धान की खेती में पानी की खपत और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों ने गाँव के किसान भाइयों के सामने नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। लेकिन अब भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा ने एक नया रास्ता दिखाया है। IARI के जल प्रौद्योगिकी केंद्र ने इंटीग्रेटेड ड्रिप कम मल्च तकनीक विकसित की है, जो बेबी कॉर्न जैसी कम पानी और कम समय वाली फसलों के लिए गेम-चेंजर साबित हो रही है। यह तकनीक न सिर्फ पानी बचाती है, बल्कि फसल की पैदावार बढ़ाकर किसानों की जेब भी भर रही है।
क्या है इंटीग्रेटेड ड्रिप कम मल्च तकनीक?
यह तकनीक IARI पूसा ने मुंबई की बोरोच प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर बनाई है। इसमें टपक सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन) और प्लास्टिक मल्चिंग को एक साथ जोड़ा गया है। टपक सिंचाई से पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचता है, जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती। वहीं, प्लास्टिक मल्चिंग खेत में खरपतवार को रोकती है और मिट्टी की नमी को बनाए रखती है। IARI के फील्ड ट्रायल बताते हैं कि इस तकनीक से बेबी कॉर्न की पैदावार 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। अगर सिर्फ मल्च या सिर्फ ड्रिप का इस्तेमाल करें, तो इतनी पैदावार नहीं मिलती। यह तकनीक पानी और पोषक तत्वों का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करती है, जिससे खेती सस्ती और फायदेमंद हो जाती है।
बेबी कॉर्न क्यों है खास?
IARI के विशेषज्ञों का कहना है कि धान की परंपरागत खेती में ढेर सारा पानी लगता है, जो अब हर जगह उपलब्ध नहीं है। ऐसे में बेबी कॉर्न एक शानदार विकल्प है। यह फसल सिर्फ 65 से 70 दिन में तैयार हो जाती है और सर्दी को छोड़कर हर मौसम में उगाई जा सकती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में यह फसल पहले ही किसानों की कमाई बढ़ा रही है।
बाजार में बेबी कॉर्न की मांग खूब है, और इसका दाम भी अच्छा मिलता है। मल्चिंग की लागत इस फसल की कमाई से आसानी से निकल आती है। साथ ही, यह फसल चक्र में आसानी से फिट हो जाती है, जिससे किसानों को बार-बार फायदा होता है।
पानी की बचत
देश में कुल 140 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर खेती होती है, लेकिन सिर्फ 55 प्रतिशत यानी 78 मिलियन हेक्टेयर में ही सिंचाई की सुविधा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से पानी की कमी बढ़ रही है। ऐसे में इंटीग्रेटेड ड्रिप कम मल्च तकनीक एक वरदान है। यह तकनीक पानी का सही इस्तेमाल करती है और खरपतवार को भी रोकती है। इससे न सिर्फ खेती का खर्च कम होता है, बल्कि फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है। बेबी कॉर्न की खेती धान के बाद करने से किसान कम समय में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
IARI पूसा के वैज्ञानिकों ने किसान भाइयों से अपील की है कि वे इस नई तकनीक को अपनाएं। अगर आप धान की खेती करते हैं, तो उसके बाद बेबी कॉर्न की खेती शुरू करें। यह न सिर्फ पानी बचाएगी, बल्कि आपकी जेब भी भरेगी। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या IARI के जल प्रौद्योगिकी केंद्र से संपर्क करें। वहां आपको ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग की पूरी जानकारी मिलेगी। सरकार भी ऐसी फसलों और तकनीकों को बढ़ावा दे रही है, ताकि खेती टिकाऊ बने और किसानों की कमाई बढ़े।
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