ईसबगोल की खेती से कमाएं मोटा मुनाफा, जानिए कैसे बनेगा ये किसानों का गेमचेंजर!

Isabgol Ki Kheti Kaise Karen : आजकल औषधीय खेती का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है। जागरूक किसान भाई अब पारंपरिक फसलों से हटकर ऐसी खेती की ओर बढ़ रहे हैं, जो कम मेहनत में ज़्यादा कमाई दे। ईसबगोल की खेती इसका सबसे शानदार उदाहरण है। ये एक ऐसी औषधीय फसल है, जो कम समय में तैयार होती है और किसानों को मालामाल कर सकती है। देखने में झाड़ी जैसा ये पौधा गेहूँ की बालियों की तरह फल देता है, और इसकी भूसी अपने वजन से कई गुना पानी सोख लेती है।

भारत में ईसबगोल का 80% उत्पादन होता है, और इसकी माँग देश-विदेश में बढ़ती जा रही है। जो किसान अभी तक पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं, उनके लिए ये वक्त है कि वे ईसबगोल की खेती अपनाएँ और अपनी जेब भरें। आइए, विस्तार से जानते हैं कि ईसबगोल की खेती कैसे करें (Isabgol Ki Kheti Kaise Karen), इसके लिए क्या चाहिए और इससे कितना फायदा हो सकता है।

भारत में ईसबगोल की खेती का हाल

ईसबगोल की खेती भारत में खास तौर पर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश में होती है। राजस्थान के जालोर, बाड़मेर और जोधपुर ज़िले इसके बड़े केंद्र हैं, वहीं गुजरात में बनासकांठा और मध्य प्रदेश में मंदसौर-नीमच इलाके मशहूर हैं। इसकी भूसी का इस्तेमाल कब्ज़, पेट की बीमारियों और मोटापे जैसी समस्याओं में होता है, जिसकी वजह से दवा कंपनियाँ इसे हाथोंहाथ लेती हैं। इसके अलावा, इसकी पत्तियाँ पशुओं के लिए बढ़िया चारा बनती हैं। इससे किसानों को दोहरा फायदा मिलता है – चारे का खर्च बचता है और फसल बेचने से अच्छी कमाई होती है। मंडी में इसके बीज और भूसी के दाम ऊँचे हैं, जो इसे मुनाफे की फसल बनाते हैं।

ईसबगोल की उन्नत किस्में (Isabgol Ki Kheti Kaise Karen)

ईसबगोल की खेती में सबसे पहला कदम है सही किस्म का चयन। अपने इलाके की जलवायु और मिट्टी के हिसाब से किस्म चुनें, ताकि पैदावार ज़्यादा हो और मेहनत बेकार न जाए। यहाँ कुछ उम्दा किस्मों की जानकारी दी जा रही है:

  1. गुजरात ईसबगोल 2: गुजरात के शुष्क इलाकों के लिए बेस्ट। ये 118-125 दिन में पकती है और 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है। भूसी की मात्रा 28-30% होती है, जो बाज़ार में अच्छी कीमत लाती है।
  2. आर.आई. 89: राजस्थान के लिए खास, खासकर सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्रों में। 110-115 दिन में तैयार, 4.5-6.5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार। रोग और कीटों से कम प्रभावित, गुणवत्ता शानदार।
  3. आर.आई. 1: राजस्थान में लोकप्रिय, पौधे की ऊँचाई 29-47 सेमी। 112-123 दिन में पकती है, 4.5-8.5 क्विंटल प्रति एकड़ उपज। मज़बूत और भरोसेमंद किस्म।
  4. जवाहर ईसबगोल 4: मध्य प्रदेश की जलवायु के लिए मुफीद। 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार, कृषि वैज्ञानिकों की पसंद।
  5. हरियाणा ईसबगोल 5: हरियाणा के लिए तैयार की गई, 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ उपज। कम पानी में भी अच्छा प्रदर्शन।

