिए वरदान है। भारत में तीन मुख्य किस्में उगाई जाती हैं—सफेद गूदा, लाल गूदा, और पीला गूदा।
बिहार में रेड लेडी और वियतनामी किस्में खूब पसंद की जाती हैं, क्योंकि ये मीठे और रसीले फल देती हैं। फरवरी-मार्च या जून-जुलाई बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय है। पौधे 12-15 महीने में फल देना शुरू करते हैं और तीसरे साल से पूरी पैदावार मिलती है। अच्छी देखभाल से एक एकड़ में 8-13.5 टन फल मिल सकते हैं, जो 100-400 रुपये प्रति किलो बिकते हैं। इससे 5-25 लाख रुपये का मुनाफा हो सकता है।
बिहार में मुनाफे की राह
ड्रैगन फ्रूट बिहार के लिए नया सोना है। बीएयू के पेटेंटेड औजार कटाई को आसान और फल की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं। एक हेक्टेयर से 20-30 टन फल मिल सकते हैं, और 100-400 रुपये प्रति किलो के दाम से 10-30 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। सब्सिडी के साथ शुरुआती लागत 4.5 लाख रुपये तक कम हो जाती है, जिससे मुनाफा कई गुना बढ़ता है। भागलपुर के एक किसान ने एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट लगाकर तीसरे साल में 8 लाख रुपये कमाए। यह फसल 15-20 साल तक फल देती है, जो लंबे समय तक मुनाफा सुनिश्चित करती है।
ये भी पढ़ें- केले की खेती पर सरकार दे रही ₹45,000 की सब्सिडी, जानिए कैसे उठाएं फायदा