ज्वार की खेती कैसे करें: कम लागत में ज्यादा मुनाफा पाएं

Jwar Ki Kheti: ज्वार एक ऐसी फसल है, जो गाँव के किसानों के लिए वरदान है। ये कम पानी, कम खर्च, और कम मेहनत में अच्छी पैदावार देती है। चाहे आप इसे अनाज के लिए उगाएं, पशुओं के चारे के लिए, या जैव ईंधन जैसे औद्योगिक कामों के लिए, ज्वार हर तरह से फायदेमंद है। भारत के ज्यादातर हिस्सों, जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, और कर्नाटक में ये फसल खूब उगाई जाती है। अगर आप ज्वार की खेती शुरू करना चाहते हैं, तो ये लेख आपके लिए पूरी गाइड है। हम हर कदम को इतने आसान तरीके से बताएंगे कि गाँव का हर किसान इसे पढ़कर अपने खेत में लागू कर सके।

खेत को तैयार करने का सही तरीका

ज्वार की खेती की शुरुआत खेत की अच्छी तैयारी से होती है। गर्मी के मौसम में खेत की एक गहरी जुताई कर लें। इससे मिट्टी हल्की और भुरभुरी हो जाएगी, जिससे ज्वार की जड़ें आसानी से फैल सकेंगी। इसके बाद, 2-3 बार हैरो से जुताई करें, ताकि मिट्टी एकसार हो जाए। अगर आपके पास गोबर की खाद है, तो प्रति हेक्टेयर 8-10 टन खाद डालें। ये मिट्टी को पोषण देगा और फसल को शुरू से ताकत मिलेगी। अगर गोबर की खाद नहीं है, तो वर्मीकम्पोस्ट या नीम की खली भी अच्छा काम करती है। खेत में पानी का ठहराव न हो, क्योंकि ज्वार को ज्यादा गीलापन पसंद नहीं। अगर आपके खेत में पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था है, तो फसल और बेहतर होगी।

मिट्टी का सही चुनाव और जाँच

ज्वार को कई तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन गहरी, उपजाऊ, और अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में ये सबसे अच्छी पैदावार देता है। फिर भी, ये उथली मिट्टी और सूखे की स्थिति में भी अच्छा प्रदर्शन करता है। अगर आप राजस्थान या मध्य प्रदेश जैसे सूखे इलाकों में हैं, तो ज्वार आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प है। बुआई से पहले मिट्टी की जाँच करवाएं। अपने गाँव के कृषि केंद्र पर मिट्टी टेस्ट की सुविधा मिल सकती है। अगर मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, या पोटाश की कमी है, तो उसी हिसाब से खाद डालें। मिट्टी की सेहत अच्छी होगी, तो फसल भी लहलहाएगी।

सही बीज और बुआई का समय

ज्वार की अच्छी पैदावार के लिए बीज का सही चुनाव बहुत जरूरी है। अपने नजदीकी कृषि केंद्र से प्रमाणित बीज लें, जैसे CSH 41, CSH 35, CSV 36, या Palamuru Jonna (CSV 31), जो महाराष्ट्र, कर्नाटक, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। अगर पुराने बीज इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उन्हें पानी में डालकर टेस्ट कर लें। ज्वार की बुआई का सबसे अच्छा समय मॉनसून की शुरुआत, यानी जून का तीसरा सप्ताह से जुलाई का पहला सप्ताह है। इस समय बारिश शुरू हो जाती है, और फसल को प्राकृतिक पानी मिलता रहता है। बीज को 4-5 सेंटीमीटर गहराई में बोएं, लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सेंटीमीटर रखें। प्रति हेक्टेयर 7-8 किलो बीज काफी है।

