अब यूपी में भी शुरू होगी कार्बी आंगलोंग वाली खेती! न खाद चाहिए, न पानी डिमांड पूरे देश में

झाड़ू हर घर की जरूरत है। यह न सिर्फ सफाई का साधन है, बल्कि हिंदू धर्म में इसे समृद्धि और देवी लक्ष्मी का प्रतीक भी माना जाता है। त्योहारों पर झाड़ू की पूजा होती है, और अब इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बन रही है। असम, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, और कर्नाटक में झाड़ू की खेती बढ़ रही है। असम का कार्बी आंगलोंग जिला देश में झाड़ू का सबसे बड़ा उत्पादक है।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में प्रकृति कुंज ने इस खेती को नया आयाम दिया है। यहाँ असम से लाए गए पौधों से नर्सरी तैयार की गई है, जो किसानों को बाँटी जाएगी। यह खेती बिना खाद और पानी के हर मौसम में हो सकती है, जिससे लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है।

सहारनपुर में प्रकृति कुंज की पहल

सहारनपुर के प्रकृति कुंज में शाकंभरी विश्वविद्यालय के सहयोग से झाड़ू की खेती पर अनूठा प्रयोग शुरू हुआ है। आचार्य राजेंद्र अटल ने बताया कि असम के कार्बी आंगलोंग से झाड़ू के पौधे मँगवाए गए और यहाँ नर्सरी तैयार की गई। अब ये पौधे किसानों को देने की तैयारी है। प्रकृति कुंज के द्वार पर लगे झाड़ू के पौधे देखने में आकर्षक हैं और लोग इन्हें देखने दूर-दूर से आते हैं।

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इन पौधों की खासियत है कि इन्हें न खाद चाहिए, न ज्यादा पानी। जाड़ा, गर्मी, या बरसात, हर मौसम में ये फलते-फूलते हैं। एक हेक्टेयर में 10,000 पौधे लगाए जा सकते हैं, और प्रत्येक पौधा 2-3 किलो झाड़ू देता है। बाजार में झाड़ू का भाव 50-80 रुपये/किलो है, जिससे प्रति हेक्टेयर 5-6 लाख रुपये की कमाई संभव है।

कार्बी आंगलोंग: झाड़ू का गढ़

असम का कार्बी आंगलोंग जिला झाड़ू की खेती का केंद्र है। यहाँ की जलवायु और मिट्टी इस फसल के लिए आदर्श है। यहाँ प्रति हेक्टेयर 20-25 टन झाड़ू का उत्पादन होता है। स्थानीय किसान रमेन बरुआ ने बताया कि उन्होंने एक एकड़ में झाड़ू की खेती से 2 लाख रुपये का मुनाफा कमाया।

झाड़ू की खेती में लागत कम होती है, क्योंकि इसे रासायनिक खाद या कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ती। पौधों को 1×1 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है, और 6-8 महीने में फसल तैयार हो जाती है। असम से झाड़ू दिल्ली, कोलकाता, और चेन्नई जैसे बड़े बाजारों में भेजी जाती है।

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हर मौसम में आसान खेती

झाड़ू की खेती की सबसे बड़ी खासियत है इसकी आसानी। यह फसल रेतीली, दोमट, या चिकनी मिट्टी में आसानी से उगती है। इसे 10-38 डिग्री सेल्सियस तापमान और 1200-1800 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। बुवाई के लिए खेत को एक बार जोतकर समतल करना काफी है। बीज या पौधों को जून-जुलाई में लगाएँ, और फसल अक्टूबर-नवंबर तक तैयार हो जाती है।

खरपतवार नियंत्रण के लिए 15-20 दिन बाद हल्की निराई करें। रोगों का खतरा कम होता है, लेकिन सफेद मक्खी से बचाव के लिए नीम तेल (2 मिली/लीटर) का छिड़काव करें। यह फसल पर्यावरण के लिए भी टिकाऊ है, क्योंकि यह मिट्टी की उर्वरता बरकरार रखती है।

मुनाफे का नया रास्ता

झाड़ू की खेती किसानों के लिए कम लागत में मोटा मुनाफा देने वाली साबित हो रही है। सहारनपुर के प्रकृति कुंज की पहल से उत्तर प्रदेश के किसान भी अब इस फसल को अपना रहे हैं। तमिलनाडु और कर्नाटक में भी छोटे पैमाने पर इसकी खेती शुरू हुई है। आंध्र प्रदेश में इसे चावल के खेतों के साथ मिश्रित फसल के रूप में उगाया जाता है। यह खेती न सिर्फ आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि स्थानीय रोजगार भी बढ़ाती है। किसान भाई नजदीकी कृषि केंद्र से पौधे और सलाह लें, और झाड़ू की खेती से अपनी कमाई बढ़ाएँ।

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  • Rahul

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं krishitak.com पर लेखक हूं, जहां मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाओं पर केंद्रित आर्टिकल लिखता हूं। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ, मैं पाठकों को लेटेस्ट और उपयोगी जानकारी प्रदान करने का प्रयास करता हूं।

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