किसान साथियों, कत्था या खैर (Acacia catechu) एक बहुउपयोगी पेड़ है, जिसकी खेती भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और गुजरात में बड़े पैमाने पर होती है। खैर की लकड़ी, छाल, और कत्था (कैटेचु) का उपयोग पान मसाला, औषधि, रंगाई, और चमड़ा उद्योग में होता है। बाजार में कत्था 800-1,500 रुपये/किलो और लकड़ी 20,000-30,000 रुपये/क्विंटल बिकती है। एक हेक्टेयर से 10-15 लाख रुपये मुनाफा मिल सकता है। कम लागत (50,000-70,000 रुपये/हेक्टेयर) और लंबी अवधि (8-12 साल) की फसल होने से ये निवेश के लिए आदर्श है। आइए जानें खैर की खेती कैसे करें और इसकी कमाई।
खैर (कत्था) की अनोखी ताकत
खैर का पेड़ 10 से 15 मीटर ऊँचा होता है और 8-12 साल में कटाई के लिए तैयार हो जाता है। इसकी छाल से निकाला जाने वाला कत्था पान मसाला, गले के रोगों और दस्त की आयुर्वेदिक दवाओं में रामबाण है, साथ ही चमड़ा रंगाई में भी उपयोगी। लकड़ी मजबूत और टिकाऊ होती है, जिससे फर्नीचर, कृषि उपकरण और ईंधन बनता है। पत्तियाँ पशुओं के लिए पौष्टिक चारा हैं, जो दूध उत्पादन बढ़ाती हैं। जड़ें मिट्टी की उर्वरता सुधारती हैं, इसलिए बंजर जमीन पर लगाने से मिट्टी उपजाऊ हो जाती है।
एक पेड़ से 5-10 किलो कत्था और 50-100 किलो लकड़ी निकल आती है। भारत, नेपाल और बांग्लादेश में इसकी माँग तेज है, निर्यात से 20-30 प्रतिशत ज्यादा दाम मिलते हैं। छोटे किसान इसे इंटरक्रॉपिंग में भी लगा सकते हैं, जैसे अन्य फसलों के बीच। कम पानी और देखभाल की जरूरत होने से ये फसल छोटे-बड़े सभी के लिए वरदान है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
खैर को बलुई दोमट, लाल या काली मिट्टी सबसे पसंद है, जहाँ pH 5.5 से 7.5 तक हो। खेत की गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। प्रति हेक्टेयर 1 से 2 टन अच्छी सड़ी गोबर खाद या 500 किलो वर्मीकम्पोस्ट अच्छी तरह मिला दें। खेत समतल करें और जल निकासी का इंतजाम पक्का रखें। दिसंबर में रोपण करें तो ठंड में जड़ें मजबूत पकड़ लेंगी। गड्ढे 1×1 फीट के खोदें, हर गड्ढे में 5 किलो गोबर खाद और 50 ग्राम नीम की खली मिला दें। ये तैयारी सही करने से पौधे तेजी से बढ़ते हैं और 90 प्रतिशत जीवित रहते हैं।
बीज या कलम लगाने का तरीका
खैर की खेती बीज या कलम से होती है। प्रति हेक्टेयर 1 से 2 किलो प्रमाणित बीज लें, जो 300 से 500 रुपये प्रति किलो मिलता है। बीजों को 24 घंटे गुनगुने पानी में भिगोएँ। नर्सरी में 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बो दें। 30-40 दिन बाद 30-40 सेंटीमीटर ऊँचे पौधे तैयार हो जाते हैं। मॉनसून (जून-जुलाई) में गड्ढों में रोपें। पौधों के बीच 3×3 मीटर दूरी रखें, ताकि हवा और धूप मिले। एक हेक्टेयर में 1000 से 1200 पौधे लग जाते हैं। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें। पॉलीथीन शीट पर नर्सरी से उखाड़ना आसान होता है। सही रोपण से पेड़ 2-3 साल में मजबूत हो जाते हैं।
देखभाल और सिंचाई
खैर कम देखभाल माँगती है। पहले 2 साल में हर 15-20 दिन सिंचाई करें, मॉनसून में अतिरिक्त पानी न दें। ड्रिप सिस्टम से पानी की बचत होगी। हर 6 महीने में प्रति पेड़ 5 किलो गोबर खाद और 50 ग्राम NPK (10:26:26) डालें। साल में 2-3 बार गुड़ाई करें ताकि खरपतवार न दबा दें। दीमक से बचाव के लिए नीम तेल (5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) या क्लोरोपाइरीफॉस (2 मिलीलीटर प्रति लीटर) का छिड़काव करें। पत्ती कीटों के लिए फेरोमोन ट्रैप (4-5 प्रति हेक्टेयर) लगाएँ। तीसरे साल से पेड़ कम पानी माँगते हैं। साफ-सफाई रखें तो पेड़ 8-10 साल में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
कटाई का सही तरीका
कटाई 8 से 12 साल बाद करें, जब तना 15-20 सेंटीमीटर मोटा हो जाए। पेड़ को जड़ से न काटें, ऊपरी हिस्सा काटकर छाल निकालें। छाल को उबालकर गाढ़ा कत्था तैयार करें। लकड़ी को अलग-अलग भागों में काटें – मजबूत लकड़ी फर्नीचर के लिए, बाकी ईंधन या उपकरण के लिए। जड़ें बचाकर रखें, जो 5-7 साल में नई शाखाएँ देगी। कटाई सावधानी से करें ताकि पेड़ दोबारा उग आए। उत्पाद को मंडी, आयुर्वेदिक कंपनियों या ऑनलाइन (IndiaMART) भेजें।
उपज और मुनाफे का पूरा हिसाब
लागत बीज, खाद, मजदूरी और सिंचाई मिलाकर 50,000 से 70,000 रुपये प्रति हेक्टेयर आती है। एक हेक्टेयर से 5 से 10 टन कत्था निकल आता है, जो 800 से 1500 रुपये प्रति किलो पर 40 से 150 लाख रुपये की कमाई देता है। 50 से 100 टन लकड़ी 20,000 से 30,000 रुपये प्रति क्विंटल पर 10 से 30 लाख रुपये। कुल कमाई 50 से 180 लाख रुपये। शुद्ध मुनाफा 10 से 15 लाख प्रति हेक्टेयर। जड़ों से दूसरी फसल 5-7 साल में 5-10 लाख रुपये। जैविक कत्था 2000 रुपये प्रति किलो तक बिकता है। बड़े स्तर पर 2-3 हेक्टेयर से 30-40 लाख का फायदा।
किसानों के लिए आखिरी टिप्स
स्वस्थ बीज चुनें, ज्यादा पानी से जड़ सड़न हो सकती है। दीमक और पत्ती रोगों के लिए नीम तेल जैसे जैविक कीटनाशक प्राथमिकता दें। स्थानीय वन विभाग या KVK से सलाह लें। सरकारी योजनाओं (PMKSY, वन विभाग) से 40-60 प्रतिशत सब्सिडी लें। छोटे स्तर (0.5 हेक्टेयर) से शुरू करें। खैर की माँग और औद्योगिक उपयोग से आय बढ़ाएँ।
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