उत्तर भारत के खेतों में एक ऐसी फसल लहलहा रही है, जो कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है और शुगर मरीजों के लिए दवा का काम करती है। ये है करहनी धान, जिसे लाल चावल के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, और हिमाचल प्रदेश के गाँवों में ये फसल तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है। इसका स्वाद अनोखा है और ये सेहत के लिए बड़ा फायदेमंद है। शहरों में लोग इसे सेहतमंद खाने के तौर पर पसंद कर रहे हैं, जिससे इसकी माँग बढ़ रही है। आइए, जानते हैं कि करहनी धान की खेती कैसे शुरू करें, इसके बीज कहाँ से लें, और ये शुगर मरीजों के लिए क्यों खास है।
करहनी धान का परिचय
करहनी धान उत्तर भारत की पुरानी फसल है, जिसके दाने लाल रंग के होते हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी और हिमाचल के कुछ हिस्सों में इसे सालों से उगाया जाता रहा है। ये फसल कम पानी और देसी खाद में अच्छी पैदावार देती है। लाल चावल विटामिन बी, आयरन, और फाइबर से भरपूर होता है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जिसका मतलब है कि ये खाने के बाद ब्लड शुगर को धीरे-धीरे बढ़ाता है। यही वजह है कि ये शुगर मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नहीं। उत्तरकाशी में इसे एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत बढ़ावा मिल रहा है, जिससे इसकी खेती और बिक्री दोनों बढ़ रही हैं।
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लाल चावल शुगर मरीजों के लिए बहुत उपयोगी है। इसमें मौजूद फाइबर पाचन को बेहतर करता है और ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखता है। कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स की वजह से ये इंसुलिन की ज़रूरत को कम करता है। साथ ही, इसमें एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं, जो शरीर को ताकत देते हैं और बीमारियों से बचाते हैं। लाल चावल से बनी खिचड़ी, रोटी, या खीर न सिर्फ़ स्वादिष्ट होती है, बल्कि सेहत के लिए भी अच्छी है। ये चावल दिल की सेहत को सुधारता है और खून की कमी को दूर करता है। गाँवों में इसे रोज़ के खाने में शामिल करना आसान है, क्योंकि ये पेट के लिए हल्का और पौष्टिक होता है।
बीज कहाँ से लें
करहनी धान के बीज आसानी से मिल सकते हैं। नजदीकी कृषि केंद्र या सहकारी समितियों से प्रमाणित बीज खरीदें। उत्तराखंड में उत्तरकाशी के कृषि केंद्रों में एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत करहनी धान के बीज उपलब्ध हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) के क्षेत्रीय केंद्र, जैसे देहरादून या लखनऊ, भी इस फसल के बीज प्रदान करते हैं। कुछ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, जैसे सरकार की कृषि वेबसाइट्स या स्थानीय बीज कंपनियाँ, भी बीज बेचती हैं। बीज खरीदने से पहले सुनिश्चित करें कि वो प्रमाणित और रोगमुक्त हों। बीजों को बोने से पहले 10 लीटर पानी में 20 ग्राम कार्बेन्डाज़िम और 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के घोल में 8-10 घंटे भिगोएँ, ताकि फसल स्वस्थ रहे।
मिट्टी और पानी की ज़रूरत
करहनी धान के लिए दोमट या जलोढ़ मिट्टी सबसे अच्छी होती है। उत्तर भारत के गंगा और यमुना के मैदानों की मिट्टी इसके लिए उपयुक्त है। ये फसल सामान्य धान की तुलना में कम पानी माँगती है, जो इसे पानी की कमी वाले इलाकों के लिए खास बनाती है। उत्तराखंड के पहाड़ी गाँवों में सीढ़ीनुमा खेतों में भी इसे उगाया जाता है। मूँग या ढैंचा जैसी फसलों के बाद करहनी धान बोने से मिट्टी की ताकत बढ़ती है। खेत की मिट्टी को नरम और उपजाऊ रखने के लिए हर साल गोबर या कम्पोस्ट डालें। मिट्टी की जाँच कराने से सही खाद का पता चलता है, जिससे फसल बेहतर होती है।
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करहनी धान को कीटों और रोगों से बचाना ज़रूरी है। पत्ता लपेट सुंडी जैसे कीट फसल को नुकसान पहुँचा सकते हैं। नीम के पत्तों को पानी में भिगोकर छिड़काव करने से कीट दूर रहते हैं। गेंदे के फूल खेत के किनारे उगाने से भी कीटों की समस्या कम होती है। अगर रोग के लक्षण जैसे पत्तों पर धब्बे दिखें, तो 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। ये तरीका सस्ता और असरदार है। नीम का तेल घर पर बनाकर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। फसल की नियमित जाँच करें और ज़रूरत पड़ने पर कृषि केंद्र से सलाह लें।
कम लागत में मुनाफा
करहनी धान की खेती (Karhani Dhan Ki Kheti) में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का खर्चा कम होता है। गाँव में गोबर, नीम, और फसल के अवशेष आसानी से मिल जाते हैं। छितुआ विधि से बुआई करने से मेहनत और समय की बचत होती है। शहरों में लाल चावल की माँग बढ़ रही है, खासकर शुगर मरीजों और सेहत पसंद लोगों के बीच। स्थानीय मंडी या ऑनलाइन दुकानों पर इसे बेचकर अच्छा दाम मिलता है। उत्तरकाशी में लाल चावल को एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत बेचा जा रहा है, जिससे बिक्री बढ़ रही है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी पारंपरिक फसलों को बेचने में मदद करते हैं।
करहनी धान का भविष्य
करहनी धान की खेती न सिर्फ़ मुनाफा देती है, बल्कि शुगर मरीजों के लिए सेहत का खज़ाना है। कम पानी और देसी खाद में उगने वाली ये फसल पर्यावरण के लिए भी अच्छी है। उत्तरकाशी में जिला प्रशासन इस फसल को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। लाल चावल हमारी पुरानी धरोहर है, जो मिट्टी की ताकत और सेहत दोनों को बचाती है। इसे अपनाकर गाँवों की तरक्की और सेहतमंद भविष्य बनाया जा सकता है।
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