महाराष्ट्र के किसानों पर दोहरी मार 100 लाख टन गन्ना बर्बाद, चीनी बाजार में मचा सकता है हड़कंप

महाराष्ट्र के कई जिलों में पिछले कुछ दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश ने गन्ना किसानों को परेशान कर दिया है। सोलापुर, नासिक, अहमदनगर और मराठवाड़ा जैसे इलाकों में नदियां उफान पर हैं, और उनके किनारों पर लगी गन्ने की फसलें पानी में डूब चुकी हैं। किसान भाई दिन-रात चिंता में हैं, क्योंकि उनकी मेहनत की फसल बर्बादी के कगार पर खड़ी है। शुरुआती जांच में पता चला है कि करीब 100 लाख टन से ज्यादा गन्ना इस बाढ़ की चपेट में आ गया है। ये नुकसान न सिर्फ किसानों की जेब पर भारी पड़ेगा, बल्कि पूरे राज्य की चीनी इंडस्ट्री को भी हिला सकता है।

बारिश की ये बौछारें अचानक आईं, और किसानों को मौका ही नहीं मिला कि वे अपनी फसल को बचा सकें। खेतों में पानी भर गया, जिससे गन्ने की बढ़ोतरी रुक सी गई है। अब पेराई का मौसम भी लेट हो रहा है, और विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बाजार में चीनी की सप्लाई प्रभावित हो सकती है। फिर भी, चीनी मिलों के मालिकों ने आश्वासन दिया है कि कुल उत्पादन पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। ये बात किसानों को थोड़ी राहत दे रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।

उत्पादन लक्ष्य पर कोई बदलाव नहीं

चीनी मिल संचालकों का कहना है कि बारिश ने भले ही कुछ इलाकों को नुकसान पहुंचाया हो, लेकिन राज्य स्तर पर गन्ने की उपलब्धता बरकरार रहेगी। महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी मिल संघ के आंकड़ों के मुताबिक, इस सीजन में करीब 1200 लाख टन गन्ना पेराई के लिए मिलेगा, जो पिछले साल के 850 लाख टन से काफी ज्यादा है। हां, प्रति हेक्टेयर उपज का अनुमान थोड़ा कम करके 74 टन कर दिया गया है, जो पहले 82 टन का था। लेकिन कुल मिलाकर, मिलर्स को लगता है कि चीनी का आउटपुट वैसा ही रहेगा जैसा प्लान किया गया था।

राष्ट्रीय सहकारी चीनी कारखाना महासंघ के चेयरमैन हर्षवर्धन पाटिल ने साफ कहा कि बारिश का असर सीमित है, और चीनी उत्पादन पर कोई बड़ा झटका नहीं लगेगा। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की है कि अतिरिक्त निर्यात कोटा दें और एथनॉल की कीमतें बढ़ाएं, ताकि किसानों को बेहतर दाम मिल सकें। ये मांगें समय पर हैं, क्योंकि बाढ़ से प्रभावित किसानों को तुरंत राहत की जरूरत है। मिलर्स का ये रुख किसानों को उम्मीद दे रहा है, लेकिन कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या ये सिर्फ बातें हैं या हकीकत में कुछ बदलेगा।

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पेराई में देरी से बाजार पर असर, कीमतें चढ़ सकती हैं

बारिश न सिर्फ फसल को डुबो रही है, बल्कि पेराई के शेड्यूल को भी बिगाड़ रही है। किसानों का अनुभव है कि ज्यादा पानी से गन्ने की ग्रोथ थम गई है, और अब मिलों में देरी से काम शुरू होगा। इसका मतलब ये कि ताजी चीनी नवंबर के अंत तक ही बाजार में आएगी। दिवाली जैसे त्योहार नजदीक हैं, और विशेषज्ञों को लगता है कि इससे खुदरा चीनी की कीमतों में इजाफा हो सकता है। कुछ राज्यों में तो पहले ही प्रति टन चार हजार रुपये से ऊपर पहुंच चुकी हैं। ये उछाल किसानों के लिए दोहरी मार है—एक तरफ फसल का नुकसान, दूसरी तरफ बाजार की अनिश्चितता।

खेती के पुराने जानकार बताते हैं कि ऐसी स्थितियों में किसानों को वैकल्पिक फसलों की ओर सोचना चाहिए, लेकिन अभी तो हालात इतने कठिन हैं कि सोचने का वक्त ही नहीं मिल रहा। मिलर्स का दावा है कि उत्पादन प्रभावित नहीं होगा, लेकिन जमीनी स्तर पर नुकसान साफ दिख रहा है। अगर बारिश जल्द रुकी, तो शायद कुछ बच जाए, वरना हालात और बिगड़ सकते हैं।

सरकार vs मिलर्स

इस बीच, राज्य सरकार और चीनी मिलों के बीच तनाव बढ़ गया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साफ चेतावनी दी है कि जो मिलें किसानों के साथ टनेज गणना में छल कर रही हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। सरकार ने बाढ़ प्रभावित किसानों की मदद के लिए एक नया राहत उपकर लगाया है। हर मिल को प्रति टन गन्ना दस रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष में और पांच रुपये बाढ़ पीड़ितों के लिए जमा करने पड़ेंगे।

सरकार का तर्क है कि राज्य की चीनी मिलों का टर्नओवर तीस हजार करोड़ से ज्यादा है, जबकि किसानों को दस हजार करोड़ की मदद दी गई है। फडणवीस ने कहा कि ये राशि सीधे बाढ़ प्रभावित किसानों तक पहुंचेगी, और कुछ लोग इसे गलत तरीके से किसानों से वसूली बता रहे हैं। लेकिन मिलर्स इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि कई फैक्टरियां पहले से आर्थिक दबाव में हैं, और ये अतिरिक्त बोझ उठाना मुश्किल होगा। ये टकराव किसानों के हित में कैसे काम करेगा, ये तो वक्त बताएगा।

किसान नेताओं की मांग

किसान नेता राजू शेट्टी ने सरकार से गुहार लगाई है कि उन मिलों पर तुरंत एक्शन लें जो पिछले सीजन में किसानों को पूरा फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस नहीं दे पाईं। उन्होंने कहा कि कई मिलें टनेज में हेरफेर कर रही हैं, और ऐसी मिलों की लिस्ट सबूतों के साथ सौंपी जा चुकी है। शेट्टी का आरोप है कि मिलर्स किसानों को ठग रही हैं, और मुख्यमंत्री को फौरन कदम उठाना चाहिए।

ये विवाद राज्य की चीनी इंडस्ट्री को और जटिल बना रहा है। किसान भाई पहले ही बाढ़ की मार झेल रहे हैं, ऊपर से मिलों और सरकार के झगड़े। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सभी पक्ष मिलकर काम करें, ताकि नुकसान कम हो सके। अगर उत्पादन वाकई बरकरार रहा, तो अच्छा, लेकिन किसानों को तत्काल सहायता मिलनी चाहिए। स्थानीय कृषि विभाग से संपर्क करें और राहत योजनाओं का फायदा उठाएं।

महाराष्ट्र जैसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य में ये संकट पूरे देश को प्रभावित कर सकता है। उम्मीद है कि बारिश रुकेगी और हालात सुधरेंगे।

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