Jharkhand Mango Festival: झारखंड की धरती इन दिनों आम की मिठास और मेहनत की खुशबू से गुलज़ार है। रांची में नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) ने तीसरे आम महोत्सव का शानदार आयोजन किया है, जहाँ फलों का राजा आम हर दिल पर छाया हुआ है। यह महोत्सव सिर्फ़ स्वाद का उत्सव नहीं, बल्कि झारखंड के आदिवासी किसानों की मेहनत, जैविक खेती की सोच, और आत्मनिर्भरता की मिसाल है। वाडी परियोजना के तहत उगाए गए रसायन-मुक्त आमों ने शहरी उपभोक्ताओं का दिल जीत लिया है। आइए जानते हैं इस महोत्सव की खासियत और इसके पीछे की कहानी।
रसायन-मुक्त आमों का अनोखा मेला
रांची के झारखंड राज्य सहकारी बैंक मुख्यालय में आयोजित यह तीन दिवसीय महोत्सव ‘ऑर्गेनिक आम और सतत खेती’ की थीम पर आधारित है। यहाँ आम्रपाली, मल्लिका, लंगड़ा, और गुलाबखास जैसी स्थानीय किस्मों के रसायन-मुक्त आमों की बहार छाई है। ये आम वाडी परियोजना के तहत आदिवासी किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) द्वारा 61 वाडी क्लस्टर में उगाए गए हैं। नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक गौतम सिंह बताते हैं कि ये आम सिर्फ़ फल नहीं, बल्कि मेहनत, सततता, और बदलाव की कहानियाँ हैं। इनमें न तो रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल हुआ है, न ही कीटनाशक। इनके हर दाने में झारखंड की मिट्टी की खुशबू और आदिवासी किसानों का पसीना बस्ता है।
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आदिवासी किसानों का हुनर और हौसला
यह महोत्सव झारखंड के आदिवासी किसानों को शहरी बाज़ारों से जोड़ने का एक मज़बूत मंच है। बोकारो, हज़ारीबाग, रामगढ़, लोहरदगा, और साहिबगंज जैसे 10 जिलों के किसानों ने अपने बागानों से ताज़े आम यहाँ लाए हैं। इनमें से कई किसान, जैसे जामताड़ा के राजेश मुर्मू, अपने 60 किलो आम्रपाली आम को महोत्सव के पहले दिन कुछ ही घंटों में बेच चुके हैं। नाबार्ड की वाडी परियोजना ने इन किसानों को न सिर्फ़ जैविक खेती का हुनर सिखाया, बल्कि उन्हें उद्यमी बनने का हौसला भी दिया। इस परियोजना ने 2008 से अब तक हज़ारों आदिवासी परिवारों की ज़िंदगी बदली है, जिससे उनकी आय बढ़ी और गाँवों में खुशहाली आई।
शहरी उपभोक्ताओं से सीधा रिश्ता
इस महोत्सव का एक बड़ा मकसद है ग्रामीण किसानों को शहरी उपभोक्ताओं के करीब लाना। यहाँ आने वाले लोग न सिर्फ़ जैविक आमों का स्वाद चख रहे हैं, बल्कि उन किसानों की कहानियाँ भी सुन रहे हैं, जिन्होंने बिना रसायनों के इन फलों को उगाया। भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक प्रेम रंजन प्रकाश सिंह, जिन्होंने इस आयोजन का उद्घाटन किया, ने इसे सतत खेती और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की एक शानदार पहल बताया। उन्होंने कहा कि यह मेला झारखंड की सांस्कृतिक और कृषि विरासत को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा। उपभोक्ताओं के लिए यह मौका है कि वे सेहतमंद और पर्यावरण के लिए सुरक्षित आम खरीदें, साथ ही आदिवासी किसानों के स्वावलंबन को समर्थन दें।
झारखंड की मिठास, दुनिया की नज़र में
नाबार्ड की यह पहल सिर्फ़ स्थानीय बाज़ार तक सीमित नहीं है। वाडी परियोजना के तहत किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़ने की कोशिश भी हो रही है। हाल ही में ओडिशा के तितलागढ़ में दो FPOs ने 50 क्विंटल आम यूरोप को निर्यात किए, जो इस बात का सबूत है कि झारखंड के ऑर्गेनिक आम भी वैश्विक मंच पर अपनी जगह बना सकते हैं। यह महोत्सव न सिर्फ़ झारखंड के भूले-बिसरे स्वादों को ज़िंदा कर रहा है, बल्कि सतत खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने का रास्ता भी दिखा रहा है।
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