बीज उपचार के आसान तरीके

ज्वार की फसल को कीट और रोगों से बचाने के लिए बीज उपचार जरूरी है। बुआई से पहले बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 WS या 3 ग्राम थायमेथोक्साम प्रति किलो बीज से उपचारित करें। इसके साथ 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) मिलाएं, ताकि मृदा जनित रोगों से बचाव हो। अगर आप जैविक तरीके अपनाना चाहते हैं, तो नीम की खली या गोमूत्र से बीज को भिगोकर भी उपचार कर सकते हैं। ये तरीका कीटों को शुरू में ही दूर रखता है। बुआई के समय मिट्टी में फोरेट या थिमेट 8-10 किलो प्रति हेक्टेयर डालें, ताकि तना छेदक जैसे कीटों से सुरक्षा मिले।

पानी और उर्वरक का सही प्रबंधन

इस फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है। अगर मॉनसून में बारिश अच्छी हो, तो आपको अलग से पानी देना नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर बारिश कम हो, तो 2-3 बार पानी दें। पहला पानी बुआई के 20-25 दिन बाद, दूसरा फूल आने के समय, और तीसरा दाने बनने के समय। अगर आपके खेत में ड्रिप इरिगेशन है, तो उसका इस्तेमाल करें, इससे पानी की बचत होगी। उर्वरक की बात करें, तो हल्की मिट्टी और कम बारिश वाले इलाकों में बुआई के समय 30 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो P2O5, और 20 किलो K2O प्रति हेक्टेयर डालें। बुआई के 30-35 दिन बाद 30 किलो नाइट्रोजन और डालें। मध्यम-गहरी मिट्टी और ज्यादा बारिश वाले इलाकों में 40 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो P2O5, और 40 किलो K2O बुआई के समय और 40 किलो नाइट्रोजन 30 दिन बाद डालें।

खरपतवार नियंत्रण के कारगर उपाय

ज्वार की फसल को शुरूआती 35 दिन तक खरपतवार से मुक्त रखना जरूरी है। बुआई के 48 घंटे के भीतर एट्राज़ीन 0.5 किलो प्रति हेक्टेयर छिड़कें। इसके अलावा, बुआई के 20 दिन बाद एक बार हाथ से निराई-गुड़ाई करें। 21 और 40 दिन बाद दो बार अंतर-जुताई करें, इससे मिट्टी में हवा रहेगी और नमी बनी रहेगी। अगर स्ट्रिगा जैसे खरपतवार दिखें, तो उन्हें हाथ से उखाड़ें। ज्यादा स्ट्रिगा होने पर 2,4-डी सोडियम साल्ट 1 किलो प्रति हेक्टेयर छिड़कें। अगर आप जैविक खेती कर रहे हैं, तो खरपतवार को बार-बार हटाकर और मल्चिंग करके नियंत्रित करें।

मिश्रित खेती से बढ़ाएं फायदा

ज्वार की खेती (Jwar Ki Kheti) को और फायदेमंद बनाने के लिए मिश्रित खेती अपनाएं। ज्वार के साथ अरहर, मूंग, सोयाबीन, या लोबिया उगाना अच्छा विकल्प है। ज्वार और अरहर को 2:1 पंक्ति अनुपात में बोएं। CSH 16, CSH 25, या CSH 35 जैसे ज्वार के संकर इसके लिए उपयुक्त हैं। ज्वार और लोबिया को 2:2 अनुपात में बोने से हरा चारा मिलता है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। मिश्रित खेती से खरपतवार भी कम होते हैं और जोखिम कम होता है। खरीफ ज्वार के बाद रबी में चना, कुसुम, या सरसों उगाएं, खासकर उन इलाकों में जहां 700 मिमी से ज्यादा बारिश होती है।

