कुफ़री गंगा आलू: सिर्फ 75 दिन में दे रही 300 क्विंटल तक उपज, किसानों की कमाई हुई दोगुनी

भारत के किसानों के लिए ICAR-Central Potato Research Institute (CPRI), शिमला ने कुफ़री गंगा नाम की नई आलू किस्म विकसित की है। यह खासतौर पर उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए बनाई गई है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह सिर्फ 75-80 दिन में तैयार हो जाती है और 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज दे सकती है।

कम समय में ज्यादा फसल और अच्छा मुनाफा देने वाली यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और झारखंड के किसानों के लिए वरदान है। इसका चमकदार छिलका, स्वादिष्ट गूदा और शानदार भंडारण क्षमता इसे बाजार में पहली पसंद बनाती है। रबी 2025 में इसे आजमाएँ और जल्दी कमाई करें। आइए, इसकी बुवाई, खाद, पानी, रोग नियंत्रण, भंडारण और मुनाफे की पूरी जानकारी जानें।

ICAR- CPRI की नई उपलब्धि

कुफ़री गंगा को ICAR-CPRI, शिमला ने पारंपरिक और चयन विधियों से तैयार किया है। यह पुरानी किस्मों जैसे कुफ़री बहार और कुफ़री आलंकार से ज्यादा तेजी से बढ़ती है और मौसम की मार को अच्छे से झेल लेती है। यह किस्म जलवायु परिवर्तन के प्रति भी सहनशील है, जो इसे उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए खास बनाती है। CPRI के वैज्ञानिकों ने इसे किसानों की आय बढ़ाने और जल्दी बाजार में फसल पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किया है। अगर आप कम समय में ज्यादा मुनाफा चाहते हैं, तो यह किस्म आपके लिए बेस्ट है।

कुफ़री गंगा आलू: सिर्फ 75 दिन में दे रही 300 क्विंटल तक उपज, किसानों की कमाई हुई दोगुनी
कुफ़री गंगा आलू

मुख्य खासियत

कुफ़री गंगा एक अगेती किस्म है, जो 75-80 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। आलू का आकार मध्यम से बड़ा, गोल और चिकना होता है। इसका गूदा हल्का सफेद और स्वादिष्ट है, जो खाने में मज़ा देता है। छिलका पतला और हल्का चमकदार है, जो बाजार में ग्राहकों को आकर्षित करता है। इसमें 15-18% शुष्क पदार्थ होता है, जो इसे प्रोसेसिंग के लिए भी अच्छा बनाता है। भंडारण क्षमता शानदार है, यानी स्टोर करने पर नुकसान बहुत कम होता है। यह लेट ब्लाइट रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। यह यूपी, बिहार, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और झारखंड के लिए उपयुक्त है।

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बुवाई का समय

उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में कुफ़री गंगा की बुवाई अक्टूबर के मध्य से नवंबर के पहले हफ्ते तक करें। पूर्वी भारत में अक्टूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के मध्य तक बोएँ। बुवाई के समय मिट्टी में नमी होनी चाहिए और तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस के बीच हो। सही समय पर बुवाई से फसल तेजी से बढ़ती है और उपज ज्यादा मिलती है। देर होने पर फसल कम हो सकती है। स्थानीय कृषि केंद्र से मौसम की सलाह लें।

बीज और खेत की तैयारी

कुफ़री गंगा के लिए प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल बीज आलू चाहिए। 25-50 ग्राम वजन वाले स्वस्थ बीज चुनें। कतारों के बीच 60 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 20 सेंटीमीटर दूरी रखें। खेत की जुताई अच्छे से करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो। इससे आलू की जड़ें आसानी से बढ़ती हैं। बीज को बुवाई से पहले 2% डायथेन एम-45 या मैंकोजेब से उपचारित करें, ताकि फफूंद रोग न हों। प्रमाणित बीज कृषि केंद्र से लें। सही बीज और खेत की तैयारी से फसल की शुरुआत मजबूत होगी।

