यूरिया का जैविक विकल्प, पत्तियों से बनाएँ नाइट्रोजन खाद, बेंचकर करे छापरफाड़ कमाई!

किसान साथियों, यूरिया एक नाइट्रोजन युक्त रासायनिक खाद है, जो फसलों की वृद्धि और उत्पादन बढ़ाने में मदद करती है। लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग मिट्टी की उर्वरता, जल स्रोतों, और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है। वर्तमान में, किसान जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं, और ग्लिरिसिडिया (गिरिपुष्प) यूरिया का एक शानदार जैविक विकल्प बनकर उभरा है। यह तेजी से बढ़ने वाला फलीदार पेड़, जिसकी ऊँचाई 12 मीटर तक हो सकती है, न केवल मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है, बल्कि इसकी पत्तियों से जैविक नाइट्रोजन खाद भी बनाई जा सकती है। यह लेख ग्लिरिसिडिया की खेती, नाइट्रोजन स्थिरीकरण, पत्तियों से खाद बनाने की प्रक्रिया, लागत, मुनाफा, और पर्यावरणीय लाभों को विस्तार से बताएगा।

ग्लिरिसिडिया क्या है?

ग्लिरिसिडिय,एक फैबेसी कुल का एक बहुउद्देशीय पेड़ है। इसे भारत में गिरिपुष्प, सीमाक्कोन्ना (मलयालम), और मादरे दे काकाओ (लैटिन अमेरिकी नाम) के नाम से जाना जाता है। यह शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में आसानी से उगता है और राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, और दक्षिण भारत में लोकप्रिय है। ग्लिरिसिडिया की पत्तियाँ प्रोटीन (20-30%) से भरपूर होती हैं, और इसकी जड़ें वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर करती हैं।

यह पेड़ 12 मीटर तक लंबा हो सकता है, लेकिन छँटाई के साथ इसे 2-3 मीटर की ऊँचाई पर रखा जाता है, ताकि पत्तियाँ और शाखाएँ आसानी से काटी जा सकें। ग्लिरिसिडिया का उपयोग हरी खाद, चारा, जलाऊ लकड़ी, जीवित बाड़, और छाया प्रदान करने में होता है। इसकी तेज वृद्धि और कम रखरखाव इसे छोटे और मध्यम किसानों के लिए आदर्श बनाता है।

नाइट्रोजन स्थिरीकरण की प्रक्रिया

नाइट्रोजन फसलों के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है, जो पत्तियों के हरे रंग (क्लोरोफिल) और प्रोटीन संश्लेषण में मदद करता है। वायुमंडल में 78% नाइट्रोजन मौजूद है, लेकिन पौधे इसे सीधे उपयोग नहीं कर सकते। ग्लिरिसिडिया की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया होते हैं, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में बदलते हैं। यह अमोनिया मिट्टी में नाइट्रेट के रूप में परिवर्तित होकर पौधों के लिए उपलब्ध होती है।

ग्लिरिसिडिया प्रति हेक्टेयर 20-30 किलोग्राम नाइट्रोजन स्थिर कर सकती है, जो यूरिया की 40-60 किलोग्राम मात्रा के बराबर है। इससे न केवल रासायनिक खाद की लागत कम होती है, बल्कि मिट्टी की जैविक संरचना और सूक्ष्मजीवों की संख्या में भी सुधार होता है। यह प्रक्रिया टिकाऊ खेती को बढ़ावा देती है और मिट्टी के कटाव को रोकती है।

पत्तियों से जैविक नाइट्रोजन खाद बनाना

ग्लिरिसिडिया की पत्तियाँ हरी खाद के रूप में उपयोगी हैं, क्योंकि इनमें 2-3% नाइट्रोजन और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व (जैसे पोटैशियम, फॉस्फोरस) होते हैं। इनसे जैविक नाइट्रोजन खाद बनाने की प्रक्रिया सरल और लागत-प्रभावी है। यहाँ चरण-दर-चरण प्रक्रिया दी गई है:

 पत्तियों की कटाई: ग्लिरिसिडिया की ताजी, हरी पत्तियों और मुलायम शाखाओं को काटें। छँटाई हर 3-4 महीने में की जा सकती है, खासकर मानसून से पहले।

 सुखाना और काटना: पत्तियों को छाँव में 2-3 दिन सुखाएँ, ताकि नमी कम हो। सूखी पत्तियों को छोटे टुकड़ों में काट लें।

 मिश्रण तैयार करना: सूखी पत्तियों को गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट (1:1 अनुपात) के साथ मिलाएँ। इसमें नीम की पत्तियाँ या तुलसी के पत्ते (500 ग्राम प्रति क्विंटल) मिलाने से कीट नियंत्रण में मदद मिलती है।

 कम्पोस्टिंग: मिश्रण को गड्ढे (1x1x1 मीटर) में डालें। गड्ढे को मिट्टी और पत्तियों से ढक दें। हर 10-15 दिन में मिश्रण को पलटें और नमी बनाए रखने के लिए पानी का छिड़काव करें।

 उपयोग: 45-60 दिन बाद खाद तैयार हो जाती है। इसे खेत में बुवाई से पहले 2-3 टन प्रति एकड़ की दर से डालें।

