जानें क्या है? गाय और भैंस को थनैला रोग से बचाने के देसी तरीका

Mastitis Treatment in Cow & Buffalo : किसान भाइयों, गाँव में गाय और भैंस हमारी रोज़ी-रोटी का बड़ा सहारा हैं, लेकिन थनैला रोग यानी मास्टाइटिस इनके लिए मुसीबत बन सकता है। ये रोग थनों में सूजन, दर्द और दूध खराब होने की वजह बनता है, जिससे पशु की सेहत और हमारी कमाई दोनों पर असर पड़ता है। गंदगी और बैक्टीरिया इसकी मुख्य वजह हैं, पर सही देखभाल से इसे रोका जा सकता है। आइए, समझें कि गाय और भैंस को थनैली रोग से कैसे बचाएँ और क्या करें कि ये परेशानी पास न आए।

क्या है गाय और भैंस  को होने वाला थनैला  रोग

थनैला दुधारू पशुओं को होने वाला एक रोग है। इस रोग के दौरान पशु के थनों का आकार बड़ा हो जाता है और इनमें सूजन आ जाती है। इसके अलावा गाय और भैंस के थनों में गांठ पड़ने लगती है एवं पस जम जाता है। यही नहीं दूध का रास्ता भी संकरा हो जाता है और दूध के स्थान से पस एवं दूषित दूध निकलने लगता है। इस दौरान पशु का व्यवहार पूरी तरह बदल जाता है। इनके बछड़ो को भी बहुत नुक्सान होता है, अधिकतर पशुओं के थन खराब ही हो जाते हैं जिससे उनकी कोई वैल्यू नही नही रह जाती किसानो को भारी क्षति उठानी पड़ती है।

बाड़े को साफ और सूखा रखें

थनैला रोग की सबसे बड़ी वजह है गंदगी। गाय और भैंस का बाड़ा हमेशा साफ रखें। गोबर और पेशाब को दिन में दो बार हटाएँ, ताकि नमी न बने। गाँव में बाड़े का फर्श पक्का करें या उसमें सूखा भूसा बिछा दें, जिससे पशु कीचड़ में न बैठें। बरसात में खास ध्यान दें, क्यूँकि नमी से बैक्टीरिया तेजी से फैलते हैं। सूखा और साफ बाड़ा पशुओं को इस रोग से दूर रखेगा। ऐसा करने से थनों में गंदगी नहीं चिपकेगी और रोग का खतरा कम होगा।

दूध निकालने का सही तरीका अपनाएँ

दूध निकालते वक्त साफ-सफाई का पूरा खयाल रखें। अपने हाथों को साबुन से धोएँ और नाखून छोटे रखें, ताकि थनों को चोट न लगे। दूध निकालने से पहले थनों को गुनगुने पानी से धो लें और साफ कपड़े से पोंछ दें। गाँव में नीम की पत्तियों का पानी इस्तेमाल करें, ये कीटाणुओं को मारता है। दूध पूरा निकालें, थोड़ा भी न छोड़ें, वरना बचा दूध रोग की वजह बन सकता है। दूध निकालने के बाद थनों को लाल दवा या पोटैशियम परमैंगनेट के हल्के घोल से धो लें, इससे बैक्टीरिया नहीं पनपेंगे।

पशुओं को साफ पानी और चारा दें

गाय और भैंस को साफ पानी और ताज़ा चारा खिलाएँ। सड़ा-गला चारा या गंदा पानी पेट खराब करता है, जिससे थनैली रोग का खतरा बढ़ता है। गाँव में हरा चारा जैसे बरसीम या ज्वार दें, और साथ में थोड़ा गुड़ मिलाएँ, ये पशु की ताकत बढ़ाता है। बीमार पशुओं को अलग रखें, ताकि रोग न फैले। साफ खान-पान से पशु की रोगों से लड़ने की ताकत बनी रहेगी, और थन स्वस्थ रहेंगे।

थनों की देखभाल का देसी नुस्खा

अगर थनों में हल्की सूजन या लालिमा दिखे, तो फौरन गुनगुने पानी में हल्दी मिलाकर सिकाई करें। गाँव में ये पुराना नुस्खा है, जो सूजन कम करता है। नीम का तेल थनों पर हल्के से लगाएँ, ये कीटाणुओं को मारता है और थनों को मुलायम रखता है। हर हफ्ते थनों की जाँच करें, अगर कुछ सख्ती या दर्द दिखे, तो पशु चिकित्सक को दिखाएँ। शुरू में ही ध्यान देने से रोग बढ़ने से रुक जाता है।

फायदा और लंबी सेहत

थनैला  रोग से बचाव करने से गाय और भैंस का दूध कम नहीं होता। एक स्वस्थ गाय 8-12 लीटर और भैंस 10-15 लीटर दूध रोज़ दे सकती है। गाँव में 40-50 रुपये लीटर भाव मिले, तो महीने में 15-20 हज़ार रुपये की कमाई बनी रहती है। पशु बीमार नहीं पड़ते, तो दवा का खर्चा भी बचता है। थन स्वस्थ रहें, तो पशु की उम्र और कमाई दोनों बढ़ती हैं। तो भाइयों, इन देसी तरीकों को अपनाएँ, पशुओं को थनैली से बचाएँ और खेती-किसानी को चमकाएँ।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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