Irrigation Management of Gram Farming: भारत में चना दलहनी फसलों में प्रमुख स्थान रखता है। यह पोषण से भरपूर और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में सहायक होता है। देश में लगभग 99 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी है और अब सिंचाई का समय आ गया है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों के अनुसार, चने की फसल में फूल आने से पहले सिंचाई करना अत्यधिक लाभकारी होता है। पहली सिंचाई फूल आने से पहले करें और दूसरी सिंचाई फलियों में दाना बनते समय यानी बुवाई के 70-80 दिन बाद करें। यदि जाड़े में बारिश हो जाए, तो दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। बारिश न होने की स्थिति में हल्की सिंचाई करने से पैदावार में वृद्धि होती है। सिंचाई के एक सप्ताह बाद हल्की निराई-गुड़ाई करना लाभकारी होता है।
अधिक सिंचाई के नुकसान
जरूरत से ज्यादा सिंचाई करने से पौधों की वानस्पतिक वृद्धि ज्यादा होती है, जिससे उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए जल निकास की उचित व्यवस्था जरूरी है, अन्यथा फसल खराब हो सकती है।
उकठा रोग: कारण और रोकथाम
उकठा रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक फफूंदी से फैलता है। इसके कारण पुरानी पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, पौधे का ऊपरी भाग मुरझा जाता है और अंततः पौधा पूरी तरह सूखकर मर जाता है। यह रोग फसल की किसी भी अवस्था में आ सकता है लेकिन पौध या फूल और फली बनने की अवस्था में अधिक गंभीर होता है।
उकठा प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन करना आवश्यक है। इनमें पूसा 372, पूसा 329, पूसा 362, पूसा चमत्कार (बीजी 1053 – काबुली), पूसा 1003 (काबुली), केडब्ल्यूआर 108, जेजी 74, डीसीपी 92-3, जीएनजी 1581, जीपीएफ-2 और हरियाणा चना-1 प्रमुख हैं। जिंक की कमी होने पर पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं, जिसे रोकने के लिए जिंक सल्फेट का छिड़काव करें। असिंचित या देर से बुवाई की स्थिति में 2% यूरिया घोल का 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना फायदेमंद होता है।
निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण
सिंचाई के बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें ताकि खरपतवार नष्ट हो जाएँ। खरपतवार नियंत्रण के लिए जैविक और यांत्रिक विधियाँ अपनाएँ। खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग सावधानीपूर्वक करें।
हरी खाद और जैविक खाद का उपयोग करें। जीवाणु कल्चर और फास्फोरस घोलने वाले बैक्टीरिया का प्रयोग उत्पादन बढ़ाने में मदद करता है। समन्वित कीट प्रबंधन तकनीकों को अपनाकर रासायनिक कीटनाशकों के अधिक उपयोग से बचें।
फसल कटाई और भंडारण
जब फलियाँ पूरी तरह सूख जाएँ और पत्तियाँ झड़ने लगें, तभी फसल काटनी चाहिए। फसल को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें। भंडारण के दौरान कीटों से बचाव के लिए नीम की पत्तियाँ डालना फायदेमंद होता है।
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