How To Get Rid Of Carrot Grass: किसान भाइयों, खेतों, बगीचों, और खाली प्लॉटों में एक खतरनाक खरपतवार तेजी से फैल रहा है, जिसे गाजर घास या कांग्रेस घास के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिक रूप से पार्थेनियम हिस्टोफोरस कहलाने वाला यह खरपतवार न केवल फसलों को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा है। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं! नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर वीड साइंस, जबलपुर ने इस खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए एक शक्तिशाली जैविक हथियार, मैक्सिकन बीटल (ज़िगोग्रामा बाइकोलोराटा), विकसित किया है। यह कीट किसानों का मित्र बनकर गाजर घास को जड़ से खत्म करने में मदद कर रहा है।
गाजर घास एक खतरनाक आक्रांता
पार्थेनियम हिस्टोफोरस एक वार्षिक खरपतवार है, जो मूल रूप से मध्य और दक्षिण अमेरिका का है। भारत में यह 1950 के दशक में आयातित गेहूँ के साथ अनजाने में आया और तब से पूरे देश में जंगल की आग की तरह फैल गया। इसकी ऊँचाई 1.5 से 2 मीटर तक होती है, और पत्तियाँ गाजर की पत्तियों जैसी दिखती हैं, इसलिए इसे गाजर घास कहा जाता है। एक पौधा 5,000 से 25,000 बीज पैदा करता है, जो हवा, पानी, और वाहनों के माध्यम से दूर-दूर तक फैल जाते हैं। यह खरपतवार फसलों की पैदावार को 40% तक कम कर सकता है और मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुँचाता है। इसके रसायन (एलोपैथिक) अन्य पौधों की वृद्धि को रोकते हैं, जिससे जैव विविधता को खतरा होता है।
ये भी पढ़ें – कृषि विभाग दे रहा खरपतवार नाशक दवाओं पर 75% सब्सिडी, यहाँ करे रजिस्ट्रेशन
स्वास्थ्य पर गाजर घास का कहर
गाजर घास का मानव और पशु स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसके पराग, पत्तियाँ, और सूखे हिस्से त्वचा और श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं। इसके संपर्क में आने से एलर्जी, एक्जिमा, और त्वचा रोग हो सकते हैं। लंबे समय तक संपर्क रहने पर अस्थमा और ब्रॉन्काइटिस जैसी बीमारियाँ भी हो सकती हैं। पशु इसे खाते नहीं, लेकिन इसके मिश्रित चारे से दूध और मांस जहरीला हो सकता है। गायों और भैंसों में त्वचा रोग और मुँह के छाले देखे गए हैं। यह खरपतवार खेतों में काम करने वाले किसानों के लिए भी परेशानी का सबब है।
मैक्सिकन बीटल किसानों का मित्र
नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर वीड साइंस, जबलपुर ने 1984 में मैक्सिकन बीटल को भारत में लाकर इसका उपयोग शुरू किया। यह कीट, जो मूल रूप से मैक्सिको का है, विशेष रूप से पार्थेनियम हिस्टोफोरस की पत्तियों और फूलों को खाता है। वयस्क बीटल और इसके लार्वा दोनों पौधे को नष्ट करते हैं, जिससे बीज उत्पादन रुक जाता है। एक वयस्क बीटल 6-8 सप्ताह में एक पौधे को पूरी तरह डिफोलिएट (पत्तियों से रहित) कर सकता है। जबलपुर केंद्र ने इसे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, और बिहार जैसे राज्यों में छोड़ा है, जहाँ यह प्रभावी साबित हुआ है। यह कीट अन्य फसलों को नुकसान नहीं पहुँचाता, जिससे यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित है।
ये भी पढ़ें – मोथा खरपतवार से मिलेगा छुटकारा जापानी दवा ‘सेंपरा’ 24 घंटे में दिखाएगी असर
मैक्सिकन बीटल की सीमाएँ और समाधान
मैक्सिकन बीटल की प्रभावशीलता के बावजूद, इसकी कुछ सीमाएँ हैं। यह कीट मुख्य रूप से मानसून के दौरान सक्रिय रहता है, क्योंकि इसे नमी की आवश्यकता होती है। शुष्क मौसम में इसकी गतिविधि कम हो जाती है। इसके अलावा, बड़े क्षेत्रों में इसका प्रसार धीमा होता है, क्योंकि यह तेजी से उड़ नहीं सकता। जबलपुर केंद्र किसानों को सलाह देता है कि वे बीटल की आबादी को बढ़ाने के लिए इसे नियंत्रित तरीके से खेतों में छोड़ें। इसके लिए केंद्र ने पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह जैसे अभियान शुरू किए हैं, जिसमें किसानों को प्रशिक्षण और बीटल उपलब्ध कराए जाते हैं।
अन्य नियंत्रण विधियाँ
गाजर घास को पूरी तरह नियंत्रित करने के लिए एकीकृत प्रबंधन (IPM) जरूरी है। मैक्सिकन बीटल के साथ-साथ अन्य विधियाँ भी प्रभावी हैं। सांस्कृतिक नियंत्रण में फसल चक्र, अंतर-फसल, और घने चरागाह बनाना शामिल है। कैसिया सेरिसिया और सेंक्रस सिलियारिस जैसे पौधे गाजर घास को दबाने में मदद करते हैं। रासायनिक नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट (1-1.5%) या मेट्रिब्यूज़िन (0.3-0.5%) का छिड़काव किया जा सकता है। गाजर घास को फूल आने से पहले उखाड़कर जलाना या कम्पोस्ट बनाना भी उपयोगी है। जबलपुर केंद्र ने मिलीपेड-मध्यस्थ कम्पोस्टिंग की तकनीक विकसित की है, जो गाजर घास के विषैले प्रभाव को कम करती है।
जबलपुर केंद्र की भूमिका
नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर वीड साइंस, जबलपुर ने गाजर घास के नियंत्रण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। केंद्र ने न केवल मैक्सिकन बीटल को बढ़ावा दिया, बल्कि फ्यूज़ेरियम पलिडोरोसियम जैसे कवक और अन्य जैविक एजेंट्स पर भी शोध किया है। केंद्र हर साल किसान मेलों और जागरूकता अभियानों का आयोजन करता है, जिसमें किसानों को गाजर घास के खतरों और नियंत्रण विधियों की जानकारी दी जाती है। केंद्र की वेबसाइट और कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के माध्यम से किसान बीटल और अन्य संसाधन प्राप्त कर सकते हैं।
गाजर घास एक गंभीर खतरा है, लेकिन मैक्सिकन बीटल और एकीकृत प्रबंधन के जरिए इसे नियंत्रित किया जा सकता है। नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर वीड साइंस, जबलपुर की पहल किसानों के लिए वरदान है। अपने खेतों और बगीचों को गाजर घास से मुक्त करने के लिए स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें और मैक्सिकन बीटल का उपयोग शुरू करें। जागरूक बनें, पर्यावरण को बचाएँ, और अपनी फसलों को सुरक्षित रखें।
ये भी पढ़ें – खरपतवार से मिलेगा छुटकारा! सरकार के 5 ज़बरदस्त उपाय जो हर किसान को जानने चाहिए