Purvanchal GI Tag Kala Namak Chawal: पूर्वांचल का काला नमक चावल अपनी खुशबू और स्वाद के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इसे भगवान बुद्ध का प्रसाद भी कहा जाता है, और अब ये किसानों की कमाई का नया ज़रिया बन रहा है। उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में GI टैग के साथ उगाया जाने वाला ये चावल अब नई वैज्ञानिक किस्मों, जैसे पूसा नरेंद्र काला नमक-1, के साथ और आसान और मुनाफे वाला हो गया है। इसकी खेती बालू वाली ज़मीन में भी हो रही है, और प्रति एकड़ 18-20 क्विंटल की बंपर पैदावार दे रही है। बाज़ार में इसका दाम 55 रुपये प्रति किलो तक जाता है।
काला नमक चावल की खासियत
काला नमक चावल का इतिहास 2700 साल पुराना है, जो बौद्ध काल से जुड़ा है। इसे बुद्धा राइस भी कहते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने इसे कपिलवस्तु में प्रसाद के रूप में दिया था। इस चावल की काली भूसी और तीखी खुशबू इसे खास बनाती है। ये न सिर्फ स्वाद में लाजवाब है, बल्कि सेहत के लिए भी कमाल है।
इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन, आयरन, और जिंक जैसे पोषक तत्व भरे हैं, जो हृदय रोग, मधुमेह, और त्वचा की देखभाल में मदद करते हैं। GI टैग मिलने से इसकी विश्वसनीयता बढ़ी है, और अब ये देश-विदेश में बिक रहा है। बाज़ार में इसकी कीमत 55 रुपये प्रति किलो तक है, जो बासमती से भी ज़्यादा है।
नई किस्मों ने बदली खेती की तस्वीर
पहले काला नमक चावल की खेती में कम पैदावार की समस्या थी। पुरानी किस्में लंबी होती थीं और लॉजिंग (पौधे का गिरना) की वजह से नुकसान होता था। लेकिन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने पूसा नरेंद्र काला नमक-1 और पूसा नरेंद्र काला नमक-1652 जैसी बौनी किस्में विकसित कीं, जो अब बंपर पैदावार दे रही हैं। ये किस्में 4.5 से 5 टन प्रति हेक्टेयर (18-20 क्विंटल प्रति एकड़) तक उपज देती हैं। इनका स्वाद और खुशबू पुरानी किस्मों जैसी ही है, लेकिन बीमारियों का खतरा कम है। खास बात ये है कि अब ये चावल बालू वाली दोमट या चिकनी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, जो पहले सिर्फ तराई की उपजाऊ ज़मीन तक सीमित था।
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खेती का सही समय और तरीका
काला नमक चावल की खेती के लिए सही समय और तरीका बहुत ज़रूरी है। नर्सरी डालने का सबसे अच्छा समय 5 जून से 20 जून तक है। एक एकड़ खेत के लिए 8-10 किलो बीज चाहिए, जिसकी कीमत 60-65 रुपये प्रति किलो है। नर्सरी तैयार होने में करीब एक महीना लगता है, और फिर पौधों को मुख्य खेत में रोपा जाता है। ये फसल 140-160 दिन में पककर तैयार होती है, जो आम धान से 20-25 दिन ज़्यादा है।
जैविक खाद और हरी खाद का इस्तेमाल करने से चावल की गुणवत्ता और खुशबू बरकरार रहती है। कृषि वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि पानी की अच्छी व्यवस्था हो, क्योंकि काला नमक धान को लगातार नमी चाहिए। बीज के लिए किसान KVK बस्ती, कृषि विभाग, या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से संपर्क कर सकते हैं।
11 जिलों में फैल रही खुशबू
काला नमक चावल को GI टैग मिला हुआ है, जो उत्तर प्रदेश के 11 जिलों सिद्धार्थनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, और श्रावस्ती के लिए मान्य है। इन जिलों की जलवायु और मिट्टी इस चावल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है। सिद्धार्थनगर को इसका गढ़ माना जाता है, जहाँ सरकार ने कॉमन फैसिलिटी सेंटर (CFC) बनाया है। यहाँ चावल की ग्रेडिंग, पैकेजिंग, और प्रोसेसिंग की सुविधा मिलती है, जिससे किसानों को अच्छा दाम मिलता है। पिछले कुछ सालों में खेती का रकबा 220 हेक्टेयर से बढ़कर 80,000 हेक्टेयर तक पहुँच गया है, और इस साल ये और बढ़ने की उम्मीद है।
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किसानों की जेब भर रहा काला नमक
काला नमक चावल की खेती किसानों के लिए सोने की खान साबित हो रही है। इसकी लागत भले ही बासमती से ज़्यादा (30-40 रुपये प्रति किलो) हो, लेकिन बाज़ार में 55 रुपये प्रति किलो तक दाम मिलता है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर तो ये 300 रुपये प्रति किलो तक बिकता है। प्रति एकड़ 18-20 क्विंटल की पैदावार से किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। मिसाल के तौर पर, गोंडा के किसान जैविक खेती से लाखों की कमाई कर रहे हैं, क्योंकि ये चावल शुगर-फ्री और पोषक तत्वों से भरपूर है। सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद’ योजना और काला नमक चावल महोत्सव जैसे आयोजनों ने इसकी ब्रांडिंग को और मज़बूत किया है।
ऑनलाइन बीज और बिक्री का मौका
अब किसानों को बीज लेने के लिए इधर-उधर भटकने की ज़रूरत नहीं। KVK बस्ती से देशभर में बीज भेजे जा रहे हैं, और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स जैसे फ्लिपकार्ट पर भी काला नमक चावल की बिक्री शुरू हो गई है। किसान अपने नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र या ऑनलाइन स्टोर्स से 60-65 रुपये प्रति किलो की दर से बीज मंगा सकते हैं। साथ ही, सरकार के कॉमन फैसिलिटी सेंटर से ग्रेडिंग और पैकेजिंग की सुविधा ले सकते हैं, जिससे चावल की कीमत और बढ़ जाती है। विदेशों में भी इसकी माँग बढ़ रही है, जिससे किसानों को नया बाज़ार मिल रहा है।
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