यह खाद मिट्टी में नाइट्रोजन, कार्बनिक पदार्थ, और सूक्ष्मजीवों की मात्रा बढ़ाती है। ग्लिरिसिडिया की पत्तियाँ विघटित होने पर खरपतवारों को भी दबाती हैं, जिससे अतिरिक्त श्रम की बचत होती है।

ग्लिरिसिडिया की खेती कैसे करें

ग्लिरिसिडिया की खेती शुरू करना आसान और किफायती है। यह शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में कम पानी और रखरखाव में उगता है। खेती की प्रक्रिया निम्नलिखित है:

जलवायु और मिट्टी: ग्लिरिसिडिया 20-40 डिग्री सेल्सियस तापमान और 400-800 मिमी वर्षा में अच्छी तरह बढ़ता है। यह रेतीली, दोमट, और हल्की क्षारीय मिट्टी (पीएच 5-8) में उग सकता है। जलभराव वाली मिट्टी से बचें।

रोपण: ग्लिरिसिडिया को बीज या कलमों से उगाया जा सकता है। बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोएँ और राइजोबियम बैक्टीरिया से उपचारित करें। मानसून की शुरुआत (जुलाई-अगस्त) में 1×1 मीटर दूरी पर रोपण करें। कलमों के लिए 1-2 मीटर लंबी शाखाएँ 45 डिग्री कोण पर रोपें।

सिंचाई और देखभाल: पहले वर्ष में हर 15-20 दिन में हल्की सिंचाई करें। दूसरे वर्ष से यह वर्षा पर निर्भर हो सकता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपण के 1-2 महीने बाद निराई-गुड़ाई करें। छँटाई हर 3-4 महीने में करें, ताकि पत्तियाँ और शाखाएँ उपलब्ध रहें।

उपज: पहले वर्ष में पेड़ 3-5 मीटर तक बढ़ता है और प्रति पेड़ 5-10 किलोग्राम पत्तियाँ देता है। तीसरे वर्ष से एक हेक्टेयर में 10-15 टन पत्तियाँ मिल सकती हैं।

लागत और मुनाफा

ग्लिरिसिडिया की खेती में लागत बहुत कम आती है। प्रति एकड़ खेती की अनुमानित लागत निम्नलिखित है:

  • बीज/कलम: 500-1000 रुपये (1000 पौधे x 1-2 रुपये)।

  • खेत की तैयारी और रोपण: 2000-3000 रुपये।

  • सिंचाई और मजदूरी: 3000-5000 रुपये।

  • कुल लागत: 5500-9000 रुपये।

आय:

  • हरी खाद: प्रति एकड़ 4-5 टन पत्तियाँ x 2-3 रुपये/किलो = 8000-15,000 रुपये/वर्ष।

  • चारा: प्रति एकड़ 4-5 टन चारा x 5 रुपये/किलो = 20,000-25,000 रुपये/वर्ष।

  • जलाऊ लकड़ी: प्रति एकड़ 1-2 टन x 4 रुपये/किलो = 4000-8000 रुपये/वर्ष।

  • कुल आय: 32,000-48,000 रुपये/वर्ष।

  • मुनाफा: 25,000-40,000 रुपये/वर्ष।

इसके अलावा, ग्लिरिसिडिया से बनी खाद यूरिया की लागत (600-800 रुपये/50 किलो) बचाती है। प्रति एकड़ 100-150 किलोग्राम यूरिया की बचत से 1200-2400 रुपये की अतिरिक्त बचत होती है।

पर्यावरणीय और अन्य लाभ

ग्लिरिसिडिया की खेती पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है। यह मिट्टी के कटाव को रोकता है, कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करता है, और मिट्टी में कार्बनिक कार्बन बढ़ाता है। इसकी घनी पत्तियाँ खरपतवारों को दबाती हैं, जिससे रासायनिक खरपतवारनाशकों की जरूरत कम होती है।ग्लिरिसिडिया को जीवित बाड़ के रूप में उपयोग करने से खेत की सीमाएँ सुरक्षित रहती हैं और मवेशियों को चारा मिलता है। इसकी पत्तियाँ बकरियों और गायों के लिए प्रोटीन युक्त चारा हैं, जो दूध उत्पादन बढ़ाती हैं। जलाऊ लकड़ी के रूप में यह ग्रामीण परिवारों की ऊर्जा जरूरतें पूरी करता है।

ग्लिरिसिडिया यूरिया का एक प्रभावी जैविक विकल्प है, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण और हरी खाद के जरिए मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है। इसकी खेती कम लागत में शुरू हो सकती है और हरी खाद, चारा, और जलाऊ लकड़ी से अच्छा मुनाफा देती है। राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, और उत्तर प्रदेश के शुष्क क्षेत्रों के किसानों के लिए यह एक वरदान है। KVK, NMPB, और ICAR से संपर्क करें, प्रशिक्षण लें, और ग्लिरिसिडिया की खेती से अपनी आय बढ़ाएँ। यह न केवल आर्थिक स्वतंत्रता देगा, बल्कि टिकाऊ खेती और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देगा।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र पिछले तिन साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ मै ugc नेट क्वालीफाई हूँ भूगोल विषय से मै एक विषय प्रवक्ता हूँ , मुझे कृषि सम्बन्धित लेख लिखने में बहुत रूचि है मैंने सम्भावना संस्थान हिमाचल प्रदेश से कोर्स किया हुआ है |

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