न पानी की टेंशन न ज्यादा खर्चा, इस मोटे अनाज की खेती किसानों को बना देगी मालामाल

Kangani Ki Kheti: जहाँ बारिश कम होती है, वहाँ के किसान भाइयों के लिए खेती करना आसान नहीं है। ज्यादातर किसान बारिश के भरोसे धान की खेती करते हैं, लेकिन अगर बारिश कम हो जाए, तो फसल को नुकसान हो जाता है। ऐसे में मोटे अनाज, खासकर कंगनी (फॉक्सटेल मिलेट), की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। कंगनी की खेती में धान की तुलना में सिर्फ 20 फीसदी पानी चाहिए, और पैदावार भी अच्छी मिलती है। बाजार में इसका दाम भी ठीक-ठाक है, और सेहत के लिए भी ये अनाज बड़ा फायदेमंद है। आइए, जानते हैं कि गया जैसे इलाकों में कंगनी की खेती (Kangani Ki Kheti) कैसे करें और इससे मोटा मुनाफा कैसे कमाएँ।

कंगनी क्यों है खास?

कंगनी, जिसे फॉक्सटेल मिलेट भी कहते हैं, एक ऐसा अनाज है जो कम पानी और कम मेहनत में उग जाता है। ये धान से जल्दी, यानी 80-100 दिन में, पककर तैयार हो जाता है, जबकि धान को 120 दिन से ज्यादा लगते हैं। कंगनी की फसल न सिर्फ सेहत के लिए अच्छी है, बल्कि बाजार में इसकी कीमत 40 रुपये प्रति किलो तक मिलती है। एक एकड़ में 15 क्विंटल तक पैदावार हो सकती है। ये अनाज गाँव के बाजारों से लेकर शहरों और विदेशों तक बिकता है। कुक्कुट और पिंजरे के पक्षियों के लिए भी इसका दाना इस्तेमाल होता है। गया के किसानों के लिए ये फसल कम लागत में मोटी कमाई का रास्ता खोलती है।

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कंगनी की खेती (Kangani Ki Kheti) का सही समय और तरीका

कंगनी की बुवाई के लिए जून-जुलाई का महीना सबसे अच्छा है। खरीफ सीजन में 20 जून से 10 जुलाई के बीच बुवाई करें, ताकि फसल को बारिश का हल्का सहारा मिल जाए। गया जैसे इलाकों में, जहाँ पानी की कमी रहती है, ये फसल बिल्कुल फिट बैठती है। एक हेक्टेयर में 4 से 6 किलो बीज काफी हैं। बुवाई के लिए सीड ड्रिल या हल का इस्तेमाल करें, ताकि बीज कतार में बोए जाएँ। इससे पौधों को बढ़ने के लिए जगह मिलती है और पैदावार बढ़ती है। मिट्टी की बात करें, तो कंगनी मध्यम दोमट मिट्टी में अच्छी उगती है। अगर आपके खेत में रेतीली-दोमट मिट्टी है, तो और भी बेहतर।

खेती के लिए देसी नुस्खे

कंगनी की खेती (Kangani Ki Kheti) शुरू करने से पहले खेत को अच्छे से जोत लें। गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें, ताकि मिट्टी में ताकत आए। बुवाई से पहले बीज को 8-10 घंटे पानी में भिगो लें, इससे अंकुरण जल्दी होता है। खेत में नमी बनाए रखें, लेकिन ज्यादा पानी न डालें, क्योंकि कंगनी को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। गाँव में अगर ड्रिप इरिगेशन की सुविधा है, तो उसका इस्तेमाल करें। खरपतवार से बचने के लिए बुवाई के 15-20 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। कीटों से बचाव के लिए नीम का तेल या देसी घोल छिड़क सकते हैं। अपने गाँव के कृषि केंद्र से कंगनी की अच्छी किस्म, जैसे कौनी, के बीज लें।

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कम मेहनत में मोटा मुनाफा

कंगनी की खेती (Kangani Ki Kheti) में खर्चा कम लगता है, क्योंकि इसे न ज्यादा खाद चाहिए, न ज्यादा पानी। गया के मायापुर में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में कंगनी की खेती शुरू की गई है, और वहाँ के वैज्ञानिक किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। एक एकड़ में 15 क्विंटल तक पैदावार हो सकती है, और 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 5-6 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। बिहार सरकार भी मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा दे रही है, और कई जगह सब्सिडी भी मिलती है। अपने नजदीकी कृषि कार्यालय से इसके बारे में पूछें। गाँव के बाजारों में या शहरों के व्यापारियों को कंगनी बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।

कंगनी न सिर्फ किसानों की जेब भरती है, बल्कि सेहत के लिए भी बड़ा फायदेमंद है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, और मिनरल्स भरपूर होते हैं, जो धान से ज्यादा हैं। दुनिया भर में, खासकर एशिया और अफ्रीका में, इसे खाने के लिए और पशु-पक्षियों के दाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। ये मोटा अनाज विश्व में दूसरा सबसे ज्यादा उगाया जाने वाला अनाज है। गया जैसे कम बारिश वाले इलाकों में ये फसल न सिर्फ आसानी से उगती है, बल्कि किसानों को मालामाल भी कर सकती है।

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  • Shashikant

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