घर बैठे कमाना चाहते हैं 7 लाख रूपये, तो कीजिए अपने झीलों, तालाबों, टैंकों में इस ककड़ी की खेती

कमल ककड़ी, जिसे भसीड़ा या लोटस स्टेम भी कहते हैं, कमल के पौधे की स्वादिष्ट और पौष्टिक जड़ है। भारत देश में इसे सब्जी, अचार, और औषधि के रूप में खूब पसंद किया जाता है। यह कैल्शियम, आयरन, फाइबर, और विटामिन-C से भरपूर है, जो पाचन को दुरुस्त करता है और खून की कमी को दूर करता है। कमल ककड़ी की खेती तालाबों, झीलों, या जलभराव वाले खेतों में आसानी से की जा सकती है। यह फसल 3-4 महीनों में तैयार होकर कम लागत में लाखों की कमाई देती है। भारत के गाँवों में यह खेती किसानों के लिए नया अवसर बन रही है। यह लेख आपको कमल ककड़ी की वैज्ञानिक खेती की पूरी जानकारी देगा,

जल का जादू: कमल ककड़ी की खेती क्यों चुनें?

कमल ककड़ी की खेती कई मायनों में अनोखी है। यह उन जगहों पर उगाई जा सकती है, जहां धान या गेहूं जैसी फसलें मुश्किल होती हैं। कमल का पौधा अपनी जड़ (कमल ककड़ी), फूल, और बीज (कमलगट्टा) से तिगुनी कमाई देता है। मछली पालन के साथ इसकी सह-खेती करने पर मुनाफा और बढ़ जाता है, क्योंकि मछलियां पानी को साफ रखती हैं और अतिरिक्त आय देती हैं। बाजार में कमल ककड़ी 50-100 रुपये प्रति किलो, फूल 20-30 रुपये प्रति बंडल, और कमलगट्टा 100-150 रुपये प्रति किलो बिकता है।

सही माहौल: जलवायु और मिट्टी का चयन

कमल ककड़ी की खेती के लिए गर्म और धूप वाला मौसम सबसे अच्छा है। 21-35 डिग्री सेल्सियस का तापमान पौधे के लिए आदर्श है। रोजाना 6-8 घंटे की धूप जरूरी है, लेकिन 35 डिग्री से अधिक गर्मी में शेड का इंतजाम करें। यह फसल तालाबों, झीलों, या कृत्रिम टैंकों में उगती है, जहां पानी 30-100 सेंटीमीटर गहरा हो। चिकनी, काली, या दोमट मिट्टी (pH 6.5-7.5) जड़ों के विकास के लिए उपयुक्त है। तालाब की तलहटी में 15-30 सेंटीमीटर मोटी चिकनी मिट्टी की परत डालें। जलभराव वाली जमीन भी खेती के लिए ठीक है, बशर्ते पानी स्थिर रहे। मिट्टी की जाँच अपने नजदीकी कृषि केंद्र से करवाएं।

मजबूत नींव: उन्नत किस्मों का चयन

कमल ककड़ी की खेती के लिए कुछ उन्नत किस्में उपलब्ध हैं:

  • कुमुदनी: सफेद फूल, मोटी और स्वादिष्ट जड़ें, सब्जी के लिए लोकप्रिय।

  • उत्पल (नील कमल): नीले फूल, औषधीय गुण, अच्छी ककड़ी पैदावार।

  • नमो 108: CSIR द्वारा विकसित, साल भर फूल और मोटी जड़ें, उच्च पैदावार।

इन किस्मों के ट्यूबर या बीज स्थानीय नर्सरी, कृषि विश्वविद्यालय, या ICAR केंद्रों से खरीदें। नमो 108 भारत के कई हिस्सों में अपनी उत्पादकता के लिए मशहूर है।

खेती की शुरुआत: रोपण का सही तरीका

कमल ककड़ी की खेती ट्यूबर (जड़) या बीज से की जाती है, लेकिन ट्यूबर ज्यादा तेज और विश्वसनीय है। प्रति एकड़ 500-600 ट्यूबर (2-3 किलो) की जरूरत होती है। मार्च-अप्रैल (गर्मी) या जुलाई-अगस्त (मानसून) में रोपण करें। ट्यूबर को 1-1.5 इंच गहराई पर 1-1.5 मीटर की दूरी पर रोपें। अगर बीज से खेती कर रहे हैं, तो बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोएं और अंकुरण के बाद ट्यूबर में बदलने दें। तालाब की तलहटी में 10-15 सेंटीमीटर चिकनी मिट्टी और 5-10 क्विंटल गोबर की खाद डालें। शुरू में पानी का स्तर 30 सेंटीमीटर रखें, फिर धीरे-धीरे 50-100 सेंटीमीटर तक बढ़ाएं।

