Goat Farming: आजकल गाँव-शहर में बकरी पालन का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है। छोटे किसान हों या नए पशुपालक, हर कोई बकरी पालन की ओर रुख कर रहा है, क्योंकि ये कम लागत में दूध, मीट और ब्रीडिंग से मोटी कमाई देता है। केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय भी इसे बढ़ावा दे रहा है। नेशनल लाइव स्टॉक मिशन (NLM) के तहत बकरी पालकों के लिए लोन और सब्सिडी की बौछार हो रही है।
मंत्रालय फेसबुक और एक्स पर बकरी पालन की सलाह देता है और बताता है कि कौन सी नस्ल किस राज्य में फायदेमंद है। हाल ही में मंत्रालय ने महाराष्ट्र के लिए तीन खास बकरी नस्लों सिरोही, उस्मानाबादी, और संगमनेरी को दूध और मीट के लिए बेहतरीन बताया है। आइए, जानते हैं कि ये नस्लें कैसे पहचानी जाएँ और इनसे कैसे कमाई हो सकती है।
सिरोही नस्ल
सिरोही नस्ल की बकरियाँ महाराष्ट्र में दूध और मीट के लिए शानदार हैं। इनका रंग भूरा और सफेद का मिश्रण होता है, जिससे इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। इनके शरीर पर बाल छोटे और मोटे होते हैं, और पूँछ मुड़ी हुई, नुकीले बालों वाली होती है। सिरोही बकरियों का शरीर मध्यम आकार का होता है, और इनके सींग छोटे, नुकीले, ऊपर-पीछे की ओर मुड़े होते हैं।
बकरे का औसत वजन 50 किलो और बकरी का 23 किलो तक होता है। जन्म के समय मेमने का वजन करीब दो किलो होता है। ये बकरियाँ साल में एक बार जुड़वाँ बच्चे देती हैं, जो ब्रीडिंग के लिए भी फायदेमंद है। सिरोही बकरी का दुग्ध काल 175 दिन का होता है, जिसमें ये 71 लीटर तक दूध देती है। इसका दूध और मीट बाजार में अच्छा दाम लाता है, जिससे किसान भाई मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।
उस्मानाबादी नस्ल
उस्मानाबादी नस्ल महाराष्ट्र के उस्मानाबाद, लातूर, तुलजापुर, और उदगीर इलाकों की पहचान है। ये बकरियाँ आकार में बड़ी होती हैं और दूध-मीट दोनों के लिए पाली जाती हैं। इनमें 73% बकरे-बकरियाँ पूरी तरह काले रंग के होते हैं, जबकि 27% सफेद या भूरे रंग के होते हैं। इस नस्ल की खासियत है इसका कम रखरखाव और ज्यादा मुनाफा।
बकरी का दुग्ध काल चार महीने का होता है, जिसमें ये रोज 500 ग्राम से डेढ़ लीटर तक दूध देती है। साल में दो बार दो-दो बच्चे देने की क्षमता इसे ब्रीडिंग के लिए भी मुफीद बनाती है। मीट की बात करें तो बकरे से 45-50 किलो ड्रेस्ड मीट निकलता है, जो बाजार में ऊँचे दामों पर बिकता है। महाराष्ट्र के किसान भाइयों के लिए ये नस्ल किसी खजाने से कम नहीं।
संगमनेरी नस्ल
संगमनेरी नस्ल महाराष्ट्र के पूना और अहमदनगर जिलों में खूब पाली जाती है। इन बकरियों का कोई एक रंग नहीं होता ये सफेद, काले, भूरे, या मिश्रित धब्बों के साथ मिलती हैं। इनके कान नीचे की ओर झुके हुए और सींग पीछे-ऊपर की ओर मुड़े हुए होते हैं, जो इनकी पहचान हैं। संगमनेरी बकरे-बकरियाँ मध्यम आकार के होते हैं और दूध के लिए खासतौर पर मशहूर हैं।
इनका दुग्ध काल 165 दिन का होता है, जिसमें बकरी रोज 500 ग्राम से एक लीटर तक दूध देती है। मीट के लिए भी ये नस्ल अच्छी है, क्योंकि इनका मांस स्वादिष्ट और प्रोटीन से भरपूर होता है। महाराष्ट्र के शहरी और ग्रामीण बाजारों में संगमनेरी का दूध और मीट अच्छे दामों पर बिकता है, जिससे पशुपालकों की कमाई बढ़ रही है।
बकरी पालन के लिए सरकारी मदद
बकरी पालन को बढ़ावा देने के लिए नेशनल लाइव स्टॉक मिशन (NLM) के तहत सरकार 50% तक सब्सिडी दे रही है। 100 बकरियों की यूनिट के लिए 20 लाख की लागत पर 10 लाख सब्सिडी मिल सकती है, और 500 बकरियों के लिए 1 करोड़ की लागत पर 50 लाख तक। लोन के लिए SBI, NABARD, और सहकारी बैंक मदद करते हैं। आवेदन के लिए nlm.udyamimitra.in पर जाएँ। मंत्रालय फेसबुक और एक्स पर नस्लों की जानकारी और ट्रेनिंग टिप्स देता रहता है। महाराष्ट्र में बकरी पालकों की संख्या बढ़ रही है, और NLM के तहत सबसे ज्यादा लोन आवेदन भी यहीं से आ रहे हैं।
जरुरी बात
महाराष्ट्र में बकरी पालन शुरू करने के लिए सिरोही, उस्मानाबादी, या संगमनेरी नस्ल चुनें। इनकी देखभाल आसान है और मुनाफा ज्यादा। शुरुआत 10-20 बकरियों से करें। स्थानीय पशु चिकित्सक या कृषि केंद्र से नस्ल की शुद्धता चेक करवाएँ। चारे के लिए हरा चारा और दाना दें। बकरी पालन के लिए लोन और सब्सिडी की जानकारी अपने नजदीकी उद्यान विभाग या NABARD ऑफिस से लें। अपने गाँव के दूसरे पशुपालकों को भी ये नस्लें बताएँ, ताकि सबकी कमाई बढ़े। बकरी पालन मेहनत माँगता है, लेकिन सही नस्ल और सरकारी मदद से ये धंधा आपको मालामाल कर सकता है।