राजधानी दिल्ली के मदनपुर खादर इलाके में मायूसी छाई हुई है। यमुना नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का पानी घुस गया है। सैकड़ों बीघे जमीन पर उगी सीजनल सब्जियों की फसलें इस पानी में डूबकर बर्बाद हो गई हैं। किसानों की कड़ी मेहनत पर पानी फिर गया है, और उनकी रोजी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है। सुबह की ठंडक में खेतों से उठती नमी और सड़ी फसल की बदबू गाँव वालों के दिल को दहला रही है। यह दृश्य हमारे किसान भाइयों की बेबसी को बयान कर रहा है।
मदनपुर खादर का मंजर, फसलें डूबी, घर उजड़े
दिल्ली के यमुना किनारे बसे मदनपुर खादर इलाके में खेती का बड़ा हिस्सा तबाह हो चुका है। यमुना का बढ़ता पानी खेतों को पूरी तरह जलमग्न कर रहा है, और साग, भिंडी, तोरी जैसी सब्जियां पानी में गल रही हैं। यहाँ झुग्गियों में रहने वाले किसानों की जिंदगी भी दांव पर लग गई है। कई झुग्गियां डूब चुकी हैं, और बाकी डूबने की कगार पर हैं। लोग अपने सामान और मवेशियों को लेकर ऊंचाई वाली जगहों पर शरण ले रहे हैं। एक किसान ने बताया कि उनकी सारी उम्मीदें इस फसल पर टिकी थीं, लेकिन अब सब कुछ बह गया। यह मंजर गाँव की एकता और मेहनत को चुनौती दे रहा है।
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मदनपुर खादर के किसानों ने अपनी पूरी जान लगा दी थी। बदायूं से आई महिला किसान ओमवती ने किराए की 4-5 बीघा जमीन पर पालक, सरसों, और मूली के साग उगाए थे, लेकिन अब सब डूब चुका है। उन्होंने कहा कि सरकार से उम्मीद है कि कोई मदद मिले, वरना बिना काम के दिन काटना मुश्किल होगा। वहीं, ओमपाल ने तीन बीघे में मूली, मिर्च, और फूलगोभी लगाई थी, जो बाढ़ में तबाह हो गई। एक अन्य किसान ने बताया कि लाल चौलाई और हरी चौलाई की खेती पर 60,000 रुपये खर्च किए थे, जो अब यमुना के पानी में समा गए। इन किसानों की आँखों में आंसू और मन में गुस्सा साफ दिख रहा है।
बाढ़ का असर, प्रकृति का प्रकोप
04 सितंबर 2025 को मौसम में नमी और बारिश का असर साफ है। यमुना का जलस्तर बढ़ने की वजह से निचले इलाकों में पानी तेजी से घुस रहा है। खेतों में कीचड़ और पानी जमा होने से फसलें सड़ रही हैं, और किसानों के पास कोई चारा नहीं बचा। मौसम विभाग का कहना है कि अगले कुछ दिन भारी बारिश की संभावना है, जो स्थिति को और खराब कर सकती है। यह प्रकोप न सिर्फ फसलों को, बल्कि गाँव की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है। किसानों का कहना है कि अगर पानी का बहाव रुका नहीं, तो उनका पूरा साल बर्बाद हो जाएगा।
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इस मुश्किल घड़ी में देसी तरीके भी सहारा बन सकते हैं। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे ऊंची जगह पर अस्थायी बाँध बनाएं, ताकि पानी खेतों में न घुसे। पुराने टायर, मिट्टी की थैलियाँ, और लकड़ी का इस्तेमाल करके छोटी दीवारें बनाई जा सकती हैं। फसल बचाने के लिए ऊंचाई पर सब्जियों को काटकर सुखाया जा सकता है, ताकि कुछ न कुछ बचा लिया जाए। गाँव में लोग एकजुट होकर मवेशियों को सुरक्षित जगह पर ले जा रहे हैं, जो एक अच्छी पहल है। ये कदम छोटे हैं, लेकिन किसानों की मेहनत को बर्बाद होने से बचा सकते हैं।
किसान सरकार से मुआवजा और राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं। मदनपुर खादर के लोग प्रशासन से जल्द कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, ताकि बाढ़ का पानी रोका जा सके और नुकसान का आकलन हो। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) और स्थानीय प्रशासन को तुरंत मोर्चा संभालना होगा। केंद्र और दिल्ली सरकार को फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा देने की घोषणा करनी चाहिए। नदियों के किनारे बाढ़रोधी बाँध और नालियों की सफाई पर ध्यान देना होगा, ताकि भविष्य में ऐसा न हो। किसानों की इस पीड़ा को सुनने और समाधान देने की जिम्मेदारी सरकार पर है।
मदनपुर खादर के किसानों की मेहनत आज यमुना के पानी में बह गई, लेकिन उनकी उम्मीदें अभी जिंदा हैं। सरकार और समाज के सहयोग से वे फिर से खड़े हो सकते हैं। तो आइए, इन किसानों के दर्द को समझें और उनकी मदद के लिए आगे बढ़ें—क्योंकि उनका दर्द हम सबका दर्द है!
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