जून में धान की बुवाई का समय जोरों पर है, और किसान अपनी नर्सरियों को तैयार करने में जुटे हैं। यह धान की खेती का सबसे महत्वपूर्ण चरण है, क्योंकि स्वस्थ नर्सरी ही रोपाई के बाद बंपर पैदावार की गारंटी देती है। लेकिन कई बार नर्सरी में पौधों का विकास रुकना, पत्तियों का पीला पड़ना, या जड़ों का सड़ना जैसी समस्याएँ किसानों को परेशान कर देती हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि वैज्ञानिक प्रबंधन और सही उपायों से इन समस्याओं से बचा जा सकता है। बलिया के श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय के मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग के प्रमुख प्रो. अशोक कुमार सिंह ने धान नर्सरी की देखभाल के लिए कुछ प्रभावी सलाह दी हैं।
नर्सरी की प्रमुख समस्याएँ
धान की नर्सरी में कई किसानों को पौधों की पत्तियों के भूरे या पीले होने, विकास रुकने, या जड़ सड़ने की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बलिया के पटखौली के किसान नवीन कुमार राय ने बताया कि उनकी कुछ नर्सरियों में पौधे स्वस्थ हैं, लेकिन कुछ में पत्तियाँ भूरी हो रही हैं और विकास रुका हुआ है। उन्होंने खाद और उर्वरकों का उपयोग किया, लेकिन इस बार समस्या बनी रही। प्रो. सिंह के अनुसार, ये समस्याएँ जड़ गलन, जिंक की कमी (खैरा रोग), या सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण हो सकती हैं। समय पर सही उपचार से इन्हें आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
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जड़ गलन से बचाव
जड़ गलन (आद्र गलन) नर्सरी की सबसे आम बीमारी है, जिसमें पौधे जमीन के पास सड़कर सूखने और गिरने लगते हैं। इसके लिए प्रो. सिंह सलाह देते हैं कि नर्सरी में नमी का स्तर संतुलित रखें और एक बार फफूंदनाशक का छिड़काव करें। कार्बेन्डाज़िम 50% (बाविस्टिन) को 1-2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। यह जड़ गलन को रोकता है और पौधों को स्वस्थ रखता है। बुवाई से पहले बीजों का उपचार 2 ग्राम थीरम प्रति किलो बीज की दर से करें, ताकि फंगल संक्रमण से शुरुआती सुरक्षा मिले।
खैरा रोग और जिंक की कमी
जब नर्सरी में पत्तियों पर भूरे धब्बे या झुंड में दाग दिखें, तो यह खैरा रोग हो सकता है, जो जिंक की कमी से होता है। यह रोग रोपाई के बाद भी फसल को प्रभावित कर सकता है। इसके लिए 0.5% जिंक सल्फेट का छिड़काव करें। प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 ग्राम चूना मिलाकर घोल बनाएँ और नर्सरी पर छिड़कें। यह उपचार पौधों को जिंक प्रदान करता है और पत्तियों को हरा और स्वस्थ रखता है।
सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति
सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से नर्सरी के पौधों का विकास रुक सकता है। प्रो. सिंह के अनुसार, बाजार में उपलब्ध मल्टीप्लेक्स जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का पाउडर इस कमी को पूरा करता है। इसे 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर एक बार छिड़कें। जिन किसानों ने नर्सरी तैयार करने से पहले 5-7 क्विंटल गोबर खाद प्रति हल्की या मल्टीप्लेक्स पाउडर मिट्टी में मिलाया है, उनकी नर्सरी में ऐसी समस्याएँ कम देखी जाती हैं। गोबर खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है और पौधों को संतुलित पोषण देती है।
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नमी और सिंचाई प्रबंधन
जून में तेज़ गर्मी के कारण नर्सरी में नमी बनाए रखना ज़रूरी है। प्रो. सिंह सलाह देते हैं कि हल्की और नियमित सिंचाई करें, ताकि खेत में नमी बनी रहे। जलभराव से बचें, क्योंकि यह जड़ गलन का कारण बनता है। नर्सरी में जल निकासी की व्यवस्था करें और सुबह या शाम के समय सिंचाई करें, ताकि पानी का वाष्पीकरण कम हो। नमी की कमी से पौधे कमजोर हो सकते हैं, इसलिए सावधानी बरतें।
किसानों के लिए वैज्ञानिक सलाह
धान की नर्सरी की देखभाल सावधानी से करें, क्योंकि यह फसल की नींव है। बुवाई से पहले मिट्टी की जाँच कराएँ और गोबर खाद का उपयोग करें। बीज उपचार, फफूंदनाशक, और जिंक सल्फेट का समय पर छिड़काव करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए हल्की निराई करें। स्वस्थ नर्सरी से रोपाई के बाद रोग और कीट की समस्याएँ कम होती हैं, और पैदावार में 20-30% की वृद्धि हो सकती है। इन वैज्ञानिक उपायों को अपनाकर किसान खरीफ में धान की बंपर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
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