गेहूं छोड़ इस औषधीय पौधे की खेती से कमाएं 3 गुना मुनाफा, गया के किसान बन रहे मिसाल

Mentha Plant Cultivation: बिहार के गया जिले में खेती का नया दौर शुरू हो चुका है। यहाँ की बंजर जमीन, जो सालों से बेकार पड़ी थी, अब मेंथा की खेती से लहलहा रही है। बांके बाजार के फतेहपुर गाँव में छह एकड़ से ज्यादा ऐसी जमीन पर मेंथा के पौधे उग रहे हैं। ये पौधा ना सिर्फ जमीन को हरा-भरा कर रहा है, बल्कि किसानों की जिंदगी में भी खुशहाली ला रहा है। मेंथा एक औषधीय पौधा है, जिसके तेल की बाजार में अच्छी खासी मांग है। दवाइयों से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों तक, इसका तेल हर जगह काम आता है।

मुनाफे का गणित

मेंथा की खेती का सबसे बड़ा फायदा है इसका मुनाफा। एक एकड़ में इसकी खेती से 70-80 लीटर तेल निकलता है। बाजार में इस तेल की कीमत 1200 से 1500 रुपये प्रति लीटर तक मिल जाती है। अगर खेती की लागत निकाल दें, तो एक एकड़ से 60-70 हजार रुपये आसानी से बच जाते हैं। गेहूं या धान की खेती में इतना मुनाफा मिलना मुश्किल है। बांके बाजार के बिहरगाईं गाँव में एक प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई गई है। इस यूनिट की वजह से किसानों को तेल निकालने के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। इससे उनकी लागत और समय दोनों बच रहे हैं।

विशुनपुर गाँव के सुदामा वर्मा ने लीज पर जमीन लेकर मेंथा की खेती शुरू की। सुदामा कोई नये खिलाड़ी नहीं हैं। वो पहले बेबी कॉर्न और स्वीट कॉर्न की खेती में अपनी पहचान बना चुके हैं। इस बार उन्होंने फतेहपुर की पहाड़ी के पास बंजर जमीन को चुना। मार्च में उन्होंने मेंथा की नर्सरी तैयार की और कुछ महीनों की मेहनत के बाद फसल तैयार हो गई। सुदामा बताते हैं कि मेंथा की खेती का ख्याल उनके मन में तब आया, जब उन्होंने जिले के कुछ गाँवों में इसे होते देखा। फिर 4 एस संस्था के रजनी भूषण और मशरूम किसान राजेश सिंह की मदद से उन्होंने ये कदम उठाया।

गेहूं से कई गुना फायदा

सुदामा का कहना है कि मेंथा की खेती गेहूं से कहीं ज्यादा फायदेमंद है। गेहूं की खेती से एक कट्ठा में 400-500 रुपये की कमाई होती है, लेकिन मेंथा से दो से तीन लीटर तेल निकलता है। इसकी कीमत 3000-4500 रुपये तक हो सकती है। लागत की बात करें तो एक कट्ठा में ज्यादा से ज्यादा 1000 रुपये खर्च आता है। यानी मुनाफा कई गुना ज्यादा है। सुदामा ने मेंथा की जड़ें पटना के पालीगंज से मंगवाईं और मार्च में रोपाई शुरू की। अब उनकी फसल तैयार है और तेल निकालने का काम जोरों पर है।

जानवरों से फसल सुरक्षित

मेंथा की खेती की एक खास बात ये है कि इसे जानवर नुकसान नहीं पहुँचाते। इसकी तीखी गंध की वजह से गाय, बकरी या जंगली जानवर इसके पास नहीं आते। इससे किसानों को फसल की रखवाली की टेंशन नहीं रहती। सुदामा का मानना है कि अगर और किसान इस खेती को अपनाएँ, तो उनकी आमदनी दोगुनी हो सकती है। प्रोसेसिंग यूनिट की सुविधा ने इस काम को और आसान कर दिया है। अब किसानों को सिर्फ फसल उगाने की मेहनत करनी है, बाकी काम यूनिट संभाल लेती है।

गया जिले में मेंथा की खेती किसी वरदान से कम नहीं है। ये बंजर जमीन को उपयोगी बना रही है और कम लागत में मोटा मुनाफा दे रही है। सुदामा जैसे युवा किसान इस बदलाव की मिसाल हैं। अगर आप भी अपने गाँव में ऐसी खेती शुरू करना चाहते हैं, तो स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें। मेंथा की खेती से ना सिर्फ आपकी जमीन हरी-भरी होगी, बल्कि आपकी जिंदगी भी खुशहाल होगी।

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  • Shashikant

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