Guava Farming Trellis Method: अमरूद की खेती किसानों के लिए हमेशा से फायदे का सौदा रही है, और अब एकल-परत जाली विधि इसे और शानदार बना रही है। यह तकनीक पारंपरिक बागवानी से अलग है, जहाँ पेड़ गोल और झाड़ीदार बनते हैं। इस विधि में पेड़ की शाखाएँ एक ही तल पर फैलती हैं, जिससे सूरज की रोशनी और हवा का प्रवाह बेहतर होता है। एकल-परत जाली विधि से प्रति हेक्टेयर 20-25 टन अमरूद की पैदावार हो सकती है, जो पारंपरिक खेती से 20-30% ज्यादा है। किसानों के अनुभव बताते हैं कि यह विधि लागत कम करती है और मुनाफा बढ़ाती है। आइए जानें कि यह विधि कैसे काम करती है और इसे कैसे अपनाएँ।
क्यों चुनें एकल-परत जाली विधि
एकल-परत जाली विधि में अमरूद के पौधों को तारों या बाँस की जाली पर एक ही तल में फैलने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार, यह तकनीक सूरज की रोशनी को पेड़ के हर हिस्से तक पहुँचने देती है, जिससे फल बड़े, रसदार, और एकसमान होते हैं। इस विधि में पेड़ों को 3×2 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है, जिससे प्रति हेक्टेयर 800-1000 पेड़ लग सकते हैं। किसानों के अनुभव बताते हैं कि यह विधि छोटे खेतों के लिए आदर्श है, क्योंकि यह जगह का बेहतर उपयोग करती है और कटाई को आसान बनाती है।
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खेत तैयार करने का सही तरीका
अमरूद की खेती के लिए दोमट या रेतीली मिट्टी सबसे अच्छी है, जिसमें pH 6-7.5 हो। बरसात के मौसम (जुलाई-अगस्त) में पौधे लगाना सबसे उपयुक्त है। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, खेत की अच्छी जुताई करें और प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद डालें। इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ-49, या धरिदार जैसी उन्नत किस्में चुनें। जाली बनाने के लिए 1.5-2 मीटर ऊँचा बाँस या तार का ढाँचा तैयार करें। किसानों के अनुभव बताते हैं कि ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाने से पानी की बचत होती है और पौधे स्वस्थ रहते हैं।
शाखाओं की छंटाई और देखभाल
एकल-परत जाली विधि में छंटाई का विशेष महत्व है। पौधों को पहले दो साल में 4-5 बार छाँटकर शाखाओं को एक तल पर फैलाएँ। वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार, पुरानी और कमजोर शाखाओं को हटाने से नई फल देने वाली टहनियाँ उगती हैं। नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव फल मक्खी और पत्ती झुलसा जैसे रोगों से बचाता है। किसानों के अनुभव बताते हैं कि जाली को खुला रखने से हवा का प्रवाह बना रहता है, जिससे फफूंदी का खतरा कम होता है। नियमित पानी और जैविक खाद से पेड़ तेजी से बढ़ते हैं।
एकल-परत जाली विधि जैविक खेती के साथ शानदार तालमेल रखती है। गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट, और नीम की खली का उपयोग करें। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, जैविक उर्वरक जैसे जायटॉनिक पोटाश फल की गुणवत्ता बढ़ाते हैं। किसानों के अनुभव बताते हैं कि जैविक अमरूद की बाज़ार में 20-30% ज्यादा कीमत मिलती है, खासकर शहरी बाज़ारों और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर। जैविक खेती से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पर्यावरण को नुकसान नहीं होता। जैविक अमरूद की मांग तेजी से बढ़ रही है।
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मुनाफे का गणित
अमरूद की बाज़ार में भारी मांग है, खासकर जूस उद्योग, होटलों, और शहरी बाज़ारों में। वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार, एकल-परत जाली विधि से प्रति हेक्टेयर 20-25 टन अमरूद का उत्पादन हो सकता है, जो 100-150 रुपये प्रति किलो बिकता है। शुरुआती लागत में पौधे (20,000-30,000 रुपये), जाली निर्माण (50,000-70,000 रुपये), और खाद (30,000 रुपये) शामिल है। किसानों के अनुभव बताते हैं कि तीसरे साल से प्रति हेक्टेयर 3-5 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा संभव है। सही मार्केटिंग और जैविक उत्पादों की बिक्री से यह मुनाफा और बढ़ सकता है।
सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएँ
केंद्र और राज्य सरकारें बागवानी को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चला रही हैं। राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत पौधों, जाली निर्माण, और ड्रिप इरिगेशन के लिए 50-60% सब्सिडी मिलती है। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, बिहार, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बागवानी विभाग मुफ्त प्रशिक्षण देता है। किसानों के अनुभव बताते हैं कि सब्सिडी से शुरुआती लागत आधी हो जाती है, जिससे छोटे किसानों के लिए यह खेती शुरू करना आसान हो जाता है।
एकल-परत जाली विधि से अमरूद की खेती शुरू करने से पहले स्थानीय बागवानी केंद्र से सलाह लें। छोटे स्तर पर शुरुआत करें और परिणाम देखकर बढ़ाएँ। जैविक खाद और कीटनाशकों का उपयोग करें। बाज़ार की मांग का अध्ययन करें और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म या स्थानीय मंडियों में बिक्री की रणनीति बनाएँ। किसानों के अनुभव बताते हैं कि सही देखभाल और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर एकल-परत जाली विधि से अमरूद की बागवानी आय का शानदार जरिया बन सकती है।
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