Malinga Ki Kheti: किसान साथियों, देश में खेती के नए विकल्पों की तलाश में लगे किसानों के लिए मलिंगा की खेती एक सुनहरा अवसर बनकर उभरी है। खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के किसानों में यह फसल तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसके औषधीय गुणों और बाजार में ऊँचे दाम के कारण किसान इसे आलू, गेहूं या सरसों के बाद बोना शुरू कर चुके हैं।आईये इस लेख में इसकी खेती के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं।
मलिंगा क्या है?
मलिंगा एक प्रकार का औषधीय पौधा है, जो मुख्य रूप से जैविक उत्पादों और आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल होता है। इसका उपयोग स्किन प्रोडक्ट्स, दर्द निवारक तेल, हर्बल चाय और कई प्रकार की दवाइयों में किया जाता है। इसे देशी भाषाओं में “जंगल जड़ी” या “औषधीय लौंग” भी कहा जाता है।
मलिंगा की खेती उत्तर भारत के मैदानी और कुछ पठारी इलाकों में की जाती है। खासकर उत्तर प्रदेश के मैनपुरी, कन्नौज, इटावा और कुछ हिस्सों में इसकी खेती बड़ी मात्रा में होने लगी है। किसानों के अनुसार, यह फसल आलू की कटाई के बाद खेतों में बोई जाती है और ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती।
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मलिंगा की खेती कैसे करें?
मलिंगा की खेती के लिए खेत की अच्छी तैयारी ज़रूरी होती है। पहले खेत की जुताई गहरी करनी चाहिए, जिससे मिट्टी में हवा और नमी का प्रवाह बना रहे।
बुआई मार्च-अप्रैल में की जाती है। बीजों को 12 से 24 घंटे पानी में भिगोकर बोने से अंकुरण बेहतर होता है। एक एकड़ में लगभग 2–3 किलो बीज की जरूरत होती है। रोपाई पंक्ति-दर-पंक्ति की जाए, जिसमें पौधों के बीच 30 से 40 सेमी की दूरी रखी जाती है।
सिंचाई और खाद प्रबंधन
मलिंगा अधिक पानी पसंद नहीं करता। इसकी सिंचाई ड्रिप या कूंड प्रणाली से करनी चाहिए। बारिश या अधिक नमी से जड़ सड़ सकती है। जहां तक खाद की बात है, गोबर की खाद और वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करने से उत्पादन अच्छा होता है।
अगर रासायनिक खाद इस्तेमाल करनी हो, तो NPK का संतुलित उपयोग किया जा सकता है, लेकिन जैविक खेती इसके लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है।
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कीट और रोग नियंत्रण
मलिंगा की फसल में कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है। फिर भी पत्तियों को खाने वाले कीट या पाउडरी मिल्ड्यू जैसे रोगों से सावधानी बरतनी चाहिए। नीम तेल या जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करने से बचाव हो सकता है।
उत्पादन और मुनाफा
मलिंगा की फसल 4 से 5 महीनों में तैयार हो जाती है। एक एकड़ से लगभग 8–10 कुंतल मलिंगा प्राप्त होता है। वर्तमान बाजार में इसकी कीमत 30,000 से 40,000 रुपये प्रति कुंतल तक जा सकती है। यानी एक एकड़ से किसान को 3–4 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है।
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उपयोग और बाजार मांग
मलिंगा का उपयोग कई क्षेत्रों में होता है:
आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं में
हर्बल कॉस्मेटिक्स जैसे क्रीम, शैंपू, साबुन में
एंटी-सेप्टिक और दर्दनिवारक तेलों में
हर्बल चाय और स्वास्थ्य टॉनिक में
बढ़ती जैविक और प्राकृतिक उत्पादों की मांग के चलते इसकी मांग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी से बढ़ रही है। दिल्ली, जयपुर, लखनऊ, मुंबई जैसे शहरों में कई कंपनियां मलिंगा खरीदती हैं।
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सरकारी की सब्सिडी
कुछ राज्य सरकारें और कृषि विभाग मलिंगा जैसे औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। किसानों को प्रशिक्षण, बीज, जैविक खाद और मार्केट लिंक के लिए सहायता दी जा रही है। इसके अलावा औषधीय पौधों की खेती करने वाले किसानों को कृषि मंत्रालय की ‘नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड’ से रजिस्ट्रेशन कराने पर अतिरिक्त लाभ भी मिल सकता है।
कहाँ बेंचे?
मलिंगा की मार्केटिंग के लिए किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग या स्थानीय आयुर्वेदिक दवा कंपनियों से संपर्क करना चाहिए। इसके अलावा, किसान ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (FPO) की मदद से भी सीधे ग्राहकों तक पहुँच सकते हैं।
मलिंगा की खेती कम लागत, कम मेहनत और अधिक मुनाफा देने वाली फसल बन चुकी है। यह न केवल किसानों की आमदनी बढ़ा सकती है बल्कि जैविक खेती की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। यदि आप एक प्रगतिशील किसान हैं और अपनी खेती को एक नई दिशा देना चाहते हैं, तो मलिंगा की खेती आजमाना आपके लिए लाभदायक साबित हो सकता है।
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