बारिश में टमाटर की खेती? इस नयी तकनीक से होगी बंपर पैदावार और लाखों की कमाई

किसान भाइयों, झारखंड का हजारीबाग जिला पूरे देश में टमाटर की खेती के लिए मशहूर है। यहाँ सालभर बड़े पैमाने पर टमाटर उगाए जाते हैं, जो बाजारों में अच्छा दाम पाते हैं। मगर मानसून में भारी बारिश के कारण टमाटर की फसल को नुकसान होता था। जड़ों में पानी भरने से पौधे सड़ जाते थे, और उपज घटने से कीमतें बढ़ जाती थीं।

अब समय बदल रहा है। हजारीबाग के प्रगतिशील किसान आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर मानसून में भी टमाटर की बंपर खेती कर रहे हैं। जिले के किसान रूपेश कुमार ने बताया कि ग्राफ्टिंग तकनीक ने उनकी खेती को आसान और मुनाफेदार बना दिया। इस तकनीक से न सिर्फ फसल सुरक्षित रहती है, बल्कि लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है।

ग्राफ्टिंग तकनीक का कमाल

ग्राफ्टिंग तकनीक टमाटर की खेती में क्रांति ला रही है। इसमें टमाटर के पौधे के ऊपरी हिस्से को बैंगन की मजबूत जड़ के साथ जोड़ा जाता है। बैंगन की जड़ बारिश में जलभराव और रोगों को झेल लेती है, जिससे पौधा स्वस्थ रहता है। इस तकनीक से पौधे की आयु बढ़कर 8 महीने तक हो जाती है, और प्रति पौधा 15-20 किलो टमाटर की उपज मिलती है।

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सामान्य खेती में पौधा 4-5 महीने में खत्म हो जाता है, लेकिन ग्राफ्टिंग से लगातार फल मिलते हैं। किसान खुद ग्राफ्टिंग कर सकते हैं या बाजार से 12-15 रुपये प्रति पौधा की दर पर ग्राफ्टेड पौधे खरीद सकते हैं। हजारीबाग के बरही ब्लॉक में किसानों ने इस तकनीक से 25 टन/हेक्टेयर तक उपज ली है।

मानसून में रोगों से बचाव

मानसून में टमाटर की फसल को फफूंदी और जड़ सड़न जैसे रोगों का खतरा रहता है। ग्राफ्टिंग तकनीक इन रोगों को 70% तक कम करती है। पूसा इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि खेत में जल निकासी का पक्का इंतजाम करें। दोमट मिट्टी में 10 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर डालें और 2×2 मीटर की दूरी पर पौधे लगाएँ। खरपतवार नियंत्रण के लिए 15-20 दिन के अंतराल पर निराई करें।

सफेद मक्खी जैसे कीटों से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मिली/लीटर) का छिड़काव करें। नीम तेल (2 मिली/लीटर) का उपयोग भी फायदेमंद है। प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट करें, ताकि रोग न फैले।

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लागत कम मुनाफा ज्यादा

ग्राफ्टिंग तकनीक से टमाटर की फसल मानसून में खराब नहीं होती। बाजार में टमाटर का भाव 30-50 रुपये/किलो रहता है, जिससे किसानों को प्रति हेक्टेयर 3-4 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। हजारीबाग के किसान रूपेश कुमार ने बताया कि उन्होंने 1 एकड़ में ग्राफ्टिंग से 20 टन टमाटर उगाए और 2.5 लाख रुपये का मुनाफा कमाया।

इस तकनीक से बीज और रासायनिक खर्च 20-25% कम होता है। साथ ही, लंबे समय तक फल देने से बार-बार बुवाई की जरूरत नहीं पड़ती। हजारीबाग में नर्सरियाँ ग्राफ्टेड पौधे उपलब्ध करा रही हैं, जिन्हें ICAR ने प्रमाणित किया है।

देश के लिए प्रेरणा

हजारीबाग की ये पहल देश के उन किसानों के लिए मिसाल है, जो मानसून को खेती की बाधा मानते हैं। ग्राफ्टिंग तकनीक न सिर्फ फसल को सुरक्षित रखती है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी टिकाऊ है। कम रासायनिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है। मध्य प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में भी इस तकनीक की मांग बढ़ रही है। किसान भाई नजदीकी कृषि केंद्र से ग्राफ्टेड पौधे और सलाह लें, और मानसून को मुनाफे का मौसम बनाएँ।

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  • Rahul

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं krishitak.com पर लेखक हूं, जहां मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाओं पर केंद्रित आर्टिकल लिखता हूं। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ, मैं पाठकों को लेटेस्ट और उपयोगी जानकारी प्रदान करने का प्रयास करता हूं।

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