इसके अलावा निहारिका, इंदौर ईसबगोल और मंदसौर ईसबगोल जैसी आधुनिक किस्में भी हैं, जो अलग-अलग इलाकों में फायदेमंद हैं। अपने नज़दीकी कृषि केंद्र से सलाह लेकर सही किस्म चुनें।

जलवायु और मिट्टी

ईसबगोल की खेती उष्ण और शुष्क जलवायु में सबसे अच्छी होती है। इसके बीज अंकुरण के लिए 20-25 डिग्री और बढ़वार के लिए 30-35 डिग्री तापमान चाहिए। मिट्टी बलुई दोमट होनी चाहिए, जिसमें जल निकास अच्छा हो और जीवाश्म (ऑर्गेनिक मैटर) ज़्यादा हो। मिट्टी का पीएच मान 7-8 के बीच ठीक रहता है। ज़्यादा नमी वाली या भारी मिट्टी इसके लिए ठीक नहीं, क्योंकि इससे जड़ें सड़ सकती हैं और पौधा ठीक से नहीं बढ़ता।

बुआई का सही समय और तरीका

ईसबगोल की बुआई का सबसे अच्छा वक्त अक्टूबर से नवंबर है, जब ठंड शुरू होती है। बीजों को कतारों में बोएँ, कतारों की दूरी 25-30 सेमी रखें। प्रति हेक्टेयर 4-5 किलो बीज काफी हैं। बुआई से पहले बीज को 3 ग्राम थाईरम प्रति किलो के हिसाब से उपचारित करें, ताकि फफूंद और रोगों से बचाव हो। खेत को 2-3 बार जोतकर भुरभुरा करें, फिर समतल करके बोएँ। बीज को 2-3 सेमी गहराई में डालें और हल्की मिट्टी से ढक दें।

वैज्ञानिक खेती: पैदावार बढ़ाने के नुस्खे

ईसबगोल की खेती (Isabgol Ki Kheti Kaise Karen) को अगर वैज्ञानिक तरीके से किया जाए, तो पैदावार में ज़बरदस्त इज़ाफा हो सकता है। इसके लिए खेत की तैयारी से लेकर फसल की देखभाल तक हर कदम पर ध्यान देना ज़रूरी है। सबसे पहले खेत को अच्छे से तैयार करें। खेत की 2-3 बार जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएँ। अंतिम जुताई में 10 किलो क्यूनोलफॉस 1.5% प्रति एकड़ डालें, ताकि दीमक और भूमिगत कीटों से फसल बची रहे।

अगर आप जैविक तरीका अपनाना चाहते हैं, तो 1 किलो बुवेरिया बेसियाना या मेटारिजियम एनिसोपली को 100 किलो गोबर खाद में मिलाकर खेत में बिखेर दें। ये कीटों को प्राकृतिक तरीके से खत्म करता है। इसके बाद बीजोपचार का ख्याल रखें। मिट्टी जनित रोगों से बचाने के लिए 1 किलो ट्राइकोडर्मा विरिड को 100 किलो गोबर खाद में मिलाकर अंतिम जुताई के साथ मिट्टी में डालें।

बीज को मेटालेक्सिल 35% एसडी से 5 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करें, ताकि फफूंद का खतरा न रहे। खाद और उर्वरक भी सही मात्रा में डालें। प्रति एकड़ 12 किलो नत्रजन और 10 किलो फास्फोरस बुआई के समय डालें, साथ में 4-6 टन गोबर खाद मिलाएँ, जिससे मिट्टी की ताकत बढ़े और पौधों को पूरा पोषण मिले। सिंचाई का भी ध्यान रखें। बुआई के बाद पहली हल्की सिंचाई करें, फिर 30 और 70 दिन बाद पानी दें। सूखे इलाकों में 6-7 सिंचाई की ज़रूरत पड़ सकती है, लेकिन ज़्यादा पानी से बचें, वरना जड़ें खराब हो सकती हैं। इन तरीकों से खेती करने पर न सिर्फ पैदावार बढ़ेगी, बल्कि फसल की क्वालिटी भी शानदार होगी।

