किसान भाइयों, लेट्यूस एक पत्तेदार, हरी सब्जी है, जिसकी माँग भारत में शहरों से गाँवों तक तेजी से बढ़ रही है। सलाद, बर्गर, सैंडविच, और फास्ट फूड में इसका उपयोग इसे होटल, रेस्तराँ, और ऑनलाइन ग्रोसरी स्टोरों (BigBasket, Amazon Fresh) में लोकप्रिय बनाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, और दक्षिण भारत में इसकी खेती तेजी से फैल रही है। कम लागत (25,000-35,000 रुपये/एकड़), 45-60 दिन में तैयार होने वाली यह फसल सालाना 2-3 लाख रुपये का मुनाफा दे सकती है। छोटी जमीन (0.5 एकड़) पर शुरूआत कर ग्रामीण रोजगार और आय बढ़ाई जा सकती है। आइए जानें लेट्यूस की खेती कैसे करें और लाखों कैसे कमाएँ।
उपयुक्त मौसम और मिट्टी की जरूरत
लेट्यूस ठंडी जलवायु (15-25°C) की फसल है, जो अक्टूबर से फरवरी के बीच सर्वोत्तम उगती है। गर्म क्षेत्रों (25-30°C) में हल्की छायादार जगह या नेट शेड चुनें। बलुई दोमट मिट्टी (pH 6-7) और अच्छी जल निकासी वाली जमीन आदर्श है। भारी या जलजमाव वाली मिट्टी जड़ सड़न का कारण बनती है। खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करें, 3-4 टन गोबर खाद, 100 किलो नीम खली, और 50 किलो वर्मी कम्पोस्ट/एकड़ मिलाएँ। मिट्टी को भुरभुरा और समतल करें। ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस में खेती से उपज 20-30% बढ़ती है, खासकर गर्मी में। मॉनसून के बाद मिट्टी की नमी बनाए रखें।
बीज चयन और नर्सरी प्रबंधन
लेट्यूस की खेती नर्सरी से शुरू होती है। प्रमाणित बीज (200-300 ग्राम/एकड़) कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), ICAR संस्थान (IARI पूसा, नई दिल्ली), या ऑनलाइन (Amazon, AgriBegri, KisanMart) से लें। लोकप्रिय किस्में: आइसबर्ग, रोमेन, बटरहेड, लूजलीफ। बीज की वैधता और 80% से अधिक अंकुरण दर जाँचें। नर्सरी के लिए ट्रे या 1×1 मीटर क्यारियों में नम मिट्टी, 2 किलो गोबर खाद/वर्गमीटर, और जैविक टॉनिक (ट्राइकोडर्मा, 5 ग्राम/किलो मिट्टी) मिलाएँ। बीज 0.5 सेमी गहराई में बोएँ। 25-30 दिन में 4-5 पत्तियों वाले पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। नर्सरी में 50% शेड नेट से धूप से बचाएँ।
खेत की तैयारी और रोपाई
खेत को 2-3 बार जोतकर समतल करें और 1 मीटर चौड़ी क्यारियाँ बनाएँ। पौधों के बीच 30×30 सेमी दूरी रखें, ताकि पत्तियाँ फैल सकें। एक एकड़ में 40,000-50,000 पौधे लगते हैं। रोपाई से पहले 1 टन वर्मी कम्पोस्ट और 50 किलो नीम खली/एकड़ डालें। रोपाई शाम को करें और तुरंत हल्की सिंचाई करें। 10-12 दिन बाद गोमूत्र (10% घोल) या जैविक टॉनिक (5 मिली/लीटर) छिड़कें। ड्रिप सिस्टम से पानी और लागत 20-25% बचती है। गर्मी में नेट शेड या पॉलीहाउस उपयोगी है। हाइड्रोपोनिक्स या एक्वापोनिक्स से उपज दोगुनी हो सकती है, खासकर शहरी खेती में।
देखभाल, सिंचाई, और खाद-कीट प्रबंधन
लेट्यूस को नियमित हल्की सिंचाई चाहिए। गर्मी में 5-7 दिन और सर्दी में 10-12 दिन के अंतराल पर पानी दें। ज्यादा पानी से जड़ सड़न हो सकती है। सालाना 2 टन गोबर खाद, 500 किलो वर्मी कम्पोस्ट, और 100 किलो नीम खली/एकड़ डालें। रासायनिक खाद से बचें; जरूरत हो तो NPK (10:10:10, 50 किलो/एकड़) डालें। कीट (एफिड्स, कटवर्म) के लिए नीम तेल (5 मिली/लीटर) या लहसुन-अदरक घोल (10 ग्राम/लीटर) छिड़कें। फफूंद रोग (डाउनी मिल्ड्यू) के लिए बोर्डो मिश्रण (1%) उपयोग करें। खरपतवार को बुवाई के 15-20 दिन बाद हटाएँ। जैविक खेती से माँग और कीमत 30-40% बढ़ती है। हर 15 दिन बाद पत्तियों की जाँच करें और कमजोर पौधों को बदलें।
तुड़ाई, बिक्री, और मुनाफा
लेट्यूस 45-60 दिन में तैयार होती है। सुबह या शाम को, जब पत्तियाँ हरी-ताजी हों, कैंची से तुड़ाई करें ताकि ताजगी बनी रहे। एक एकड़ से 80-100 क्विंटल उपज मिलती है। सामान्य लेट्यूस 30-50 रुपये/किलो और जैविक 70-100 रुपये/किलो बिकता है। कुल आय 2.4-5 लाख रुपये; लागत (25,000-35,000 रुपये) और रखरखाव (10,000-15,000 रुपये) घटाकर 2-3 लाख रुपये मुनाफा। होटल, सुपरमार्केट, मंडी, और ऑनलाइन (BigBasket, Farmkart) में बेचें। निर्यात (मध्य पूर्व, यूरोप) के लिए APEDA से संपर्क करें। प्रोसेसिंग (पैकेज्ड सलाद) से मुनाफा 20-30% बढ़ता है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन से 40-50% सब्सिडी, KVK से प्रशिक्षण, और AIF से 2 करोड़ लोन (3% ब्याज सब्सिडी) लें। FPO बनाकर मार्केटिंग आसान करें।
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