Maize Farming February First Week: मक्का की खेती भारत में सबसे महत्वपूर्ण अनाज उत्पादनों में से एक है। इसकी खेती कई मौसमों में की जाती है, लेकिन फरवरी का प्रथम सप्ताह इसकी बुवाई के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। यह समय फसल के सही विकास और अधिक उत्पादन के लिए अनुकूल होता है। इस लेख में हम मक्का की खेती के वैज्ञानिक तरीकों पर चर्चा करेंगे, जिससे किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं।
मक्का की खेती से अच्छा मुनाफा कमाने के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाना जरूरी है। फरवरी का पहला सप्ताह इसकी बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।
मक्का के बीज की तैयारी
जायद मौसम में संकर एवं संकुल प्रजातियों के लिए 18-25 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। बीज को कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम) या थीरम (2.5 ग्राम) प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित करके बोना चाहिए। पंक्तियों की दूरी 60 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सें.मी. रखें।
खेत की तैयारी
हल्की दोमट या बलुई मिट्टी मक्का (Maize farming) के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। बुवाई से पहले खेत की अच्छी जुताई कर गोबर की खाद मिलाएं। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें। यदि जिंक की कमी हो तो 20 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर अंतिम जुताई के साथ मिलाएं। संकर प्रजातियों के लिए 80:40:40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश दें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी 30 दिनों बाद दें।
सिंचाई
मक्का की फसल में 5-6 सिंचाइयों की जरूरत होती है। 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें, खासकर जीरा निकलते समय खेत में नमी बनाए रखें। खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करें या 1.0-1.5 कि.ग्रा. एट्राजीन को 800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे-तीसरे दिन छिड़काव करें।
रबी मक्का की देखभाल
शीतकालीन मक्का की फसल में 120-125 दिनों बाद दाना भरते समय अंतिम सिंचाई जरूरी होती है। रोग और कीटों से बचाव के लिए कार्बेरिल (2.5 मि.ली.) को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। रतुआ व चारकोल बंट के खतरे से बचने के लिए डाइथेन एम-47 (400-600 ग्राम) को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर 2-3 छिड़काव करें।
मक्का की फसल में रोग प्रबंधन
गुलाबी उकठा रोग में पौधे सूखने लगते हैं और तने में गुलाबी रंग दिखाई देता है। काले चूर्ण उकठा रोग में कटाई से पहले पौधे सूख जाते हैं और तनों में चूर्ण भर जाता है। बचाव के लिए बीज को थीरम (2.5 ग्राम) या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम) प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित करें।
सरकारी योजनाएं और मुनाफा
सरकार मक्का जैसी मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा दे रही है। मिलेट्स योजना के तहत ज्वार, बाजरा, कोदो, सांवा आदि को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। फूड इंडस्ट्री में मक्के की बढ़ती मांग के कारण इसकी कीमत गेहूं से भी ज्यादा हो चुकी है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
अगर सही तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए तो मक्का की खेती से कम लागत में अधिक उत्पादन और अधिक लाभ संभव है।
फरवरी का प्रथम सप्ताह मक्का की बुवाई के लिए सबसे अनुकूल होता है। वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने पर उच्च उत्पादन और अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। उचित बीज चयन, मिट्टी की जांच, सही उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण और कीट प्रबंधन से किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। साथ ही, सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर खेती को और अधिक लाभदायक बनाया जा सकता है।
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