कम जमीन, ज़बरदस्त आमदनी! गोंगुरा की खेती से कमाल कर रहे हैं किसान

किसान भाइयों, अगर आप अपने खेतों से कम मेहनत और कम लागत में बंपर कमाई करना चाहते हैं, तो गोंगुरा या रोज़ेल (खट्टा पालक) की खेती आपके लिए सुनहरा मौका है। यह हरी पत्तियों वाली फसल न सिर्फ स्वाद में खट्टी और लाजवाब है, बल्कि पोषण और औषधीय गुणों से भी भरपूर है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे गोंगुरा कहते हैं, तो हिंदी में खट्टा पालक, मराठी में अंबाडी, और तमिल में पुलिचाकेरी। इसकी चटनी, दाल, और सब्जी हर घर में पसंद की जाती है। बाजार में इसकी पत्तियाँ 50-100 रुपये प्रति किलो और बीज 200-300 रुपये प्रति किलो बिकते हैं। आइए जानें गोंगुरा की खेती के गुर, बुवाई से लेकर मुनाफे तक।

गोंगुरा की खासियत और फायदे

गोंगुरा, एक बहुवर्षीय पौधा है, जो अपनी खट्टी पत्तियों और फूलों के लिए मशहूर है। यह दो किस्मों में आता है: हरे तने वाला और लाल तने वाला, जिसमें लाल तने वाला ज्यादा खट्टा होता है। गोंगुरा की पत्तियाँ विटामिन A, C, B1, B2, आयरन, कैल्शियम, और एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर होती हैं। यह पाचन सुधारता है, रक्तचाप नियंत्रित करता है, और त्वचा रोगों में फायदेमंद है। इसकी खेती गर्म और शुष्क जलवायु में आसानी से होती है, और यह कम पानी में भी पनपता है। भारत में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, और कर्नाटक में इसकी खेती खूब होती है।

यह भी देखें- जाने कैसे करें करमुआ साग की जैविक खेती ? एक बीघा में कमाइए 1 लाख

खेत की तैयारी और बुवाई

गोंगुरा की खेती (Gongura Ki Kheti) के लिए दोमट, रेतीली, या चिकनी मिट्टी उपयुक्त है, जिसमें जल निकास अच्छा हो और पीएच 5.5-7 हो। खेत को तैयार करने के लिए 2-3 बार जुताई करें और प्रति एकड़ 5-7 टन गोबर की खाद डालें। बुवाई का सबसे अच्छा समय जून-जुलाई (बरसात शुरू होने से पहले) या फरवरी-मार्च है। बीज को 2-3 सेमी गहराई पर 30×30 सेमी की दूरी पर बोएँ। प्रति एकड़ 2-3 किलो बीज काफी हैं। बीज अंकुरण के लिए मिट्टी में हल्की नमी बनाए रखें। 7-10 दिन में अंकुरण शुरू हो जाता है। बुवाई से पहले बीज को नीम तेल या बाविस्टिन (1 ग्राम/किलो बीज) से उपचारित करें ताकि फफूंदी से बचाव हो।

बीज और पौध कहाँ से लें

गोंगुरा के बीज कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), उद्यानिकी विभाग, या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे Amazon, IndiaMART, और AgriBegri से खरीदे जा सकते हैं। श्री साई गंगोत्री खट्टा पालक बीज (500 बीज) 100-150 रुपये में उपलब्ध हैं। स्थानीय नर्सरियों से भी पौधे या बीज मिल सकते हैं। बीज खरीदते समय सुनिश्चित करें कि वे ताजा और प्रमाणित हों। कुछ किसान पौधों की कटिंग से भी खेती शुरू करते हैं, जो 20-30 सेमी लंबी होनी चाहिए।

यह भी देखें- साग-भांजी उगाने पर सरकार देगी 24000 हजार रुपये अनुदान, जल्दी करें आवेदन

कीट और रोग नियंत्रण

गोंगुरा में लीफ स्पॉट और फफूंदी जैसे रोग और एफिड्स, व्हाइटफ्लाई जैसे कीट परेशान कर सकते हैं। नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) या बेकिंग सोडा (1 चम्मच/लीटर) का छिड़काव हर 10-12 दिन में करें। फफूंदी से बचने के लिए मिट्टी में जलभराव न होने दें। जैविक कीटनाशक जैसे धनिया पाउडर (10 ग्राम/लीटर) या लहसुन-प्याज का रस (50 मिली/लीटर) भी प्रभावी हैं। प्रभावित पत्तियों को तुरंत हटाएँ और जलाएँ। पौधों के बीच 30 सेमी की दूरी रखें ताकि हवा का प्रवाह बना रहे।

कितना मुनाफा होता है

गोंगुरा की पत्तियों की कटाई बुवाई के 30-40 दिन बाद शुरू होती है। पहली कटाई में निचली पत्तियाँ तोड़ें, ताकि पौधा नया विकास कर सके। हर 15-20 दिन बाद पत्तियाँ तोड़ी जा सकती हैं। प्रति एकड़ 8-10 टन पत्तियाँ और 1-2 टन बीज मिलते हैं। पत्तियाँ 50-100 रुपये प्रति किलो और बीज 200-300 रुपये प्रति किलो बिकते हैं। कुल मिलाकर, प्रति एकड़ 2-3 लाख रुपये की आय हो सकती है। लागत (बीज, खाद, श्रम) 30,000-40,000 रुपये प्रति एकड़ है। गमलों में 10-15 पौधों से 10-15 किलो पत्तियाँ मिल सकती हैं, जो स्थानीय बाजार में 500-1000 रुपये कमा सकती हैं।

बाजार और उपयोग

गोंगुरा की पत्तियाँ और फूल चटनी, दाल, सब्जी, और अचार में इस्तेमाल होते हैं। आंध्र की गोंगुरा पचड़ी और चुक्का कुरा पप्पू मशहूर हैं। इसकी मांग होटल, रेस्तराँ, और सुपरमार्केट में बढ़ रही है। निर्यात के लिए मध्य पूर्व और यूरोप बड़े बाजार हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे BigBasket और Amazon Fresh पर भी बेच सकते हैं। सूखी पत्तियाँ और बीज की डिमांड भी अच्छी है।

गोंगुरा की खेती कम पानी, कम लागत, और कम मेहनत में बंपर मुनाफा देती है। तेलंगाना के किसान रामाराव जैसे कई लोग इसकी खेती से लाखों कमा रहे हैं। अपने नजदीकी KVK या उद्यानिकी विभाग से संपर्क करें, बीज लें, और अपने खेतों को इस खट्टी फसल से हरा-भरा करें। गोंगुरा न सिर्फ आपकी जेब भरेगा, बल्कि आपके आंगन को भी सुंदर बनाएगा!

यह भी देखें – मलमला या पर्सलेन साग की खेती कैसे करें, मात्र 20 दिन में हो जाती है तैयार, एक एकड़ से कमाइए 1 लाख

Author

  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

    View all posts

Leave a Comment