पोषण का खजाना: खाद और उर्वरक प्रबंधन

कमल ककड़ी की खेती में जैविक खाद सर्वोत्तम है। रोपण से पहले प्रति एकड़ 50-60 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद या 20 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट डालें। रासायनिक खाद के लिए NPK (10:26:26) 50 किलो प्रति एकड़ उपयोग करें। नाइट्रोजन को दो हिस्सों में डालें: आधा रोपण के समय और आधा 30-40 दिन बाद। मछली पालन के साथ खेती करने पर मछलियों का मल प्राकृतिक खाद का काम करता है। पानी में छोटी मछलियां, जैसे ग्रास कार्प, छोड़ें, जो पानी को शुद्ध रखती हैं और पौधों को नुकसान नहीं पहुंचातीं। नीम खली (2 क्विंटल प्रति एकड़) मिट्टी जनित कीटों से बचाव करती है।

पानी का खेल: सही प्रबंधन

कमल ककड़ी की खेती में पानी का स्तर बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है। शुरू में 30 सेंटीमीटर गहरा पानी रखें, फिर पौधों के बढ़ने पर 50-100 सेंटीमीटर तक बढ़ाएं। हर 15-20 दिन में तालाब का एक-तिहाई पानी बदलें, ताकि ऑक्सीजन की कमी न हो। खराब या सड़ी पत्तियों को नियमित रूप से हटाएं। मानसून में अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए नाले बनाएं। कृत्रिम टैंकों में पानी की गुणवत्ता की जाँच करें और जरूरत पड़ने पर जल शोधन करें।

कीटों से सुरक्षा: रोगमुक्त खेती

कमल ककड़ी में कीट और रोग कम लगते हैं, लेकिन सावधानी जरूरी है। पत्ती खाने वाले कीड़े और फंगल रोग (पत्ती झुलसा) हो सकते हैं। नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव हर 15 दिन में करें। फंगल रोग के लिए मैनकोज़ेब (2 ग्राम/लीटर पानी) का उपयोग करें। मछली पालन से कीट नियंत्रण में मदद मिलती है। खरपतवार को नियमित रूप से हटाएं, ताकि पौधों को पूरा पोषण मिले।

सुनहरा मुनाफा: कटाई और पैदावार

कमल ककड़ी की कटाई 3-4 महीने बाद शुरू होती है, जब जड़ें मोटी, कुरकुरी, और स्वादिष्ट हो जाती हैं। प्रति एकड़ 8-10 टन कमल ककड़ी, 2-3 टन कमलगट्टा, और 5,000-6,000 फूल की पैदावार हो सकती है। कटाई सावधानी से करें, ताकि जड़ें टूटें नहीं। तालाब से मिट्टी हटाकर जड़ें निकालें और पानी से धो लें। फूल और कमलगट्टा अलग से काटें। फूलों को तुरंत बाजार भेजें, ताकि ताजगी बनी रहे।

कमाई का गणित: लागत और मुनाफा

प्रति एकड़ कमल ककड़ी की खेती में लागत 25,000-30,000 रुपये आती है। इसमें ट्यूबर (10,000 रुपये), खाद (5,000 रुपये), और मजदूरी (10,000 रुपये) शामिल हैं। 8 टन कमल ककड़ी 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 4,00,000 रुपये, 2 टन कमलगट्टा 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 2,00,000 रुपये, और 5,000 फूल 20 रुपये प्रति बंडल के हिसाब से 1,00,000 रुपये की आय दे सकते हैं। कुल आय 7,00,000 रुपये तक हो सकती है। लागत हटाने के बाद 4 महीने में 50,000 रुपये और सालाना 1.5-2 लाख रुपये का मुनाफा संभव है। मछली पालन से अतिरिक्त 50,000 रुपये की आय हो सकती है।

बाजार का मंत्र: बिक्री और वैल्यू एडिशन

कमल ककड़ी को स्थानीय मंडियों, eNAM पोर्टल, या सब्जी बाजारों में बेचें। जैविक कमल ककड़ी को प्रमाणन के साथ निर्यात करें। अचार, सूखी सब्जी, या पाउडर बनाकर मुनाफा बढ़ाएं। फूलों को पूजा, सजावट, या कॉस्मेटिक उद्योग में बेचें। कमलगट्टा को स्नैक्स या औषधि के रूप में प्रचारित करें। कमल ककड़ी की रेसिपी, खेती के टिप्स, और सफलता की कहानियां शेयर करें। मछली पालन के साथ सह-खेती को बढ़ावा दें।

कमल ककड़ी की खेती भारत के किसानों के लिए कम लागत में लाखों की कमाई का सुनहरा मौका है। यह फसल तालाबों और जलभराव वाली जमीन को सोने में बदल सकती है। चाहे आप सब्जी उगाएं, फूल बेचें, या मछली पालन करें, यह खेती आपकी आय दोगुनी करेगी। आज ही अपने नजदीकी कृषि केंद्र से संपर्क करें, उन्नत ट्यूबर लें, और वैज्ञानिक खेती शुरू करें। यह आपके परिवार और गाँव की समृद्धि का आधार बनेगा।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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