Moonga Silk ki Kheti: उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में मूंगा रेशम की खेती एक नई उम्मीद बनकर उभरी है। पर्यावरणविद और ‘वृक्ष पुरुष’ के नाम से मशहूर किशन मलड़ा की मेहनत ने इस पहाड़ी जिले को मूंगा रेशम उत्पादन का उभरता हुआ केंद्र बना दिया है। असम के बाद उत्तराखंड देश का दूसरा राज्य है, जहां मूंगा रेशम की खेती सफलतापूर्वक हो रही है।
किशन मलड़ा का मानना है कि पहाड़ों के युवा इस खेती को अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। बागेश्वर में 2012 से शुरू हुई इस खेती ने न सिर्फ स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और गांवों में रोजगार के नए रास्ते भी खोले हैं। इस लेख में मूंगा रेशम की खेती, किशन मलड़ा की पहल, और इसके फायदों के बारे में बताया गया है।
किशन मलड़ा की प्रेरक पहल
किशन मलड़ा, जिन्हें 2018 में उत्तराखंड की तत्कालीन राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने ‘वृक्ष पुरुष’ की उपाधि दी थी, पिछले 41 सालों से पेड़-पौधों और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। बागेश्वर के मंडलसेरा में उनकी देवकी लघु वाटिका, जिसमें 280 से ज्यादा प्रजातियों के पेड़-पौधे हैं, एक शानदार उदाहरण है।
इस वाटिका में उन्होंने मूंगा रेशम की खेती को बढ़ावा देने के लिए खास बगीचा तैयार किया, जो दुनिया भर के शोधकर्ताओं का ध्यान खींच रहा है। किशन मलड़ा का कहना है कि मूंगा रेशम की खेती न सिर्फ आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि ये पहाड़ों के युवाओं को गांव में रहकर रोजगार का मौका देती है। उनकी इस पहल को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सहित कई लोग सराह चुके हैं।
मूंगा रेशम: सबसे महंगा और अनमोल
मूंगा रेशम अपनी चमक, टिकाऊपन, और प्राकृतिक सुनहरे रंग के लिए जाना जाता है। बाजार में इसकी साड़ियां 3 से 6 लाख रुपये तक बिकती हैं, जो इसे दुनिया के सबसे महंगे रेशमों में से एक बनाता है। मूंगा रेशम से बने उत्पाद, जैसे साड़ियां, मेखला, और चादर, अपनी उच्च गुणवत्ता और खूबसूरती के कारण देश-विदेश में मशहूर हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की जलवायु और वातावरण इस खेती के लिए बहुत अनुकूल है। मूंगा रेशम के कीट बांज या शहतूत जैसे पेड़ों की पत्तियों पर पलते हैं, जो बागेश्वर के जंगलों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इसकी खेती से न सिर्फ मुनाफा होता है, बल्कि पेड़-पौधों का संरक्षण भी होता है, जो पर्यावरण के लिए फायदेमंद है।
मूंगा रेशम की खेती की प्रक्रिया
मूंगा रेशम की खेती शुरू करने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने पड़ते हैं। सबसे पहले, किसानों को रेशम विभाग से संपर्क करके मूंगा रेशम के कीट लेने होते हैं। इसके लिए बांज या शहतूत के पेड़ों को तीन साल तक पालना पड़ता है, ताकि वे इतने बड़े हो जाएं कि कीट उनके पत्तों पर पल सकें। जब पेड़ तैयार हो जाते हैं, तो रेशम के कीट इन पत्तियों पर छोड़े जाते हैं।
ये कीट करीब 60 दिनों में कोकून (रेशम के गोले) बनाते हैं, जिन्हें बाजार में बेचा जा सकता है। बागेश्वर में रेशम विभाग ने किशन मलड़ा की देवकी लघु वाटिका में जालियां लगाकर इस प्रक्रिया को और आसान बनाया है। कोकून की बिक्री से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है, और ये प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल होने के कारण जैविक खेती का हिस्सा बनती है।
बागेश्वर में मूंगा रेशम की संभावनाएं
बागेश्वर जिला, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, अब मूंगा रेशम उत्पादन में भी अपनी पहचान बना रहा है। किशन मलड़ा का मानना है कि अगर सरकार और रेशम विभाग मिलकर युवाओं को इस खेती का प्रशिक्षण दें और शुरुआती मदद, जैसे कीट और उपकरण, प्रदान करें, तो ये उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन सकती है।
मूंगा रेशम की खेती कम लागत में शुरू की जा सकती है, क्योंकि बांज और शहतूत के पेड़ पहाड़ों में आसानी से उपलब्ध हैं। ये खेती न सिर्फ युवाओं को गांव में रोजगार देती है, बल्कि पलायन की समस्या को भी कम करती है। बागेश्वर में रेशम विभाग की मदद से कई किसान इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, और आने वाले समय में ये जिला मूंगा रेशम उत्पादन का बड़ा केंद्र बन सकता है।
खेती शुरू करने की सलाह
मूंगा रेशम की खेती शुरू करने के लिए किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले, नजदीकी रेशम विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करके मूंगा रेशम के कीट और खेती की प्रक्रिया की जानकारी लेनी चाहिए। बांज या शहतूत के पेड़ लगाने के लिए जमीन तैयार करें और इन्हें तीन साल तक नियमित देखभाल दें।
कीटों को पालने के लिए साफ-सुथरा और छायादार माहौल बनाएं, ताकि कोकून की गुणवत्ता अच्छी रहे। कोकून तैयार होने के बाद इन्हें स्थानीय बाजार या रेशम विभाग के जरिए बेचा जा सकता है। प्रशिक्षण और सरकारी योजनाओं, जैसे मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट, का लाभ उठाकर इस खेती को और फायदेमंद बनाया जा सकता है। बागेश्वर में किशन मलड़ा जैसे लोग इस खेती को बढ़ावा देने के लिए मार्गदर्शन दे रहे हैं।
ये भी पढ़ें- बारहमासी सहजन की खेती : पत्ती, फूल, फल, सब बेचकर लाखों कमाएँ, बाजार में रहती है तगड़ी डिमांड