चौलाई की नई किस्म काशी सुहावनी से दोगुनी कमाई, अब बीज सस्ते दामों पर घर-घर पहुंचेंगे!

सर्दी का मौसम शुरू होते ही सब्जियों की कीमतें आसमान छूने लगती हैं, और चौलाई जैसी पौष्टिक सब्जी तो बाजार में सोने की चमक ले आती है। लेकिन अच्छी खबर ये है कि वाराणसी के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान यानी आईआईवीआर ने किसानों के लिए एक नया रास्ता खोल दिया है। यहां विकसित की गई ‘काशी सुहावनी’ चौलाई की किस्म अब आसानी से उपलब्ध हो जाएगी, वो भी कम कीमत पर। संस्थान ने इंडो हॉलैंड गार्डनिंग कंपनी के साथ हाथ मिला लिया है, ताकि गुणवत्ता वाले बीज हर छोटे-बड़े किसान तक पहुंच सकें। इससे न सिर्फ फसल की पैदावार बढ़ेगी, बल्कि आपकी जेब भी भरेगी।

काशी सुहावनी की खासियत

चौलाई तो हम सब जानते हैं वो हरी पत्तेदार सब्जी जो थाली में पोषण की खान है। आयरन, विटामिन और प्रोटीन से भरपूर, ये बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सबके लिए फायदेमंद है। लेकिन समस्या ये थी कि अच्छी किस्म के बीज मिलना मुश्किल था, और पैदावार भी औसत रहती। आईआईवीआर के वैज्ञानिकों ने इसी समस्या को देखते हुए ‘काशी सुहावनी’ नाम की ये नई किस्म तैयार की है। ये किस्म न सिर्फ ज्यादा उपज देती है, बल्कि कम पानी और खाद में भी अच्छा प्रदर्शन करती है। वाराणसी जैसे इलाकों में जहां मिट्टी उपजाऊ है, वहां ये तो जैसे जादू की तरह काम आती है।

सबसे खास बात ये कि ये किस्म छोटे खेतों के लिए बनी है। आप 10-20 दिसंबर तक बीज बो दें, तो फरवरी तक कटाई हो जाएगी। सामान्य चौलाई से 20-30 प्रतिशत ज्यादा पैदावार मिलने की उम्मीद है, जिससे बाजार में बिक्री के अच्छे दाम मिलेंगे। मैंने सुना है कि कई किसान पहले ही इसकी तारीफ कर रहे हैं, क्योंकि ये कीटों से भी कम प्रभावित होती है। आईआईवीआर ने इसे विकसित करने में सालों की मेहनत लगाई, और अब ये किसानों के हाथों में आ रही है।

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क्यों अपनाएं ये किस्म?

अब सोचिए, जब बीज सस्ते मिलेंगे, तो लागत कितनी घट जाएगी। पहले अच्छे बीज के लिए दुकानों के चक्कर लगाने पड़ते थे, लेकिन अब इंडो हॉलैंड गार्डनिंग कंपनी के सहयोग से ‘सारनाथ सीड्स’ ब्रांड के तहत ये बीज सीधे आपके पास पहुंचेंगे। इससे न सिर्फ पैसे बचेंगे, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी ऊंची रहेगी। चौलाई की ये किस्म पोषण से भरपूर होती है, जो बाजार में हमेशा डिमांड में रहती है। सर्दियों में जब दूसरी सब्जियां महंगी हो जाती हैं, तब चौलाई 30-40 रुपये किलो तक बिक जाती है। एक छोटे खेत से ही 5-7 हजार का मुनाफा हो सकता है, और बड़े खेतों में तो इससे कहीं ज्यादा।

इसके अलावा, ये किस्म टिकाऊ खेती को बढ़ावा देती है। कम पानी की जरूरत पड़ती है, जो सूखे वाले इलाकों के लिए वरदान है। मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है, क्योंकि ये जैविक तरीके से उगाई जा सकती है। पूर्वांचल जैसे क्षेत्रों में जहां सब्जी उत्पादन पहले से ही मजबूत है, वहां ये किस्म आय को दोगुना करने का जरिया बनेगी।

बीज कैसे पाएं?

बीज उपलब्धता की चिंता अब पुरानी हो गई। आईआईवीआर और इंडो हॉलैंड कंपनी के बीच हुए समझौते से ‘काशी सुहावनी’ के शुद्ध बीज लाइसेंस पर कम दामों में बांटे जाएंगे। कंपनी पूर्वांचल में सब्जी बीजों की मार्केटिंग में माहिर है, और अब ये ब्रांड के तहत चौलाई के बीज भी बाजार में आएंगे। आप लोकल कृषि केंद्रों या कंपनी के डीलरों से संपर्क कर सकते हैं। बोने का सही समय अक्टूबर-नवंबर है, ताकि सर्दी में अच्छी पैदावार हो। बीज की मात्रा भी कम लगती है प्रति एकड़ महज 2-3 किलो। इससे लागत तो घटेगी ही, और जोखिम भी कम होगा।

वाराणसी में हुए इस कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक डॉ. राजेश कुमार ने खुद कहा कि किसानों तक गुणवत्ता वाले बीज पहुंचाना हमारी प्राथमिकता है। उन्होंने निजी कंपनियों से अपील की कि वे ऐसे प्रयासों में साथ दें। कंपनी के संस्थापक शोभनाथ मौर्या ने भी बताया कि इससे क्षेत्र के ज्यादा किसान चौलाई की खेती अपनाएंगे, और सब्जी उत्पादन मजबूत होगा। कार्यक्रम में डॉ. नागेन्द्र राय, डॉ. अनंत बहादुर जैसे विशेषज्ञ भी मौजूद थे।

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  • Shashikant

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