Indrayan Fruit farming : किसान भाइयों, इन्द्रायण एक ऐसा औषधीय पौधा है, जो खेतों में उगाकर सेहत के साथ-साथ मोटी कमाई का रास्ता खोलता है। इन्द्रायण (Citrullus colocynthis), जिसे कड़वी तुम्बी या बिटर एप्पल भी कहते हैं, आयुर्वेद में बुखार, पेट की तकलीफ, गठिया और त्वचा रोगों के इलाज में मशहूर है। ये सूखे और गर्म इलाकों का दोस्त है, जो कम पानी में भी लहलहाता है। मार्च का महीना चल रहा है, और अभी गर्मी के लिए इसकी बुआई की तैयारी का सबसे बढ़िया वक्त है। इसे खेतों में या घर के आसपास छोटी जगह पर भी उगा सकते हैं। आइए, अपनी सहज भाषा में जानें कि इन्द्रायण की खेती कैसे करें और इसका फायदा कैसे उठाएँ।
इन्द्रायण की खासियत और औषधीय ताकत
इन्द्रायण एक बेल वाला पौधा है, जिसके गोल हरे फल पकने पर पीले हो जाते हैं। इसके बीज, जड़ और फल औषधि बनाने में काम आते हैं। अपने इलाके में ये इसलिए खास है, क्यूँकि ये पेट को साफ करता है, सूजन कम करता है और जोड़ों के दर्द में राहत देता है। आयुर्वेदिक जानकार बताते हैं कि इसका तेल त्वचा के रोगों और बालों की सेहत के लिए भी फायदेमंद है। हमारे यहाँ ये पौधा 90-120 दिन में तैयार हो जाता है और सूखे हालात में भी डटा रहता है। बाजार में हर्बल कंपनियाँ और दवा बनाने वाले इसे हाथोंहाथ लेते हैं। ये सेहत का खजाना और कमाई का ढंग एक साथ लाता है।
खेत और मिट्टी तैयार करने का देसी जुगाड़
इन्द्रायण की खेती (Indrayan Fruit farming) के लिए रेतीली या दोमट मिट्टी बढ़िया रहती है, जहाँ पानी जमा न हो। खेतों में मार्च के महीने में हल या कुदाल से मिट्टी को जोतकर भुरभुरा करें। अपने आसपास प्रति बीघा 4-5 टन गोबर की सड़ी खाद डालें और मिट्टी में अच्छे से मिलाएँ। 2-3 फीट चौड़ी क्यारियाँ बनाएँ और हर क्यारी में 4-5 फीट की दूरी पर लाइनें खींचें। हर लाइन के पास 1-2 किलो वर्मीकम्पोस्ट और थोड़ी नीम की खली डालें, ये जड़ों को ताकत देता है और कीटों से बचाता है। पानी की निकासी का पूरा इंतजाम करें, क्यूँकि ज्यादा नमी इसकी दुश्मन है। हमारे यहाँ ये तैयारी सस्ती पड़ती है और पौधे को मजबूत नींव देती है।
बुआई और देखभाल का आसान तरीका
इन्द्रायण के बीज बाजार, आयुर्वेदिक दुकानों या ऑनलाइन 50-70 रुपये किलो में मिलते हैं। प्रति बीघा 2-3 किलो बीज काफी हैं। मार्च में लाइनों में 2-3 सेमी गहरा बो दें और ऊपर से हल्की मिट्टी डालकर दबाएँ। 7-10 दिन में अंकुर निकल आएँगे। अपने इलाके में पहले 15-20 दिन तक हर 10 दिन में हल्का पानी दें, फिर ये सूखा सहन करने लगता है। नीम का पानी (1 किलो पत्तियाँ 10 लीटर पानी में उबालकर) हफ्ते में एक बार छिड़कें, ये फंगस और कीटों से बचाता है। बेल को बाँस या तार के सहारे पर चढ़ाएँ, ताकि फल जमीन से ऊपर रहें। खरपतवार को नियमित हटाएँ। 90-120 दिन में फल पककर तैयार हो जाते हैं।
पैदावार और कमाई का सीधा हिसाब
एक बीघे से 50-70 किलो सूखे फल या बीज निकलते हैं। फल को सुखाकर बीज निकालें और बेचें। अपने आसपास आयुर्वेदिक दुकानों या हर्बल कंपनियों से संपर्क करें, जहाँ 100-150 रुपये किलो मिलेगा। यानी एक बीघे से 5,000-10,000 रुपये की कमाई होगी। बड़े पैमाने पर (2-3 बीघा) करें, तो 15,000-30,000 रुपये तक बन सकता है। बीज और खाद का खर्च 1,000-1,500 रुपये पड़ता है। हमारे यहाँ ये खेती सूखे इलाकों में भी फायदा देती है, क्यूँकि इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं। इसके फल, बीज और जड़ बेचकर सेहत के साथ कमाई का रास्ता खुलता है। ये छोटी मेहनत में बड़ा मुनाफा देने वाला ढंग है।
अपने इलाके में इन्द्रायण की खेती इसलिए खास है, क्यूँकि ये कम संसाधनों में औषधि और कमाई का खजाना देता है। मार्च में बोएँ, तो जून-जुलाई में फल काटने को तैयार होंगे। इसकी दवा पेट को हल्का और शरीर को तंदुरुस्त रखती है। ये पौधा न सिर्फ खेतों को हरा-भरा करता है, बल्कि सूखे हालात में भी किसानों का साथी बनता है। तो भाइयों, इन्द्रायण की खेती शुरू करें, खेत, सेहत और जेब को चमकाएँ और मेहनत का फल ढेर सारा पाएँ। ये औषधीय पौधा आपकी मेहनत को सोने में बदल देगा!
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