HD-3385 Wheat Variety: भारतीय कृषि में गेहूं की खेती हमेशा से देश की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ रही है। लेकिन हाल के वर्षों में बदलते मौसम, बढ़ती गर्मी और रोगों की चुनौतियों ने किसानों की चिंताएँ बढ़ा दी हैं। ऐसे समय में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IARI) ने किसानों के लिए एक नई उम्मीद दी है HD-3385 गेहूं किस्म, जो न केवल बंपर पैदावार देगी बल्कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का भी मजबूती से सामना करेगी।
IARI के वैज्ञानिकों ने छह वर्षों की शोध और 400 से अधिक परीक्षणों के बाद इस किस्म को विकसित किया है। इसका पैरेंटेज HD2967/HD2887//HD2946/HD2733 है, और इसे संरक्षण ऑफ प्लांट वैरायटीज एंड फार्मर्स राइट्स अथॉरिटी (PPVFRA) के तहत पंजीकृत किया गया है।
15% अधिक उत्पादन, दोगुनी कमाई
HD-3385 की सबसे बड़ी ताकत इसकी पैदावार क्षमता है। यह औसतन 59.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है, जबकि इसकी संभावित उपज 73.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुँच सकती है। ICAR के परीक्षणों में यह किस्म अन्य लोकप्रिय गेहूं प्रजातियों से काफी आगे रही। तुलना करें तो यह HD-2967 से 15%, HD-3086 से 10%, DBW-222 से 6.9% और DBW-187 से 6.7% ज्यादा उपज देने में सक्षम है।
कई स्थानों पर किसानों ने इससे 7 टन प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार दर्ज की है। इसकी टिलरिंग (फुटाव) क्षमता जबरदस्त है, जिससे बीज की मात्रा 35-40% तक कम की जा सकती है। केवल 20-25 किलो बीज प्रति एकड़ पर्याप्त है। इसके दाने बोल्ड, चमकदार और भारी होते हैं, जो बाजार में ऊंचे दाम दिलाते हैं। चपाती के लिए इसकी स्टार्च और प्रोटीन संरचना उत्कृष्ट है, जिससे आटे की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह किस्म वरदान साबित हो रही है क्योंकि कम निवेश में ज्यादा मुनाफा मिलता है।
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रस्ट और अन्य बीमारियों से सुरक्षा कवच
HD-3385 किस्म में सबसे खास गुण इसका रोग प्रतिरोध है। गेहूं में पीला, भूरा और काला रस्ट रोग सबसे खतरनाक माने जाते हैं, जो फसल को 20-30 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह नई किस्म इन तीनों रस्ट रोगों के साथ-साथ स्ट्राइप रस्ट, लीफ रस्ट, करनाल बंट, पाउडरी मिल्ड्यू और फोलियर ब्लाइट जैसी बीमारियों से भी बचाव करती है। इसके जीन में मौजूद ब्रॉड-स्पेक्ट्रम रेसिस्टेंस इसे फफूंदनाशी दवाओं की निर्भरता से लगभग मुक्त कर देता है। इससे किसानों की लागत घटती है और पर्यावरण पर रासायनिक भार भी कम पड़ता है।
IARI के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह का कहना है कि “HD-3385 किसानों को जलवायु और रोग दोनों की चुनौतियों से बचाने के लिए विकसित की गई है। यह हमारे भविष्य की क्लाइमेट-स्मार्ट खेती की दिशा में एक निर्णायक कदम है।”
‘बीट द हीट’ क्षमता से नई पहचान
जलवायु परिवर्तन के कारण मार्च-अप्रैल में बढ़ती गर्मी ने गेहूं की पैदावार पर सीधा असर डाला है। वर्ष 2021-22 में हीटवेव के चलते उत्पादन 109.59 मिलियन टन से गिरकर 106.84 मिलियन टन रह गया था। HD-3385 इस समस्या का स्थायी समाधान है। इसमें एक खास ‘बीट द हीट’ विशेषता है, जो टर्मिनल हीट स्ट्रेस को सहन करने में सक्षम बनाती है।
इस किस्म का वर्नलाइजेशन जीन कमजोर है, जिससे यह जल्दी फूल नहीं लाती। परिणामस्वरूप, यह अधिक समय तक वनस्पतिक वृद्धि करती है और बायोमास को दाने में परिवर्तित कर देती है। मिट्टी का तापमान अधिक होने पर भी इसका अंकुरण मजबूत रहता है। इस गुण के कारण यह किस्म अर्ली सोइंग (15-25 अक्टूबर) के लिए आदर्श है।
IARI के अनुसार, HD-3385 में समय से पहले बोई गई फसलें मार्च की गर्म लहर से पहले ही पककर तैयार हो जाती हैं, जिससे नुकसान से बचाव होता है। यह किस्म दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और झारखंड के किसानों के लिए उपयुक्त है।
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वैज्ञानिक तरीके से रिकॉर्ड उपज
HD-3385 की परिपक्वता अवधि 130 से 160 दिनों की है। इसे 15 से 25 अक्टूबर के बीच बोना सबसे बेहतर माना गया है। खेत की अच्छी तैयारी के साथ मिट्टी में नमी बनाए रखें और 4 से 5 सिंचाइयाँ निर्धारित चरणों पर करें। उर्वरक प्रबंधन में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस और 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर डालें। जिंक सल्फेट का उपयोग पौधों की वृद्धि और दाने की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।
पौधे की ऊँचाई लगभग 98 सेंटीमीटर होती है और तने मजबूत रहते हैं, जिससे फसल गिरने (लॉजिंग) की संभावना बहुत कम रहती है। यह किस्म कंजर्वेशन एग्रीकल्चर यानी नो-टिल या जीरो-टिल पद्धति में भी सफल है। बीज वसुंधरा सीड्स, उज्जैन या स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्रों से प्राप्त किए जा सकते हैं।
क्षेत्रीय उपयुक्तता और किसानों का अनुभव
HD-3385 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने नॉर्थ वेस्टर्न प्लेन्स जोन (NWPZ), नॉर्थ ईस्टर्न प्लेन्स जोन (NEPZ) और सेंट्रल जोन (CZ) के लिए अनुशंसित किया है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इसके शानदार परिणाम मिले हैं।
किसानों का कहना है कि यह किस्म “स्ट्रेस टॉलरेंस और उच्च उत्पादन” दोनों में संतुलन रखती है। मध्य भारत के कई जिलों में इसे शॉर्ट-ड्यूरेशन धान किस्मों (जैसे पूसा 1509) के बाद बोया गया, जिससे स्टबल बर्निंग की समस्या भी काफी हद तक कम हुई।
HD-3385 सिर्फ एक गेहूं की किस्म नहीं, बल्कि भारत की जलवायु-स्मार्ट कृषि की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। इसकी उच्च पैदावार, रोग प्रतिरोधकता और गर्मी सहनशीलता इसे आने वाले दशकों की “सुरक्षित फसल” बनाती है। जो किसान इसे अपनाएँगे, वे न केवल अपनी आमदनी बढ़ा सकेंगे, बल्कि मौसम की मार से भी सुरक्षित रहेंगे।
रबी सीजन की इस नई स्टार किस्म के साथ भारतीय खेतों में फिर से सुनहरी लहरें दौड़ने लगी हैं।
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