भारत में मटर की खेती किसानों के लिए कमाई का अच्छा स्रोत है, और हाल के वर्षों में M7 मटर वैरायटी का नाम जोरों पर है। यह प्राइवेट सीड कंपनियों जैसे Golden Seeds और Devansh Seeds ने विकसित की है, और अगेती किस्मों में शुमार है। किसान इसे 45 से 75 दिन में तैयार होने वाली फसल मानते हैं, जो रबी सीजन में दूसरी फसलों के साथ आसानी से फिट हो जाती है। इसके लंबे हरे फलियाँ और मीठे स्वाद वाले चमकदार दाने इसे बाजार में खास बनाते हैं। M7 ग्रीन पी के नाम से उपलब्ध यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब के किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
रबी 2025 में यह किस्म कम पानी और कम देखभाल में 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज दे सकती है। भारत में मटर का रकबा 7-8 लाख हेक्टेयर है, और M7 जैसी नई वैरायटी से उत्पादकता 20% बढ़ सकती है। यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू और रस्ट जैसी बीमारियों से लड़ने में मजबूत है, और फ्रीजिंग प्रोसेसिंग यूनिट्स में इसकी डिमांड बढ़ रही है।
M7 मटर की उत्पत्ति
M7 मटर वैरायटी का वैज्ञानिक पंजीकरण अभी ICAR या राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में सीमित है, लेकिन प्राइवेट कंपनियों ने इसे किसानों की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया है। Golden Seeds और Devansh Seeds जैसे ब्रांड इसे 99% शुद्धता के साथ बेचते हैं, और अंकुरण दर 85-90% है। यह वैरायटी किसान स्तर पर विकसित हुई लगती है, जहाँ मीठे स्वाद और कम समय में तैयार होने पर फोकस है। उत्तर भारत के किसान इसे पसंद करते हैं क्योंकि इसके फलियाँ लंबी, गहरे हरे रंग की और दानों से भरी होती हैं। दाने चमकीले हरे और मीठे होते हैं, जो ताजी सब्जी के लिए बेस्ट हैं।
राजस्थान और पंजाब के किसानों ने बताया कि M7 पुरानी किस्मों जैसे अर्का अजीत या पंत मटर 2 से 15-20% बेहतर उपज देती है। मध्य प्रदेश में जहाँ मटर का रकबा 1 लाख हेक्टेयर है, यह किस्म कम पानी में 80 क्विंटल/हेक्टेयर देती है। बिहार के मैदानी इलाकों में 75 दिन में तैयार होने से किसान दूसरी फसल जैसे गेहूँ के साथ जोड़ पाते हैं। ICAR के अनुसार, ऐसी अगेती वैरायटी से कुल उत्पादन 10% बढ़ सकता है। मटर का बाजार भाव 40-60 रुपये प्रति किलो है, और M7 के मीठे दाने 5-10% ज्यादा कीमत पाते हैं।
M7 मटर की प्रमुख विशेषताएँ
M7 मटर एक अगेती किस्म है, जो 45-75 दिन में तैयार हो जाती है। इसके पौधे मध्यम ऊँचाई के और झाड़ीदार होते हैं, जो सहारा दिए बिना भी मजबूत रहते हैं। फलियाँ लंबी, गहरे हरे रंग की और दानों से भरी होती हैं, जो बाजार में आकर्षक लगती हैं। दाने चमकीले हरे, मीठे स्वाद वाले और कुरकुरे हैं, जो ताजी सब्जी या फ्रोजन प्रोसेसिंग के लिए बेस्ट हैं। बीज की शुद्धता 99% है, और अंकुरण दर 85-90%। यह दोमट या बलुई-दोमट मिट्टी में अच्छी बढ़ती है, जहाँ जल निकास अच्छा हो।
अनुकूल तापमान 15-25 डिग्री सेल्सियस है, जो उत्तर भारत की शीत ऋतु के लिए परफेक्ट है। औसत उत्पादन 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो पुरानी किस्मों से 20% ज्यादा है। मध्य प्रदेश के किसान इसे कम पानी में बढ़ाने के लिए पसंद करते हैं। राजस्थान में जहाँ मिट्टी रेतीली है, यह 75 क्विंटल/हेक्टेयर देती है। पंजाब के किसान इसके मीठे दानों से 50 रुपये/किलो भाव पा रहे हैं।
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बुवाई का समय और क्षेत्र
M7 मटर की बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक करें, जब तापमान ठंडा होने लगे। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब के किसान इसे रबी में बो रहे हैं। इन क्षेत्रों में शीत मौसम मटर के लिए आदर्श है। बीज दर 40-45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। बीज को ट्राइकोडर्मा या थीरम (2.5 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें, ताकि मिट्टी के रोग न हों। पंक्तियों के बीच 20-25 सेंटीमीटर दूरी रखें। मध्य प्रदेश के इंदौर और भोपाल जैसे इलाकों में 15 अक्टूबर तक बोने से 90 क्विंटल उपज मिलती है।
