Mosambi farming: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में अब आम और अमरूद की फसलें पीछे छूटने लगी हैं। किसान तेजी से मौसंबी की ओर रुख कर रहे हैं। कम लागत, आसान देखभाल और बाजार में अच्छे दाम यही वजह है कि ये मीठा नींबू अब खेतों की शान बन रहा है। गांव जंक्शन की 13 नवंबर 2025 की रिपोर्ट कहती है कि मोहम्मदी, धौरहरा, मितौली और गोला इलाकों में मौसंबी के बाग बढ़ रहे हैं। एक बार पौधा लगा लिया, तो 15-20 साल तक फल देता रहेगा। कीट-रोग कम, पानी भी कम बस यही फॉर्मूला किसानों को मालामाल कर रहा है।
जिले का मौसम मौसंबी के लिए वरदान साबित हो रहा है। गर्मी में 25 से 35 डिग्री तापमान और सर्दी में हल्की ठंड। मिट्टी दोमट या बलुई दोमट सब कुछ परफेक्ट। कृषि विभाग के अधिकारी बता रहे हैं कि पिछले तीन साल में मौसंबी लगाने वाले किसानों की संख्या दोगुनी हो गई। प्रति एकड़ 150 से 200 क्विंटल तक पैदावार आसानी से हो रही। बाजार भाव 20 से 35 रुपये किलो चल रहा। यानी एक एकड़ से 3 से 7 लाख तक की कमाई, वो भी सालाना।
युवा किसान हिमांशु की सफलता
मोहम्मदी के युवा किसान हिमांशु वर्मा ने दो साल पहले मौसंबी के पौधे लगाए थे। आज उनके बाग में फल लदे हैं। “शुरू में आम सोचा था, लेकिन मौसंबी देखी तो लगा लिया। अब 25 रुपये किलो से कम नहीं बिकता। एक पेड़ से 50-60 किलो फल, और 100 पेड़ एक एकड़ में। लागत निकल गई, अब शुद्ध मुनाफा।” हिमांशु जैसे सैकड़ों किसान अब दूसरों को सलाह दे रहे हैं। उनका कहना है कि आम में 5-7 साल लगते हैं फल आने में, लेकिन मौसंबी तीसरे साल से देना शुरू कर देती है।
कृषि विज्ञान केंद्र लखीमपुर की रिपोर्ट बताती है कि मौसंबी में कीट कम लगते हैं। नीम का तेल, ट्राइकोडर्मा बस इतना ही काफी। गर्मी में हफ्ते में एक बार पानी, सर्दी में 15 दिन में। खाद भी गोबर की सड़ी हुई और एनपीके का हल्का डोज। कुल मिलाकर एक एकड़ पर सालाना खर्च 50-60 हजार से ज्यादा नहीं। लेकिन कमाई लाखों में।
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खेती का आसान तरीका
शुरुआत करने के लिए खेत की गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बनाएं। गड्ढों में गोबर खाद, 50 ग्राम एनपीके डालकर पौधा लगाएं। दूरी 6×6 मीटर रखें, यानी एक एकड़ में 100-110 पौधे। पहला साल सिंचाई पर ध्यान दें। दूसरे साल से फल आना शुरू। तीसरे साल से बंपर पैदावार।
कृषि विभाग के विशेषज्ञ कहते हैं कि ड्रिप सिंचाई लगवा लें तो पानी और खाद दोनों की बचत। मौसंबी को सूखा भी पसंद है, ज्यादा पानी से जड़ सड़ने का डर। कीट आए तो नीम आधारित स्प्रे करें। फल तोड़ाई दिसंबर से मार्च तक। बाजार में सीधे बेचें या जूस वाले को दें दोनों में फायदा।
जूस से लेकर कॉस्मेटिक तक मुनाफे के कई रास्ते
मौसंबी सिर्फ खाने की चीज नहीं। विटामिन सी से भरपूर, गर्मी में जूस की डिमांड आसमान छूती है। लखीमपुर से दिल्ली, लखनऊ तक ट्रक जा रहे हैं। एक किलो से 6-7 गिलास जूस। होटल, जिम, दुकानें – हर जगह बिक्री। छिलके भी बेकार नहीं। अरोमा, साबुन, क्रीम बनाने वाली कंपनियां खरीद रही हैं। एक किसान ने बताया, फल बेचा 3 लाख में, छिलके से 20 हजार अतिरिक्त।
स्वास्थ्य के लिहाज से भी मौसंबी नंबर वन। पाचन दुरुस्त करता है, इम्यूनिटी बढ़ाता है। डॉक्टर सलाह देते हैं, मरीज मांगते हैं। बाजार में कभी मंदा नहीं।
कृषि विभाग की सलाह
जिले के कृषि अधिकारी बता रहे हैं कि मौसंबी की खेती में अभी और दम है। अगर किसान प्रशिक्षण लें, ड्रिप लगाएं, जैविक खाद डालें तो 200 क्विंटल प्रति एकड़ भी संभव। विभाग मुफ्त में पौधे, ट्रेनिंग, सब्सिडी दे रहा है। KVK में हर हफ्ते कैंप लग रहे हैं।
लखीमपुर खीरी अब मौसंबी हब बनने की राह पर है। आसपास के जिले शाहजहांपुर, हरदोई, सीतापुर भी देख रहे हैं। किसान भाइयों, अगर आम-अमरूद से मन भर गया तो मौसंबी आजमाएं। कम मेहनत, कम जोखिम, ज्यादा मुनाफा। एक बार लगा लिया, तो पीढ़ियां खाएंगी।
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