अब पोखरे नहीं, खेत में भी उगेगा मखाना! जानें वैज्ञानिकों की नई ट्रिक और डबल इनकम का फॉर्मूला

Makhana Farming New Technique: मखाना, जिसे सुपरफूड कहा जाता है, अब सिर्फ तालाबों या जलभराव वाले इलाकों तक सीमित नहीं रहा। अब समस्तीपुर के किसान अपने सामान्य खेतों में भी मखाना उगाकर मोटी कमाई कर सकते हैं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे खेतों में मखाना की खेती आसान हो गई है। बिहार, जो पहले से ही मखाना उत्पादन का गढ़ है, अब समस्तीपुर जैसे जिलों में इसकी खेती को नई ऊँचाइयों पर ले जा रहा है।

वैज्ञानिकों का नया प्रयोग

पहले मखाना की खेती सिर्फ तालाबों या दलदली जमीन पर होती थी, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इसे सामान्य खेतों में उगाने का रास्ता खोज लिया है। पूसा विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार सिंह बताते हैं कि अगर खेत में 6 से 9 इंच तक पानी जमा किया जाए, तो मखाना की खेती आसानी से हो सकती है। जिन खेतों में जलजमाव रहता है या जहाँ धान के अलावा दूसरी फसलें अच्छी नहीं होतीं, वहाँ मखाना एक शानदार विकल्प है। समस्तीपुर के किसानों के लिए ये तकनीक किसी वरदान से कम नहीं, क्योंकि यहाँ कई खेतों में पानी की उपलब्धता रहती है।

समस्तीपुर में मखाना खेती की शुरुआत

समस्तीपुर जिला उद्यान विभाग ने मखाना की खेती को बढ़ावा देने के लिए बड़ा कदम उठाया है। जिला उद्यान पदाधिकारी प्रशांत कुमार ने बताया कि शुरुआती तौर पर जिले के 10 हेक्टेयर क्षेत्र में मखाना की खेती शुरू की जाएगी। इसके लिए पूसा विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम चल रहा है। सरकार की ओर से किसानों को बीज, तकनीकी सहयोग, और सब्सिडी भी दी जाएगी। प्रशांत कुमार का कहना है कि अगर ये प्रयोग सफल रहा, तो मखाना की खेती को पूरे जिले में बड़े पैमाने पर फैलाया जाएगा। इसके लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा जा चुका है, और जल्द ही 10 हेक्टेयर का लक्ष्य हासिल करने की उम्मीद है।

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बिहार का गौरव, किसानों की कमाई

बिहार मखाना उत्पादन में देश का बादशाह है। देश में 15,000 हेक्टेयर में होने वाली मखाना की खेती का 80-90% हिस्सा अकेले बिहार से आता है। मिथिलांचल के दरभंगा और मधुबनी जैसे जिले इसकी खेती के लिए मशहूर हैं, जहाँ हर साल 1.2 लाख टन बीज से 40,000 टन मखाने का लावा तैयार होता है। मखाना सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि चीन, जापान, कोरिया, और रूस जैसे देशों में भी खूब बिकता है। हर साल 22-25 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा मखाना के निर्यात से मिलती है। समस्तीपुर के किसान अब इस मुनाफे में हिस्सेदार बन सकते हैं।

खेतों में मखाना उगाने का आसान तरीका

मखाना की खेती के लिए खेत को तालाब जैसा बनाना पड़ता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, खेत में 6-9 इंच पानी जमा करें, जिसके लिए पंपसेट का इस्तेमाल हो सकता है। बीज बोने से पहले खरपतवार साफ करना जरूरी है। अप्रैल में मखाना के पौधों में फूल खिलने लगते हैं, जो 3-4 दिन तक रहते हैं। इस दौरान बीज बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। एक-दो महीने में बीज फलों में बदल जाते हैं, और जून-जुलाई तक फल पानी की सतह पर तैरने लगते हैं। 24-48 घंटे बाद ये फल नीचे बैठ जाते हैं, और फिर कटाई का समय आता है। राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा के वैज्ञानिकों का कहना है कि ये तरीका कम लागत में ज्यादा मुनाफा देता है।

मखाना की खेती न सिर्फ मुनाफे का सौदा है, बल्कि ये जलजमाव वाले खेतों का सही इस्तेमाल भी करता है। समस्तीपुर के किसान इस नई तकनीक को अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं। सरकार की सब्सिडी और वैज्ञानिकों का साथ इस काम को और आसान बना रहा है। तो भाईयों, अपने खेतों को तैयार करें और मखाना की खेती शुरू करें।

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  • Shashikant

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