बिहार में हल्दी-ओल की खेती पर मिल रहा है ₹1.4 लाख तक का अनुदान, जानें आवेदन प्रक्रिया

बिहार के भभुआ (कैमूर) जिले के किसान अब धान और गेहूं की परंपरागत खेती के साथ-साथ हल्दी और ओल (यम) की खेती की ओर बढ़ रहे हैं। यह न सिर्फ उनकी कमाई बढ़ा रहा है, बल्कि सरकार की उद्यान विभाग की योजनाओं से उन्हें बड़ा सहारा भी मिल रहा है। वित्तीय वर्ष 2025-26 में कैमूर जिले में 15 एकड़ में हल्दी और 5 एकड़ में ओल की खेती का लक्ष्य रखा गया है। उद्यान विभाग हल्दी की खेती पर 22,500 रुपये और ओल की खेती पर 1.4 लाख रुपये प्रति एकड़ का अनुदान दे रहा है।

हल्दी और ओल की खेती पर सरकार का अनुदान

कैमूर के सहायक निदेशक उद्यान डॉ. अभय कुमार गौरव बताते हैं कि बिहार सरकार की राज्य योजना के तहत जिले में 15 एकड़ हल्दी और 5 एकड़ ओल की खेती का लक्ष्य रखा गया है। हल्दी की खेती में प्रति एकड़ 45,000 रुपये की लागत आती है, जिसमें सरकार 50% यानी 22,500 रुपये का अनुदान देगी। वहीं, ओल की खेती में प्रति एकड़ 2,81,600 रुपये की लागत निर्धारित है, और इसमें 50% यानी 1,40,800 रुपये का अनुदान मिलेगा। यह अनुदान डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के जरिए किसानों के बैंक खाते में जाएगा।

अनुदान का पैसा तीन किस्तों में मिलता है, जिससे किसानों को शुरुआती खर्च में आसानी होती है। बिहार सरकार की एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत यह अनुदान अन्य फसलों, जैसे मशरूम और औषधीय पौधों के लिए भी दिया जा रहा है।

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हल्दी की खेती

हल्दी की खेती कैमूर के लिए नया और फायदेमंद विकल्प है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक और निर्यातक है, और वैश्विक बाजार में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। 2022-23 में भारत में 3.25 लाख हेक्टेयर में हल्दी की खेती हुई, जिसमें 11.61 लाख टन उत्पादन हुआ। भभुआ की जलवायु और मिट्टी हल्दी के लिए मुफीद है। एक एकड़ में हल्दी की खेती से 8-10 टन उत्पादन हो सकता है।

बाजार में हल्दी 10,000-15,000 रुपये प्रति क्विंटल बिकती है, यानी एक एकड़ से 1-1.5 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। लागत 45,000 रुपये प्रति एकड़ है, जिसमें 22,500 रुपये का अनुदान मिलने से किसान को सिर्फ आधा खर्च करना पड़ता है। हल्दी की खेती 8-9 महीने में तैयार हो जाती है और इसे कम पानी और देखभाल की जरूरत होती है।

ओल की खेती

ओल (यम) की खेती भी भभुआ के किसानों के लिए नया मौका लेकर आई है। ओल की फसल को स्टार्च और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। इसकी मांग स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ रही है। एक एकड़ में ओल की खेती से 15-20 टन उत्पादन हो सकता है, और बाजार में यह 5,000-8,000 रुपये प्रति क्विंटल बिकता है। यानी एक एकड़ से 75,000-1.5 लाख रुपये की कमाई हो सकती है।

लागत 2.81 लाख रुपये प्रति एकड़ है, लेकिन 1.4 लाख का अनुदान मिलने से किसान को सिर्फ आधा खर्च उठाना पड़ता है। ओल की खेती के लिए दोमट मिट्टी और अच्छी जल निकासी वाली जमीन चाहिए। इसे फरवरी-मार्च में बोया जाता है और 8-10 महीने में फसल तैयार हो जाती है।

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धान के कटोरे से विविध खेती की ओर

कैमूर जिला धान के कटोरे के रूप में मशहूर है, लेकिन अब किसान परंपरागत खेती से हटकर हल्दी, ओल, मोटे अनाज, और सब्जियों की खेती की ओर बढ़ रहे हैं। उद्यान विभाग और कृषि विभाग की योजनाएं, जैसे एकीकृत बागवानी विकास मिशन और सब्जी विकास योजना, किसानों को अनुदान और प्रशिक्षण दे रही हैं।

मशरूम, लेमनग्रास, और तुलसी जैसी फसलों पर भी 75,000 रुपये प्रति हेक्टेयर तक का अनुदान दिया जा रहा है। कैमूर के किसान अब इन योजनाओं का फायदा उठाकर अपनी कमाई को दोगुना कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर, मशरूम की खेती पर 50% अनुदान (1.79 लाख रुपये की लागत पर 89,750 रुपये) मिल रहा है, जिससे कई किसान लाभ कमा रहे हैं।

आवेदन कैसे करें

हल्दी और ओल की खेती के लिए अनुदान पाने के लिए किसानों को उद्यान विभाग की वेबसाइट (horticulture.bihar.gov.in) पर जाकर आवेदन करना होगा। इसके लिए:

  1. डीबीटी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करें और आधार से लिंक बैंक खाता दें।

  2. जमीन के दस्तावेज, आधार कार्ड, और फसल की जानकारी के साथ ऑनलाइन फॉर्म भरें।

  3. नजदीकी उद्यान विभाग कार्यालय या सहायक निदेशक उद्यान से संपर्क करें।
    आवेदन की समय सीमा और दस्तावेजों की जानकारी के लिए जिला उद्यान कार्यालय से संपर्क करें। अनुसूचित जाति, जनजाति, और महिला किसानों को प्राथमिकता दी जाती है।

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  • Shashikant

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