Medicinal Plant Khus Cultivation Benefits: बिहार में खेती का रंग बदल रहा है। यहाँ खस यानी वेटिवर की खेती का दायरा तेज़ी से बढ़ रहा है। पश्चिम चंपारण के मझौलिया में किसान इसकी खेती कर न सिर्फ अपनी किस्मत चमका रहे हैं, बल्कि कम लागत में बंपर मुनाफा भी कमा रहे हैं। खस एक औषधीय गुणों से भरपूर बहुवर्षीय घास है, जिसके जड़ों से निकलने वाला तेल बाज़ार में 25 हज़ार रुपये प्रति लीटर तक बिकता है।
इसकी खेती की खासियत ये है कि न तो इसे पानी की ज्यादा जरूरत पड़ती है और न ही उर्वरक की। बाढ़ हो या बंजर ज़मीन, हर हाल में ये फसल तैयार हो जाती है। आइए जानते हैं कि खस की खेती कैसे बिहार के किसानों के लिए वरदान बन रही है।
खस क्या है और क्यों खास है?
खस, जिसे वेटिवर भी कहते हैं, भारतीय मूल की एक झाड़ीनुमा घास है। इसके हर हिस्से – जड़, पत्ती और फूल – का अपना अलग महत्व है। इसकी जड़ों से निकाला जाने वाला तेल महंगे इत्र, सौंदर्य प्रसाधन, सुगंधित पदार्थ और दवाइयों में इस्तेमाल होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस तेल की कीमत 25 हज़ार रुपये प्रति लीटर तक होती है। पश्चिम चंपारण के मझौलिया में खस की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि इसके औषधीय गुणों की वजह से जानवर भी इसे नुकसान नहीं पहुँचाते। ये फसल न सिर्फ मुनाफा देती है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।
हर मौसम और ज़मीन में तैयार
खस की खेती की सबसे बड़ी खूबी ये है कि इसे किसी भी जलवायु में उगाया जा सकता है। बाढ़ वाली ज़मीन हो या बंजर खेत, ये हर जगह पनप जाती है। सर्दियों को छोड़कर किसी भी मौसम में इसकी बुवाई की जा सकती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसे न सिंचाई की जरूरत पड़ती है और न ही उर्वरक की। 18 से 20 महीने में फसल तैयार हो जाती है। कटाई के बाद इसका ऊपरी हिस्सा ईंधन या इंसुलेटर के तौर पर इस्तेमाल होता है, जबकि जड़ों से तेल निकाला जाता है। बस खुदाई के वक्त ज़मीन में हल्की नमी ज़रूरी है, ताकि जड़ें आसानी से निकल सकें।
कम लागत, लाखों का मुनाफा
खस की खेती में लागत बेहद कम लगती है, लेकिन मुनाफा चौंकाने वाला है। एक एकड़ में इसकी खेती के लिए करीब 70 हज़ार रुपये खर्च आता है। वहीं, एक एकड़ से 10 लीटर तक तेल निकल सकता है। बाज़ार में एक लीटर तेल की कीमत 25 हज़ार रुपये तक है। यानी एक एकड़ से 2.5 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। लागत निकालने के बाद भी 1.8 लाख रुपये से ज्यादा का शुद्ध मुनाफा बचता है। अगर बड़े स्तर पर खेती करें, तो ये आँकड़ा लाखों में पहुँच सकता है। बिहार के किसानों के लिए ये फसल किसी सोने की खान से कम नहीं।
जानवरों से नुकसान नहीं, देखभाल आसान
खस की फसल में एक और खास बात है कि इसके औषधीय गुणों की वजह से जानवर इसे खराब नहीं करते। आम फसलों को चरने वाले जानवर अक्सर नुकसान पहुँचाते हैं, लेकिन खस के साथ ये चिंता नहीं। न पानी की टेंशन, न उर्वरक की ज़रूरत, और न ही कीटों का डर। बस सही समय पर बुवाई और कटाई करें, फसल आपको मालामाल कर देगी। इसके ऊपरी हिस्से से चटाई, ईंधन या इंसुलेटर बनाया जा सकता है, जो अतिरिक्त कमाई का ज़रिया है।
खस की खेती से दोहरा फायदा
खस की खेती से न सिर्फ किसानों को आर्थिक फायदा हो रहा है, बल्कि पर्यावरण को भी सहारा मिल रहा है। इसकी जड़ें मिट्टी को बाँधकर कटाव रोकती हैं और बंजर ज़मीन को उपजाऊ बनाती हैं। तेल निकालने के बाद बचे हिस्से से कई तरह के सामान बनाए जा सकते हैं। यानी ये फसल हर तरह से फायदेमंद है। बिहार में इसकी खेती का बढ़ता दायरा दिखाता है कि आने वाले दिनों में ये किसानों की पहली पसंद बन सकती है।