Kahu Ki Kheti Kaise Karen: किसान भाइयों, अगर आप ऐसी फसल की तलाश में हैं, जो बैंक की फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की तरह सुरक्षित और मुनाफेदार हो, तो काहू (शतावरी) की खेती आपके लिए वरदान साबित हो सकती है। ये औषधीय फसल न सिर्फ़ कम लागत में उगाई जा सकती है, बल्कि बाजार में इसकी भारी माँग इसे लाखों की कमाई का रास्ता बनाती है।
खास बात ये है कि काहू को आलू के साथ सहफसली खेती के रूप में उगाकर आप एक ही खेत से दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में किसान इसे अपनाकर अपनी जेब भर रहे हैं। आइए, जानें काहू की खेती कैसे करें, आलू के साथ इसका तालमेल कैसे बनाएँ, और इससे कितनी कमाई हो सकती है।
काहू की खेती क्यों है खास
काहू, जिसे शतावरी या asparagus के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधा है, जिसकी जड़ें और तने आयुर्वेदिक दवाओं, हर्बल प्रोडक्ट्स, और खाद्य उद्योग में इस्तेमाल होते हैं। इसकी खेती में लागत बहुत कम आती है, क्योंकि इसे ज्यादा खाद, कीटनाशक, या पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती। ये बारहमासी पौधा है, यानी एक बार लगाने के बाद कई साल तक फसल देता है।
बाजार में इसकी कीमत 30,000 से 70,000 रुपये प्रति कुंतल तक होती है, और एक एकड़ में 250-300 कुंतल उत्पादन आसानी से हो सकता है। सबसे बड़ी बात, इसे आलू जैसी फसलों के साथ सहफसली खेती के रूप में उगाकर आप खेत का पूरा उपयोग कर सकते हैं। ये फसल नुकसान का जोखिम कम करती है और आपकी कमाई को सुरक्षित बनाती है।
आलू के साथ सहफसली खेती का तरीका – Kahu Ki Kheti Kaise Karen
काहू की खेती को आलू के साथ मिलाकर करने से आप एक ही खेत से दो फसलों का मुनाफा कमा सकते हैं। आलू की बुआई दिसंबर में शुरू होती है। इसके 20-25 दिन बाद, जब आलू के पौधे थोड़े बड़े हो जाएँ, काहू की बुआई करें। खेत में एक नाली (पंक्ति) छोड़कर काहू के बीज या जड़ें बोएँ। इससे दोनों फसलों को पर्याप्त जगह और पोषण मिलता है।
आलू की फसल 90-100 दिन में तैयार हो जाती है, जबकि काहू की जड़ें 2-3 साल में पूरी तरह विकसित होती हैं। इस दौरान आप हर साल आलू की फसल ले सकते हैं, और तीसरे साल से काहू की जड़ों की तुड़ाई शुरू कर सकते हैं। ये तरीका खेत की उर्वरता को बनाए रखता है और लागत को और कम करता है। देसी किसान खेत में गोबर की खाद और नीम की खली डालते हैं, जो दोनों फसलों को पोषण देता है।
खेत की तैयारी और बुआई
काहू की खेती के लिए दोमट या बलुई मिट्टी सबसे अच्छी होती है, लेकिन ये किसी भी उपजाऊ मिट्टी में उग सकता है। खेत की गहरी जुताई करें और खरपतवार हटाएँ। जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें, क्योंकि ज्यादा पानी काहू के लिए नुकसानदायक है। गड्ढों में 10-15 किलो गोबर की सड़ी खाद और 1 किलो राख मिलाएँ।
काहू के बीज या जड़ों को 30-45 सेंटीमीटर की दूरी पर बोएँ। बुआई के बाद हल्का पानी दें और मिट्टी को ढक दें। अगर आलू के साथ सहफसली खेती कर रहे हैं, तो एक पंक्ति छोड़कर बुआई करें। जुलाई या दिसंबर का महीना बुआाई के लिए सबसे सही है, क्योंकि मॉनसून या ठंड का मौसम पौधों को जमने में मदद करता है।
देखभाल
काहू की खेती में ज्यादा मेहनत की ज़रूरत नहीं पड़ती। शुरुआती 15 दिन तक हल्का पानी दें, फिर मिट्टी की नमी के हिसाब से हफ्ते में एक बार सिंचाई करें। पौधों के चारों ओर सूखी घास या पुआल बिछाएँ, ताकि नमी बनी रहे और खरपतवार कम उगें। हर साल 5-10 किलो गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट प्रति पौधा डालें। कीटों से बचाव के लिए नीम तेल और लहसुन का घोल छिड़कें। अगर फफूंद दिखे, तो हल्दी और राख का मिश्रण मिट्टी में मिलाएँ। तीसरे साल से जड़ों की तुड़ाई शुरू करें, जब वो पूरी तरह पक जाएँ।
मुनाफे की गणना
काहू की खेती में लागत बहुत कम आती है, क्योंकि इसे ज्यादा खाद, पानी, या कीटनाशक की ज़रूरत नहीं। एक एकड़ में करीब 250-300 कुंतल जड़ें निकल सकती हैं। बाजार में काहू की कीमत 30,000 से 70,000 रुपये प्रति कुंतल तक होती है, जो क्वालिटी और माँग पर निर्भर करती है। अगर औसतन 50,000 रुपये प्रति कुंतल का दाम मिले, तो 250 कुंतल से 1.25 करोड़ रुपये की कमाई हो सकती है।
आलू की फसल से अलग से 50,000-80,000 रुपये का मुनाफा मिलेगा। कुल मिलाकर, एक एकड़ से 80,000 रुपये से 1.5 लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा संभव है, वो भी हर साल आलू की फसल के साथ। अगर आप प्रोसेसिंग यूनिट लगाएँ, जैसे शतावरी पाउडर या हर्बल जूस बनाएँ, तो मुनाफा दोगुना हो सकता है।
सावधानियाँ और टिप्स
काहू की खेती में कुछ सावधानियाँ बरतें। खेत में जलभराव न होने दें, वरना जड़ें सड़ सकती हैं। पौधों को पर्याप्त जगह दें, ताकि वो स्वस्थ बढ़ें। तुड़ाई सावधानी से करें, ताकि जड़ें खराब न हों। देसी किसान जड़ों को सुखाने के लिए बाँस की टोकरियों में पुआल के साथ रखते हैं, जिससे उनकी क्वालिटी बनी रहती है।
उन्नत किस्में, जैसे जर्सी नाइट या मैरी वाशिंगटन, चुनें, जो ज़्यादा पैदावार देती हैं। खेती शुरू करने से पहले स्थानीय आयुर्वेदिक कंपनियों या हर्बल मंडियों से संपर्क करें, ताकि आपको सही दाम मिले। अगर सहफसली खेती कर रहे हैं, तो आलू और काहू की सिंचाई का समय अलग रखें। खेती शुरू करने से पहले मिट्टी की जाँच कराएँ और स्थानीय कृषि केंद्र से सलाह लें।
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