कीटों से बचाव के प्राकृतिक और रासायनिक तरीके

ज्वार की फसल में शूट फ्लाई, तना छेदक, और फॉल आर्मीवर्म जैसे कीट परेशानी खड़ी कर सकते हैं। शूट फ्लाई अंकुरण के समय पौधों को नुकसान पहुंचाती है, जिससे “डेड-हार्ट” की समस्या होती है। इसे रोकने के लिए मॉनसून शुरू होने के 7-10 दिन के भीतर बुआई करें और 10-12 किलो प्रति हेक्टेयर बीज डालें। इमिडाक्लोप्रिड 5 मिली प्रति किलो बीज से उपचार करें। तना छेदक के लिए कार्बोफ्यूरान 3G 20 किलो प्रति हेक्टेयर मिट्टी में डालें। फॉल आर्मीवर्म के लिए फेरोमोन ट्रैप 12 प्रति हेक्टेयर लगाएं और नीम का तेल 5 मिली प्रति लीटर पानी में छिड़कें। गंभीर स्थिति में स्पिनेटोरम 11.7% SC 0.5 मिली प्रति लीटर पानी छिड़कें। जैविक तरीके के लिए, चावल की भूसी और गुड़ का किण्वित मिश्रण बनाकर थायोडीकार्ब मिलाएं और पौधों पर लगाएं।

रोगों से फसल की सुरक्षा

ज्वार में अनाज की फफूंदी और डाउनी मिल्ड्यू जैसे रोग लग सकते हैं। अनाज की फफूंदी से दाने हल्के और कम पौष्टिक हो जाते हैं। इसे रोकने के लिए मोल्ड सहिष्णु किस्में, जैसे CSV 36 या CSH 41, चुनें। फूल आने के समय प्रोपीकोनाज़ोल 0.2% छिड़कें और 10 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें। डाउनी मिल्ड्यू से पत्तियों पर सफेद धब्बे बनते हैं। इसे रोकने के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करें और मेटालेक्सिल 1 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। रिडोमिल-MZ 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ पर्ण छिड़काव करें। फसल को नियमित देखें, ताकि रोग शुरू में ही पकड़ में आ जाए।

कटाई और भंडारण का सही तरीका

ज्वार की फसल 90-120 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब दाने सख्त हो जाएं और पत्तियां पीली पड़ने लगें, तो कटाई शुरू करें। सुबह के समय कटाई करें, ताकि दाने टूटें नहीं। पुष्पगुच्छों को पहले काटें और एक सप्ताह तक खेत में सुखाएं। इसके बाद, मैन्युअल या यांत्रिक थ्रेशर से दानों को अलग करें। दानों को 1-2 दिन धूप में सुखाएं, ताकि नमी 10-12% रह जाए। सूखे दानों को प्लास्टिक या जूट की बोरियों में भरकर सूखी जगह पर स्टोर करें। चारे के लिए हरे पौधों को काटकर पशुओं को खिलाएं।

ज्वार की बिक्री और मार्केटिंग

ज्वार की फसल तैयार होने के बाद, उसे सही दाम पर बेचना भी जरूरी है। स्थानीय मंडी में ताजा रेट चेक करें, क्योंकि मॉनसून के बाद ज्वार की मांग बढ़ती है। अगर आपने जैविक खेती की है, तो अपने ज्वार को “जैविक अनाज” के नाम से बेचें। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स या स्थानीय कोऑपरेटिव सोसाइटी के जरिए भी बिक्री करें। अपने ब्लॉग krishitak.com पर ज्वार की खेती और इसके फायदों के बारे में लिखें, ताकि ज्यादा लोग आपके अनाज को खरीदें। गाँव के दूसरे किसानों के साथ मिलकर थोक में बिक्री करें, इससे बेहतर दाम मिलेगा।

ज्यादा मुनाफे के लिए खास सलाह

ज्वार की खेती (Jwar Ki Kheti) से मुनाफा बढ़ाने के लिए कुछ छोटे-छोटे तरीके अपनाएं। अपने खेत के आसपास के अनुभवी किसानों से सलाह लें। कृषि केंद्रों से नई किस्मों और तकनीकों की जानकारी लेते रहें। ज्वार के साथ मिश्रित खेती अपनाएं, ताकि जोखिम कम हो। अगर आपके पास पशु हैं, तो ज्वार का चारा उनके लिए इस्तेमाल करें, इससे चारे का खर्च बचेगा। अपने ब्लॉग पर ज्वार की खेती की फोटो और अनुभव शेयर करें, इससे आपका ब्लॉग पॉपुलर होगा और ज्वार की बिक्री बढ़ेगी। इस मॉनसून, ज्वार की खेती शुरू करें और अपने खेत को समृद्ध बनाएं!

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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