रोग और कीटों से बचाव

ईसबगोल की फसल में कुछ रोग और कीट परेशान कर सकते हैं। इनका सही समय पर इलाज ज़रूरी है:

  1. तुलासिता (डाउनी मिल्ड्यू): पत्तियों पर सफेद धब्बे पड़ते हैं। कतारों की दूरी 30 सेमी रखें और पूर्व-पश्चिम दिशा में बोएँ। डायथेन एम-45 (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
  2. उकठा (विल्ट): पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं। कार्बेडाजिम 50% डब्ल्यूपी (2 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचार करें।
  3. दीमक: क्लोरोपायरिफॉस 25 ईसी (2.47 लीटर) पानी के साथ सिंचाई करें।
  4. माहु (एफिड्स): इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL (1 मि.ली. प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।

फसल कटाई और मुनाफा

ईसबगोल 115-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जब बालियाँ भूरी हो जाएँ और पत्तियाँ पीली पड़ने लगें, तो सुबह 10-11 बजे कटाई करें। मौसम साफ होना चाहिए, वरना बारिश से बीज झड़ सकते हैं। एक हेक्टेयर से 10-15 क्विंटल बीज और 5 क्विंटल भूसी मिलती है। मंडी में बीज का भाव ₹12,500 और भूसी का ₹25,000 प्रति क्विंटल तक है। कुल आय ₹1,87,000 तक हो सकती है। लागत (खेत तैयारी, बीज, मजदूरी, कीटनाशक, सिंचाई) ₹10,800 के आसपास आती है। शुद्ध मुनाफा ₹1,76,600 तक संभव है।

ईसबगोल के फायदे

ईसबगोल की भूसी में म्यूसीलेज होता है, जो पाचन तंत्र को मज़बूत करता है। ये कब्ज़, दस्त, बवासीर और मोटापे में फायदेमंद है। इसके बीज में 17-19% प्रोटीन होता है, जो पशु और मुर्गी आहार के लिए उपयोगी है। भूसी रहित बीज भी बाज़ार में बिकते हैं।

ईसबगोल कृषि कार्यमाला

ईसबगोल कृषि कार्यमाला में खेती की पूरी जानकारी शामिल है – उन्नत किस्में, मिट्टी परीक्षण, बुआई, कीट प्रबंधन, उर्वरक प्रयोग और फसल देखभाल। अपने नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क करें। वहाँ से आपको सही सलाह और बीज मिलेंगे।

ईसबगोल की खेती कम लागत में मोटा मुनाफा देने वाली फसल है। सही किस्म, वैज्ञानिक तरीके और थोड़ी मेहनत से आप हर हेक्टेयर से ₹1.5 लाख से ज़्यादा कमा सकते हैं। ये न सिर्फ आपकी जेब भरती है, बल्कि पशुओं के लिए चारा भी देती है। अपने क्षेत्र के कृषि विभाग से संपर्क करें, सही जानकारी लें और ईसबगोल की खेती शुरू करें। मेहनत का फल ज़रूर मिलेगा!

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Author

  • Rahul Maurya

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मैंने संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं Krishitak.com का संस्थापक और प्रमुख लेखक हूं। पिछले 3 वर्षों से मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाएं, और ग्रामीण भारत से जुड़े विषयों पर लेखन कर रहा हूं।

    Krishitak.com के माध्यम से मेरा उद्देश्य है कि देशभर के किसानों तक सटीक, व्यावहारिक और नई कृषि जानकारी आसान भाषा में पहुँचे। मेरी कोशिश रहती है कि हर लेख पाठकों के लिए ज्ञानवर्धक और उपयोगी साबित हो, जिससे वे खेती में आधुनिकता और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकें।

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