HAU ने विकसित की जई की नई हाई प्रोटीन किस्में, पशुपालकों की बढ़ेगी दूध और आमदनी

Ots new variety HFO-110, HFO-111: हरियाणा के हिसार में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (CCS HAU) ने पशुपालकों और किसानों के लिए एक बड़ी सौगात दी है। विश्वविद्यालय ने जई (oats) की दो नई उन्नत किस्में HFO-110 और HFO-111 विकसित की हैं, जो हरे चारे की आपूर्ति को आसान और किफायती बनाएँगी। ये किस्में न सिर्फ पशुओं के लिए पोषक चारा देती हैं, बल्कि कम लागत में बंपर उपज भी देती हैं। पशुपालकों की बढ़ती ज़रूरतों को देखते हुए इन किस्मों को खास तौर पर तैयार किया गया है, जो दूध उत्पादन बढ़ाने और लागत घटाने में मदद करेंगी। आइए, जानते हैं कि ये नई किस्में कैसे किसानों और पशुपालकों की जेब भरेंगी।

जई की नई किस्मों की खासियत

CCS HAU की नई जई किस्में HFO-110 और HFO-111 पशुपालकों के लिए वरदान साबित हो रही हैं। ये किस्में हरे चारे के लिए खास तौर पर बनाई गई हैं और इन्हें हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और उत्तराखंड जैसे राज्यों में बोया जा सकता है। इनकी सबसे बड़ी खूबी है इनकी तेज़ बढ़ोतरी और ऊँची उपज। HFO-110 और HFO-111 प्रति हेक्टेयर 400-450 क्विंटल हरा चारा देती हैं, जो दूसरी किस्मों से 15-20% ज़्यादा है।

इनका चारा पशुओं के लिए पोषक तत्वों से भरपूर है, जिसमें प्रोटीन, फाइबर, और मिनरल्स प्रचुर मात्रा में हैं। ये पशुओं का दूध उत्पादन 10-15% तक बढ़ा सकता है। साथ ही, ये किस्में ठंडे मौसम में अच्छा प्रदर्शन करती हैं और रोगों से लड़ने में मज़बूत हैं।

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कम लागत ज़्यादा मुनाफा

जई की खेती में लागत कम लगती है, और HFO-110 व HFO-111 इसे और किफायती बनाती हैं। हिसार के पशुपालक रामपाल सिंह ने बताया कि एक हेक्टेयर में जई की खेती के लिए 8-10 हज़ार रुपये की लागत आती है, जिसमें बीज, खाद, और सिंचाई शामिल है। इन नई किस्मों से 400-450 क्विंटल हरा चारा मिलता है, जिसे 200-300 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा जा सकता है। यानी, एक हेक्टेयर से 80,000-1,20,000 रुपये तक की कमाई हो सकती है। अगर पशुपालक इसे अपने पशुओं के लिए इस्तेमाल करें, तो दूध की बिक्री से मुनाफा और बढ़ जाता है।

खेती का आसान तरीका

HFO-110 और HFO-111 की खेती शुरू करना बेहद आसान है। बुआई का सबसे अच्छा समय अक्टूबर-नवंबर है, ताकि सर्दियों में हरा चारा तैयार हो। खेत को अच्छे से जोत लें और दोमट या बलुई मिट्टी का इस्तेमाल करें। प्रति हेक्टेयर 80-100 किलो बीज चाहिए, जिसकी कीमत 40-50 रुपये प्रति किलो है। बीज को 3-4 सेमी गहराई पर और 20-25 सेमी की दूरी पर बोएँ। शुरू में हल्की सिंचाई करें, और हर 15-20 दिन बाद पानी दें।

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गोबर की खाद या जैविक खाद का इस्तेमाल करें, ताकि लागत कम रहे और चारे की गुणवत्ता बढ़े। फसल 50-60 दिनों में पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है, और 2-3 कटाईयाँ ली जा सकती हैं। CCS HAU के वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि नाइट्रोजन खाद (30-40 किलो/हेक्टेयर) का इस्तेमाल पहली कटाई से पहले करें।

हिसार के कृषि वैज्ञानिक डॉ. सतपाल ने बताया कि इनका चारा नरम और रसदार होता है, जो गायों और भैंसों को खूब भाता है। इससे दूध में फैट और प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है, जिससे पशुपालकों को बाज़ार में बेहतर दाम मिलता है। विश्वविद्यालय ने इन बीजों को KVK और ज़िला कृषि कार्यालयों के ज़रिए उपलब्ध कराया है।

विश्वविद्यालय की कोशिशें

CCS HAU ने हमेशा किसानों और पशुपालकों के लिए नई तकनीक और किस्में लाने का काम किया है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बताया कि HFO-110 और HFO-111 को खास तौर पर हरे चारे की कमी को पूरा करने के लिए विकसित किया गया है। ये किस्में तीन साल की रिसर्च और टेस्टिंग के बाद तैयार की गई हैं। विश्वविद्यालय ने पिछले पाँच सालों में 30 से ज़्यादा नई किस्में दी हैं, जिनमें मूँग की MH 1142 और अब जई की HFO-110 शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने इन बीजों को हरियाणा के अलावा पंजाब, यूपी, और राजस्थान के किसानों तक पहुँचाने की योजना बनाई है।

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  • Rahul Maurya

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मैंने संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं Krishitak.com का संस्थापक और प्रमुख लेखक हूं। पिछले 3 वर्षों से मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाएं, और ग्रामीण भारत से जुड़े विषयों पर लेखन कर रहा हूं।

    Krishitak.com के माध्यम से मेरा उद्देश्य है कि देशभर के किसानों तक सटीक, व्यावहारिक और नई कृषि जानकारी आसान भाषा में पहुँचे। मेरी कोशिश रहती है कि हर लेख पाठकों के लिए ज्ञानवर्धक और उपयोगी साबित हो, जिससे वे खेती में आधुनिकता और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकें।

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