अब ड्रोन से होगी धान की रोपाई! केरल कृषि विश्वविद्यालय ने किया खास तकनीक का विकास

केरल कृषि विश्वविद्यालय (KAU) ने धान की खेती को आसान बनाने के लिए ड्रोन से बीज बोने की एक नई तकनीक विकसित की है। यह तकनीक खासकर कुंबलंगी के उन धान के खेतों के लिए वरदान साबित हो रही है, जहां कीचड़ और जलभराव की वजह से खेती करना मुश्किल होता है। विश्व बैंक की मदद से शुरू इस पहल ने पोक्काली धान की खेती को नया रास्ता दिखाया है। ड्रोन की मदद से न सिर्फ समय और मेहनत की बचत हो रही है, बल्कि पैदावार भी बढ़ रही है। आइए, इस नई तकनीक के बारे में आसान भाषा में जानते हैं।

ड्रोन ने बदला खेती का तरीका

केरल कृषि विश्वविद्यालय ने फ्यूज़लेज इनोवेशन नाम के स्टार्टअप के साथ मिलकर कुंबलंगी में ड्रोन से धान की बुवाई का सफल परीक्षण किया है। इस ड्रोन की खासियत है कि यह 10 किलो तक अंकुरित बीज ले जा सकता है और खेत में एकसमान बिखेर सकता है। पहले जहां मजदूरों को कीचड़ भरे खेतों में घंटों मेहनत करनी पड़ती थी, वहां अब ड्रोन सिर्फ 20 से 25 मिनट में एक एकड़ खेत में बुवाई कर देता है। KAU के एग्रीबिजनेस इनक्यूबेटर के प्रमुख केपी सुधीर बताते हैं कि यह तकनीक बीजों का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करती है और प्रति एकड़ 10 किलो तक बीज बचाती है। इससे किसानों की लागत कम होती है और फसल की गुणवत्ता बढ़ती है।

पोक्काली खेती की मुश्किलें हुईं आसान

पोक्काली धान की खेती अपने खारे पानी और दलदली जमीन की वजह से हमेशा चुनौतीपूर्ण रही है। हाथ से बुवाई करने में न सिर्फ मेहनत ज्यादा लगती थी, बल्कि बीजों का बिखराव भी एकसमान नहीं हो पाता था। फ्यूज़लेज इनोवेशन के संस्थापक देवन चंद्रशेखरन के मुताबिक, ड्रोन ने इस समस्या का हल निकाल दिया है। ड्रोन से बीज एकसमान बिखरते हैं, जिससे पौधे बेहतर तरीके से उगते हैं। साथ ही, मजदूरों की जरूरत कम होने से खेती की लागत भी घट रही है। यह तकनीक छोटे और सीमांत किसानों के लिए खास तौर पर फायदेमंद है, जो पहले कीचड़ और पानी की वजह से खेती में दिक्कत झेलते थे।

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खेती में क्रांति का नया दौर

केरल कृषि विश्वविद्यालय अब और बड़े ड्रोन के साथ परीक्षण कर रहा है, ताकि बड़े खेतों में भी बुवाई को और तेजी से किया जा सके। यह पहल न सिर्फ समय और मेहनत बचाएगी, बल्कि किसानों पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को भी कम करेगी। केपी सुधीर का कहना है कि ड्रोन से धान की बुवाई खेती में क्रांति ला सकती है। यह तकनीक केरल के अलावा उन राज्यों में भी कारगर हो सकती है, जहां जलभराव या खारे पानी की वजह से धान की खेती मुश्किल है। इससे न सिर्फ पैदावार बढ़ेगी, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होगा।

किसानों के लिए नया भविष्य

यह ड्रोन तकनीक सिर्फ बुवाई तक सीमित नहीं है। यह किसानों को आधुनिक खेती के लिए तैयार करने और उनकी आय बढ़ाने का एक बड़ा कदम है। फ्यूज़लेज इनोवेशन और KAU का यह संयुक्त प्रयास केरल के किसानों को नई तकनीकों से जोड़ रहा है। विश्व बैंक की मदद से शुरू यह परियोजना स्थायी खेती को बढ़ावा दे रही है और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे रही है। आने वाले सालों में यह तकनीक केरल के धान उत्पादन को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकती है, जिससे किसानों की जिंदगी और आसान होगी।

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  • Shashikant

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