देशभर में मौसम बदल रहा है, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे इलाकों में बारिश थम गई है, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मॉनसून अभी पूरी तरह सक्रिय है। मौसम विभाग ने 18 सितंबर तक इन राज्यों के कई जिलों में मूसलाधार बारिश की चेतावनी दी है। तेज हवाएँ भी चल सकती हैं, जिनकी रफ्तार 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है। गाँवों में किसानों के लिए ये बारिश दोहरी तलवार जैसी है। धान और मक्का जैसी फसलों के लिए ये फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि नमी से फसलें अच्छी तरह बढ़ती हैं।
लेकिन ज्यादा बारिश से जलभराव का खतरा है, जो फसलों को नुकसान पहुँचा सकता है। खासकर बिहार के निचले इलाकों में जलभराव पहले भी समस्या रहा है। किसानों को सलाह है कि खेतों में जल निकासी की व्यवस्था करें।
इस साल मॉनसून क्यों रहा खास?
इस बार का मॉनसून कई मायनों में खास रहा। 24 मई को केरल में इसका आगमन 2009 के बाद सबसे जल्दी था। पूरे देश में औसत से 7% ज्यादा बारिश हुई, यानी सामान्य 778.6 मिमी के मुकाबले 836.2 मिमी बारिश दर्ज की गई। उत्तर-पश्चिम भारत में तो 34% ज्यादा बारिश हुई, जो पिछले कुछ सालों में असामान्य है। इस भारी बारिश ने कई राज्यों में तबाही भी मचाई। हिमाचल और उत्तराखंड में बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएँ देखी गईं। मौसम विभाग का कहना है कि मॉनसून की विदाई के साथ खरीफ फसलों की कटाई शुरू होगी, और रबी फसलों की बुआई की तैयारी तेज हो जाएगी।
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पंजाब में बाढ़ का कहर, गाँव और फसलें डूबीं
पंजाब में अगस्त 2025 में आई बाढ़ को 1988 के बाद सबसे खतरनाक माना जा रहा है। रावी, ब्यास और सतलुज नदियों के उफान और नहरों के टूटने से 13 जिलों के 1400 से ज्यादा गाँव पानी में डूब गए। पठानकोट, गुरदासपुर, फाजिल्का, कपूरथला, तरन तारन, फिरोजपुर, होशियारपुर और अमृतसर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। हजारों हेक्टेयर खेतों में धान, मक्का और सब्जियों की फसलें बर्बाद हो गईं। पॉन्ग, रणजीत सागर और भाखड़ा बाँधों से अतिरिक्त पानी छोड़े जाने से बाढ़ और बढ़ी। लाखों लोग बेघर हो गए, और स्कूल-कॉलेज 27 अगस्त से 7 सितंबर तक बंद रहे।
हिमालयी राज्यों में बादल फटना और भूस्खलन
हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में मॉनसून ने भारी तबाही मचाई। हिमाचल में जुलाई-अगस्त में 17 भूस्खलन, 22 बादल फटने और 31 फ्लैश फ्लड की घटनाएँ हुईं। उत्तराखंड में 679 आपदा घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें उत्तरकाशी में 5 अगस्त को खीर गंगा नदी में फ्लैश फ्लड से 5 लोग मारे गए और 50 से ज्यादा लापता हो गए। चमोली और रुद्रप्रयाग में 29 अगस्त को बादल फटने से भूस्खलन हुआ, जिसमें कई परिवार मलबे में दब गए। जम्मू-कश्मीर के डोडा में बादल फटने से 10 लोग मारे गए, और वैष्णो देवी यात्रा मार्ग पर भूस्खलन से 6 मौतें हुईं। हिमाचल में 236 लोग मारे गए, और 1500 परिवार बेघर हो गए।
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पश्चिमी विक्षोभ और मॉनसून की तीव्रता
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार पश्चिमी विक्षोभ ने मॉनसून को और तीव्र बना दिया। उत्तर-पश्चिम भारत में 34% ज्यादा बारिश हुई, जो सामान्य 778.6 मिमी के मुकाबले 836.2 मिमी थी। बादल फटने की घटनाएँ बढ़ीं, क्योंकि नम बादल पहाड़ों से टकराए। ग्लेशियर झील फटने (GLOF) और भूस्खलन ने नुकसान को और बढ़ाया। गाँवों में जलभराव से फसलें डूब गईं, और कई बस्तियाँ नदियों के रास्ते में आ गईं। केंद्र सरकार ने प्रभावित राज्यों के लिए केंद्रीय टीम भेजी है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सितंबर में दौरा करेंगे। गाँवों में किसानों को फसल बीमा और मुआवजे का लाभ लेना चाहिए, ताकि नुकसान कम हो।
किसानों के लिए सुझाव
पंजाब और हिमालयी गाँवों में बाढ़ से बर्बाद फसलों की भरपाई के लिए फसल बीमा का लाभ लें। जलभराव से बचने के लिए खेतों में नालियाँ बनाएँ। रबी फसलों जैसे गेहूँ, सरसों और चना की बुआई शुरू करें, क्योंकि मॉनसून की नमी मिट्टी में बनी है। ठंड से बचाव के लिए पौधों को ढकें और जैविक खाद डालें। मौसम विभाग की सलाह पर नजर रखें, ताकि बुआई का सही समय चुन सकें। गाँवों में बिजली और पानी की व्यवस्था पहले से करें, क्योंकि ठंड में ऊर्जा की माँग बढ़ेगी।
पंजाब और हिमालयी राज्यों में मॉनसून ने भारी तबाही मचाई, लेकिन अब ठंड की दस्तक से रबी फसलों की उम्मीद जगी है। ला नीना से कड़ाके की सर्दी आ सकती है, इसलिए गाँव के किसान भाई-बहन तैयार रहें। फसल बीमा, जल निकासी और समय पर बुआई से नुकसान कम करें। मौसम की चुनौतियों के बीच खेती को नई ताकत दें।
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