सिंचाई

पहली सिंचाई बुवाई के 7-10 दिन बाद करें। इसके बाद हर 15-20 दिन पर हल्की सिंचाई दें। फसल के आखिरी चरण में ज्यादा पानी न दें, वरना आलू सड़ सकते हैं या फट सकते हैं। कुफ़री गंगा कम पानी में भी अच्छी फसल देती है, लेकिन नमी का ध्यान रखें। बारिश पर निर्भर खेतों में मिट्टी की जाँच करें। सही सिंचाई से कंद बड़े और चमकदार बनते हैं।

मिट्टी को ताकत दें

प्रति हेक्टेयर 20-25 टन गोबर की खाद डालें। इसके साथ 150 किलो नाइट्रोजन, 100 किलो फॉस्फोरस और 100 किलो पोटाश दें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी आधी 25 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालें। मिट्टी की जाँच करवाकर खाद की मात्रा तय करें। जैविक खाद मिलाने से आलू की गुणवत्ता और उपज बढ़ती है। सही खाद से फसल हरी-भरी रहती है और कंद बड़े होते हैं।

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रोग और कीट नियंत्रण

कुफ़री गंगा में लेट ब्लाइट (पिछेता झुलसा) के प्रति मध्यम प्रतिरोध है। अगर पत्तियों पर भूरे धब्बे दिखें, तो 0.25% मैंकोजेब या मेटालेक्सिल + मैंकोजेब का छिड़काव करें। कटवर्म या पत्ती लपेटक कीट के लिए क्लोरोपायरीफॉस 20EC छिड़कें। वायरस से बचने के लिए स्वस्थ बीज ही लगाएँ। आलू के बाद गेहूँ या दाल की फसल बोएँ, ताकि रोग कम हों। नियमित खेत की जाँच करें और जलजमाव से बचें।

आलू को सुरक्षित रखें

जब पत्तियाँ पीली पड़ें और पौधा सूखने लगे, तो फसल कटाई के लिए तैयार है। कटाई के बाद आलू को छाया में 7-10 दिन सुखाएँ। फिर ठंडी और सूखी जगह पर 4-6 डिग्री सेल्सियस तापमान पर स्टोर करें। कुफ़री गंगा की भंडारण क्षमता शानदार है, यानी लंबे समय तक नुकसान कम होता है। सीधी धूप से बचाएँ, वरना अंकुरण शुरू हो सकता है। सही भंडारण से आलू की क्वालिटी और कीमत बनी रहती है।

बंपर कमाई का मौका

कुफ़री गंगा की खेती में प्रति हेक्टेयर 60,000-70,000 रुपये का खर्च आता है। औसत उपज 280 क्विंटल और बाजार भाव 10 रुपये प्रति किलो मानें, तो 2.8 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। शुद्ध मुनाफा करीब 2 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर है। इसकी जल्दी तैयार होने और अच्छी भंडारण क्षमता की वजह से बाजार में मांग बढ़ रही है।

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किसानों के लिए फायदे

कुफ़री गंगा 75 दिन में तैयार होकर जल्दी बिक्री का मौका देती है। यह ज्यादा उपज, अच्छे आकार और रोग प्रतिरोध के लिए जानी जाती है। इसका चमकदार छिलका और स्वादिष्ट गूदा बाजार में खूब पसंद किया जाता है। छोटे और सीमित जमीन वाले किसानों के लिए यह खास फायदेमंद है।

फसल को नुकसान से बचाएँ

जलभराव या ज्यादा नमी वाली मिट्टी में न लगाएँ। संक्रमित बीज का इस्तेमाल न करें। फसल के आखिरी चरण में पानी कम करें। आलू को सीधी धूप में न सुखाएँ। प्रमाणित बीज ही लें और स्थानीय कृषि केंद्र से सलाह लें। छोटे स्तर पर ट्रायल करें।

 कुफ़री गंगा 

कुफ़री गंगा आलू उत्तर भारत के किसानों के लिए कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाली किस्म है। 75-80 दिन में तैयार होने और 300 क्विंटल तक उपज देने की खूबी इसे खास बनाती है। इसकी भंडारण क्षमता और बाजार मांग किसानों की आय बढ़ाती है। रबी 2025 में इसे आजमाएँ और अपनी खेती को नई ऊँचाई दें।

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  • Shashikant

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