कुसुम की खेती कैसे करें, बीज, छिल्का, पत्ती, पंखुड़ियां, दोगुना दाम पर बिकेगी हर चीज, इस खास तरीके से उगाएँ

किसान भाइयों, आपकी मेहनत से खेतों में हरियाली बनी रहती है। आज हम एक ऐसी फसल की बात करेंगे, जो कम खर्च में बढ़िया मुनाफा देती है—कुसुम। कुसुम एक तिलहनी और औषधीय फसल है, जिसके बीज से तेल निकाला जाता है और फूलों से रंग बनता है। ये सूखे इलाकों में भी उग जाती है और रबी के मौसम में तैयार होती है। खास बात ये है कि शंकर प्रजाति से प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल तक उपज मिलती है, और खेती की लागत सिर्फ 30,000 रुपये आती है। गाँव में इसे देसी तरीके से उगाकर आप अच्छी कमाई कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि कुसुम की खेती कैसे करें।

कुसुम की फसल को समझें

कुसुम का पौधा 3-5 फीट तक बढ़ता है। इसके फूल पीले या नारंगी और बीज सफेद होते हैं। ये 120-150 दिन में तैयार हो जाती है। बीज में 30-40% तेल होता है, जो खाने, साबुन, और दवा में काम आता है। शंकर प्रजाति इसके उन्नत बीजों में से एक है, जो अच्छी पैदावार देती है। ये ठंडा मौसम (15-25°C) और कम पानी पसंद करती है। सूखा सहने की ताकत इसे खास बनाती है। गाँव में इसे खेत के किनारे या बंजर जमीन पर भी उगा सकते हैं।

खेत तैयार करने का आसान तरीका

कुसुम के लिए दोमट या रेतीली मिट्टी बढ़िया है। खेत को हल से जोतें और 2-3 बार बखर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा करें। प्रति हेक्टेयर 5-6 टन गोबर की खाद डालें, ताकि मिट्टी में खुराक बने। पानी की निकासी का इंतजाम करें, क्यूंकि ज्यादा पानी से जड़ें खराब हो सकती हैं। खेत को समतल करने के लिए पाटा चलाएँ। सितंबर के आखिर या अक्टूबर की शुरुआत में खेत तैयार करें। रबी के मौसम में ये फसल अच्छी तरह बढ़ती है।

बीज और बुवाई की विधि

कुसुम की खेती के लिए शंकर प्रजाति के बीज बाज़ार में बड़ी आसानी से मिल जाते हैं। अगर न मिलें, तो कृषि अनुसंधान केंद्र से संपर्क करें, जहाँ से बीज की व्यवस्था हो जाएगी। प्रति हेक्टेयर 10-12 किलो बीज काफी हैं। बुवाई कतारों में करें—कतार से कतार 45 सेमी और पौधे से पौधे 20 सेमी की दूरी रखें। बीज को 4-5 सेमी गहरा बोएं। बुवाई से पहले बीज को 2-3 ग्राम थाइरम से उपचारित करें, ताकि फफूंद से बचाव हो। अक्टूबर का पहला या दूसरा हफ्ता बुवाई के लिए सही है।

खाद और पानी का देसी इंतजाम

कुसुम की खेती में न दवा चाहिए, न केमिकल छिड़काव। लागत सिर्फ बीज खरीदने में आती है। बुवाई के साथ 30 किलो नाइट्रोजन और 20 किलो फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर डालें। गोबर की खाद पहले ही डाल दी जाती है। ये फसल कम पानी में उगती है। अगर मिट्टी में नमी हो, तो एक-दो हल्की सिंचाई काफी हैं। फूल आने पर हल्का पानी दें। बारिश वाले इलाकों में अतिरिक्त पानी की जरूरत नहीं। ज्यादा पानी से जड़ें सड़ सकती हैं।

देखभाल और खरपतवार से बचाव

कुसुम में कीटों का खतरा कम रहता है। फिर भी, काली लाही लगे तो नीम का तेल या 200 मिली मैलाथियान प्रति हेक्टेयर छिड़कें। खरपतवार को रोकने के लिए बुवाई के 20-30 दिन बाद हल्की गुड़ाई करें। इसके कांटेदार पत्तों की वजह से जानवर कम नुकसान करते हैं। फसल को 2-3 महीने तक ध्यान दें। सही समय पर बोई जाए, तो बीमारी का डर भी कम रहता है। खेत की रखवाली के लिए ऊँट या कुत्ते रखें।

कटाई और मुनाफे का हिसाब

कुसुम 120-150 दिन में तैयार होती है। जब पत्तियाँ सूख जाएँ और फूल भूरे पड़ जाएँ, तो कटाई करें। कांटों से बचने के लिए दस्ताने पहनें। कटी फसल को 2-3 दिन धूप में सुखाएँ, फिर डंडे से पीटकर बीज निकालें। शंकर प्रजाति से प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल उपज मिलती है। लागत 30,000 रुपये आती है। बाज़ार में 5000-6000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से 1.5-1.8 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। तेल निकालकर या बीज बेचकर भी फायदा ले सकते हैं।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र पिछले तिन साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ मै ugc नेट क्वालीफाई हूँ भूगोल विषय से मै एक विषय प्रवक्ता हूँ , मुझे कृषि सम्बन्धित लेख लिखने में बहुत रूचि है मैंने सम्भावना संस्थान हिमाचल प्रदेश से कोर्स किया हुआ है |

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