किसान भाइयों, कंटोला, जिसे ककोड़ा, खेख्सा, या जंगली करेला कहते हैं, भारत की पोषक और औषधीय सब्जी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती होती है। प्रोटीन, विटामिन (A, B, C), और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर कंटोला डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, और पीलिया में फायदेमंद है। बाजार में 100-300 रुपये/किलो (कभी 15,000 रुपये/क्विंटल) बिकता है। एक बीघा से 10-15 क्विंटल उपज और 50,000-80,000 रुपये मुनाफा मिलता है। कम लागत (15,000-20,000 रुपये/बीघा) और 3-4 महीने की फसल इसे किसानों के लिए आकर्षक बनाती है। आइए जानें कंटोला की खेती कैसे करें।
कंटोला का महत्व और विशेषताएँ
कंटोला (Momordica dioica) कद्दूवर्गीय बेल वाली फसल है। इसके हरे, कांटेदार फल हल्के कड़वे और रसीले होते हैं। कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, और फाइबर से भरपूर, ये मांस से 50 गुना ज्यादा ताकत देता है। खरीफ में (जुलाई-अगस्त) उगाया जाता है। तेलंगाना, विदर्भ, और हैदराबाद में माँग ज्यादा है। होटल, रेस्तराँ, और निर्यात बाजार में कीमत बढ़ रही है। कम देखभाल और छोटी जगह में खेती इसे छोटे किसानों के लिए लाभकारी बनाती है। आयुर्वेद में इसकी जड़ें और फल दवाओं में उपयोगी हैं।
खेत और मिट्टी की तैयारी
कंटोला के लिए बलुई दोमट मिट्टी (pH 5.5-7) उपयुक्त है। खेत की गहरी जुताई करें। 200-250 क्विंटल सड़ी गोबर खाद प्रति हेक्टेयर (30-40 क्विंटल/बीघा) डालें। खेत को समतल करें और जलनिकासी सुनिश्चित करें। अंतिम जुताई में 375 किलो SSP, 65 किलो यूरिया, और 67 किलो MOP प्रति हेक्टेयर डालें। बेल को सहारा देने के लिए बाँस या तार से 5-6 फीट ऊँचा ट्रेलिस बनाएँ (लागत 5,000-7,000 रुपये)। जुलाई-अगस्त में बोआई करें। छोटे किसान 0.5 बीघा या गमलों से शुरू कर सकते हैं। सही तैयारी से उपज 20% बढ़ती है।
बीज और रोपण की तैयारी
कंटोला के बीज कृषि केंद्र, नर्सरी से लें। प्रति बीघा 1-1.5 किलो बीज (500-800 रुपये/किलो) चाहिए। बीज को 12 घंटे पानी में भिगोएँ और जीवामृत (500 मिलीलीटर/किलो) से उपचारित करें। नर्सरी में 2-3 सेमी गहराई पर बीज बोएँ। 20-25 दिन बाद पौधों को खेत में 2 मीटर की दूरी पर पंक्तियों में (पंक्तियों में 4 मीटर) रोपें। गड्ढों में गोबर खाद मिलाएँ। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें। 7-10 दिन में पौधे जड़ पकड़ लेते हैं। सही रोपण से फलन जल्दी शुरू होता है।
देखभाल और पानी प्रबंधन
कंटोला की देखभाल सरल है। गर्मी में हर 4-5 दिन और बरसात में जरूरत के हिसाब से सिंचाई करें। ड्रिप सिस्टम से पानी बचता है। हर 15 दिन में 300-400 किलो वर्मी कम्पोस्ट या 10 किलो नाइट्रोजन डालें। फूल-फल के समय (30-40 दिन) 5 किलो जिंक सल्फेट छिड़कें। नीम तेल (5 मिलीलीटर/लीटर) हर 10-15 दिन में छिड़कें ताकि फल मक्खी, एफिड्स से बचाव हो। 20-25 दिन बाद गुड़ाई करें। बेल को ट्रेलिस पर चढ़ाएँ। सही देखभाल से एक पौधा 2-3 किलो फल देता है।
फल कटाई और उपज
पहली कटाई 60-70 दिन बाद शुरू होती है। हरे, नरम, 5-7 सेमी लंबे फल काटें। हर 4-5 दिन में कटाई करें। एक बीघा से 10-15 क्विंटल फल मिलते हैं। फलों को छाया में रखें। मंडी, होटल, या ऑनलाइन (BigBasket, Farmkart) बेचें। सावधानी से कटाई करें ताकि पौधे को नुकसान न हो। फसल 3-4 महीने तक उत्पादन देती है। अच्छी कटाई से फल की गुणवत्ता और दाम बढ़ते हैं।
मुनाफा और बाजार का हिसाब
लागत 15,000-20,000 रुपये/बीघा (बीज, खाद, ट्रेलिस, मजदूरी)। 10-15 क्विंटल फल 100 रुपये/किलो से 1,00,000-1,50,000 रुपये कमाई। मुनाफा 50,000-80,000 रुपये। तेलंगाना, विदर्भ में 15,000 रुपये/क्विंटल तक दाम। जैविक कंटोला 300-500 रुपये/किलो बिकता है। निर्यात या प्रोसेसिंग (अचार, पाउडर) से कमाई बढ़ती है। बड़े स्तर (2-3 बीघा) पर 2-3 लाख रुपये सालाना मुनाफा संभव।
स्वस्थ बीज चुनें। ज्यादा पानी न दें। रासायनिक खाद कम करें, जैविक खाद पर जोर दें। फल मक्खी के लिए फेरोमोन ट्रैप (4-5/बीघा) लगाएँ। स्थानीय कृषि केंद्र से सलाह लें। छोटे स्तर (0.5 बीघा) से शुरू करें। कंटोला की खेती कम मेहनत और लागत में बंपर कमाई देती है। माँग का फायदा उठाएँ और आय बढ़ाएँ।
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