बिहार के मैदानी क्षेत्रों में नवंबर की शुरुआत में बोने से फलियाँ ज्यादा लंबी बनती हैं। राजस्थान के किसान कम पानी में 75 क्विंटल पा रहे हैं। पंजाब में जहाँ मटर का रकबा 50 हजार हेक्टेयर है, M7 जैसी वैरायटी से उत्पादकता 15% बढ़ी है। ICAR के अनुसार, सही बुवाई से रोग 20% कम होते हैं। किसान बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर बोएँ, ताकि अंकुरण तेज हो।
सिंचाई और पोषण प्रबंधन
M7 मटर को 3-4 बार हल्की सिंचाई दें। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। दूसरी फूल आने के समय, तीसरी दाने भरने के समय। ज्यादा पानी से फलियाँ पीली पड़ सकती हैं। मिट्टी की नमी देखकर पानी दें। खाद में प्रति हेक्टेयर 10-12 टन गोबर की सड़ी खाद डालें। यूरिया 60 किलो, सिंगल सुपर फॉस्फेट 150 किलो और म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलो डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई पर, बाकी दो हिस्सों में – पहली गुड़ाई पर और फूल आने से पहले। मिट्टी में जैविक पदार्थ ज्यादा हो तो रासायनिक खाद कम करें।
उत्तर प्रदेश के किसान 3 सिंचाई में 85 क्विंटल पा रहे हैं। बिहार में जहाँ मिट्टी दोमट है, NPK से फलियाँ लंबी बनती हैं। मध्य प्रदेश के भोपाल में कम पानी से 80 क्विंटल उपज हो रही है। राजस्थान के किसान जिंक सप्लीमेंट से दानों का स्वाद बढ़ा रहे हैं। पंजाब में रिजोबियम कल्चर से नाइट्रोजन फिक्सेशन बढ़ता है, जो उपज 10% बढ़ाता है। ICAR की सलाह है कि जैविक खाद से उपज 8-10% बढ़ती है।
रोग और कीट नियंत्रण
M7 मटर में गंभीर रोगों की रिपोर्ट कम है, लेकिन सामान्य मटर की तरह पाउडरी मिल्ड्यू, रस्ट और एफिड्स आ सकते हैं। पाउडरी मिल्ड्यू के लिए 0.2% सल्फर का छिड़काव करें। रस्ट के लिए 0.25% मैन्कोजेब स्प्रे करें। एफिड्स के लिए 5 मिली प्रति लीटर नीम तेल छिड़कें। शुरुआती चरण में ही रोग दिखे तो दवा डालें। जहाँ नमी ज्यादा है, ब्लाइट के लिए मेटालेक्सिल 0.25% इस्तेमाल करें।
पाउडरी मिल्ड्यू 20% किसानों को परेशान करता है, लेकिन M7 में प्रतिरोध मजबूत है। राजस्थान के किसान जैविक तरीके से एफिड्स नियंत्रित कर रहे हैं। पंजाब में पॉड बोरर के लिए क्लोरपायरीफोस 0.05% छिड़कें। ICAR के अनुसार, फसल चक्र (मटर के बाद गेहूँ) से रोग 25% कम होते हैं। नियमित जाँच से फसल बच जाएगी।
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बाजार में अच्छा भाव
M7 मटर सही देखभाल से 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। इसके दाने चमकीले हरे और मीठे होते हैं, जो ताजी सब्जी बाजार और फ्रोजन प्रोसेसिंग में पसंद किए जाते हैं। फलियाँ एकसमान आकार की होने से ग्रेडिंग आसान है। थोक बाजार में 40-60 रुपये प्रति किलो भाव मिलता है। ICAR की सलाह है कि ब्रांडिंग से भाव 10% बढ़ता है। भंडारण के लिए ठंडे स्थान पर रखें, ताकि दाने ताजे रहें।
किसानों के लिए सुझाव
M7 मटर बोने से पहले प्रमाणित बीज ही लें, ताकि शुद्धता बनी रहे। खेत में जल निकास अच्छा रखें, क्योंकि पानी भराव से फसल पीली पड़ सकती है। छोटे क्षेत्र में पहले ट्रायल करें। फली तोड़ते समय पौधों को नुकसान न पहुँचाएँ, ताकि नई फलियाँ आ सकें। ICAR की सलाह है कि Rhizobium कल्चर से नाइट्रोजन फिक्सेशन बढ़ता है।
M7 मटर की वैज्ञानिक रिपोर्ट सीमित है, इसलिए बड़े पैमाने पर बोने से पहले स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या विश्वविद्यालय से सलाह लें। एक ही खेत में सालों तक न बोएँ, रोग बढ़ सकते हैं। बीज को ठंडे-सूखे स्थान पर रखें। शुरुआती नमी का ध्यान रखें।
M7 मटर से रबी 2025 में कमाई
M7 मटर वैरायटी किसानों के लिए कम समय में मीठी कमाई का स्रोत है। 45-75 दिन में तैयार होने और 80-100 क्विंटल उपज से बाजार में मजबूत जगह बना रही है। सही बुवाई, खाद और रोग नियंत्रण से उत्तर भारत के किसान बंपर मुनाफा कमा सकते हैं। रबी 2025 में इसे आजमाएँ और अपनी खेती को नया रंग दें।
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